Mahka Rajasthan Vimochan By CM Vasundhra Raje

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Rajasthan Chief Minister Vasundhra Raje Vimochan First Daily Edition of Dainik Mahka Rajasthan Chief Editor ABDUL SATTAR SILAWAT

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Dainik MAHKA RAJASTHAN

Monday, August 3, 2015

हम देश को किस ओर ले जा रहे हैं...


अब्दुल सत्तार सिलावट                    
जुलाई 2015 का आखिरीे सप्ताह। देश के कुछ राज्यों में भारी बारिश से तबाही। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब का निधन और फ़ांसी की सजा पर राष्ट्रीय बहस। इस सब के बीच 30 जुलाई 2015 की पूर्व रात आज़ादी के बाद पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात में सुनवाई (बाद में पता चला यह सुनवाई दूसरी बार थी)। मुम्बई बम धमाकों के आरोपी की फ़ांसी को उम्र कैद में बदलने की 'पुकार' में मुसलमानों से अधिक 'सेक्युलर' हिन्दू नेताओं और समाज के प्रतिष्ठित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट में 'गुहार' लगाई। खैर, इस बीच फ़ांसी हो गई और सुरक्षा एजेन्सीयों ने बहुत ही 'दुस्साहसपूर्ण' निर्णय कर 'डेथ-बॉडी' मुम्बई तक पहुंचाकर इस घटना का पटाक्षेप कर दिया और मीडिया पर आरोप लगे कि देश के पूर्व राष्ट्रपति के निधन, सुपुर्द-ए-ख़ाक से अधिक कवरेज फ़ांसी की घटना के 'चलचित्र' को दी गई।
अगस्त के पहले दिन से शुरु होता है भारत के मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए 'ख़तरा' साबित करने का इलेक्ट्रोनिक मीडिया का 'मिशन' और इस आग में घी की पहली धार डालते हैं त्रिपुरा राजभवन में बैठे महामहिम राज्यपाल। महामहिम त्रिपुरा में भारी बारिश की तबाही को भुलकर फ़ांसी के बाद मुम्बई में याकुब मेमन की मय्यत में शामिल मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताकर ही शांत नहीं होते हैं। यह सलाह भी देते हैं कि मय्यत में शामिल मुसलमानों पर कड़ी नज़र रखी जाये। यह लोग आईएसआईएस में शामिल हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से उठाकर भाजपा की केन्द्र सरकार ने त्रिपुरा के राज्यपाल जैसे पद पर जिन्हें बैठाया है उनमें बैठा मुस्लिम विरोधी कट्टरपंथी इतने बड़े पद की गरीमा को कलंकित कर रहा है। महाराष्ट्र और मुम्बई त्रिपुरा की राजधानी या त्रिपुरा की सीमा में नहीं आते हैं और त्रिपुरा के राज्यपाल के पास महाराष्ट्र का अतिरिक्त प्रभार भी नहीं है फिर उन्हें मय्यत में शामिल हजार-पाँच सौ मुसलमानों से सवा सौ करोड़ के भारतवासियों की सुरक्षा की चिन्ता का 'ठेका' किसने दिया?

त्रिपुरा के महामहिम की अकारण चिन्ता की मशाल को हमारे इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने हाथों हाथ सम्भाल लिया और आईएस के काले झण्डे, तालिबान के आतंकी कमाण्डों के दिवारों पर दौड़ते दृश्य और बेगुनाहों पर बंदूकें तानकर खड़े आतंकियों के 'रेडिमेड क्लिप' के साथ ऊँची आवाज़ में स्क्रिप्ट पढ़कर एक भय का माहौल तैयार करना शुरु कर दिया। आईएस और तालिबान सीरिया, इराक और क्यूबा जैसे देशों के लिए बहुत बड़े हमलावर हो सकते हैं, लेकिन भारत जैसे विशाल देश की ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। हमारे टीवी चैनल आईएस और तालिबान को जाने अन्जाने निमन्त्रण के साथ यह भी बता रहे हैं कि भारत का मुसलमान याकुब मेमन को फ़ांसी के बाद देश की कानून व्यवस्था और सुरक्षा एजेन्सीयों से नाराज़ ही नहीं आक्रोशित भी है। जबकि भारत के मुसलमान ने ना तो संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफज़ल गुरु को फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था और ना ही मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब की फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था, बल्कि भारत का मुसलमान तो ऐसे आतंकियों को मौत की सज़ा पर ख़ुश हुआ जिन्होनें कौम का नाम बदनाम किया।
मीडिया याकुब मेमन की फ़ांसी पर अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पुरे घटनाक्रम को ऐसे पेश करता रहा जैसे वो आतंकी संगठनों को निमन्त्रण दे रहा हो कि ऐसे में यहाँ आप 'प्रवेश' करते हैं तो भारत के मुस्लिम नौजवान आपके साथ मिलकर भारत के लाल किले पर तिरंगे के साथ आईएस का काला झंडा लहराने में भी मदद कर सकते हैं। जबकि हकीकत यह है कि भारत के अधिकतर मुस्लिम नौजवान बेरोज़गार हैं, उन्हें आईएस, याकुब की फ़ांसी या आतंकी गतिविधियों में कोई रूचि नहीं है। इन मुस्लिम युवाओं को इनके माँ-बाप देर तक सोने पर जबरन उठाकर मज़दूरी के लिए भेजते हैं और यह नौजवान भी अपने हाथ-खर्च जितनी 'दिहाड़ी' मजदूरी कर शाम को लौट आता है। एक सर्वे के मुताबिक भारत का मुसलमान 'सेल्फ एम्प्लॉयड' है वो अपनी रोजी रोटी मेहनत मजदूरी कर कमाता है और खाता है। रात का खाना खाने के बाद गली के बाहर चाय की होटल पर लगे टीवी पर यही नौजवान क्रिकेट मैच या कोई पुरानी फिल्म देखकर लौट आता है। इससे अधिक दोस्तों ने रोक दिया तो रात ग्यारह बजे तक बजरंगी भाईजान या करीन की ख़ूबसूरती पर 'चटकारे' लेकर लौट आते है।
याकुब को फ़ांसी क्यों हुई। 30 जुलाई की रात को देश के 'समझदार' लोग क्यों जागे। इन बातों से आम मुसलमान को कोई लेना देना नहीं है। वह तो अपनी पेट और परिवार की आग बुझाने में रोज सुबह उठकर मजदूरी की तलाश में भटककर अपनी जि़न्दगी पूरी कर रहा है जबकि देश के समझदार राजनेता, साम्प्रदायिकता की खेती करने वाले 'किसान' (हिन्दू-मुस्लिम दोनों किसान) मुसलमानों की बढ़ती आबादी के आंकड़ों को लेकर चुनावों से पहले ऐसा माहौल बना देते हैं कि 2050 तक मुसलमान भारत में हिन्दूओं से अधिक हो जायेंगे इसलिए हमारी पार्टी को 'वोट' दो। हिन्दूओं का वोट तो मुसलमानों आबादी का डर दिखाकर एक झंडे के नीचे ले आने में सफल हो गये, लेकिन मुसलमानों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए साम्प्रदायिक दंगों में हजार पाँच सौ को मार देना, आईएसआईएस-तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ने के आरोपों के अलावा भी मुसलमानों को देशभक्त बनाने में 'दुबले' हो रहे नेताओं और संगठनों को कुछ करना चाहिये!
मीडिया के बड़े घरानों से अनुरोध है कि मैनेजमेन्ट इंस्टीट्यूट में स्टूडेन्ट्स को जीवन के सफलता के 'गुर' बताने के साथ ही टीवी चैनल के 'कर्मचारियों' को भी देश में शांति, कौमी एकता बनाये रखने जैसे कार्यक्रम और भाषा का उपयोग करने के 'गुर' भी सिखाएं। 30 जुलाई मुसलमानों के सबसे बड़े 'नेता' याकुब मेेमन को फ़ांसी के बाद देश के सबसे अधिक लोकप्रिय चैनलों ने मुसलमानों के लोकप्रिय 'नेता' औवेसी साहब और हिन्दूओं के सबसे अधिक लोकप्रिय 'नेता' साक्षी महाराज को विशेष सम्मान देते हुए एक-एक घंटे के इन्टरव्यू प्रसारित किये। इन नेताओं ने अपने समाज को क्या संदेश दिया इस बात से टीआरपी बढ़ाने में सक्रिय टीवी चैनल के विद्वान पत्रकार बेफिक्र थे, लेकिन जाने अन्जाने में देश की जनता को टीवी चैनल के कार्यक्रमों से इतना पता चल गया कि अब भारत में मोदी से मुकाबला करने वाला मुसलमानों का नेता असदुद्दीन औवेसी ही है तथा कट्टरपंथी हिन्दू नेताओं की दोड़ में साक्षी महाराज को चैनल वालों ने सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है।
देश की जनता के साथ मेरे देश की सुरक्षा एजेन्सीयों के आला अधिकारी भी टीवी चैनलों के भडकाऊ कार्यक्रमों को देखते हैं, लेकिन इन्हें रोकने, इन पर अंंकुश लगाने की पहल तब तक नहीं करते हैं जब तक देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हो जाता है। सुरक्षा एजेन्सीयों के प्रभाव का एक नमूना फ़ांसी के बाद याकुब मेमन के 'जनाज़े' को टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर नहीं दिखाने के आदेश की पालना इतनी सख़्ती से हुई कि आज तक टीवी चैनल तो दूर बेकाबू सोशल मीडिया पर भी किसी 'सर-फिरे' ने मय्यत की क्लिप डालने का साहस नहीं किया। सुरक्षा एजेन्सीयों के कर्णधार टीवी चैनलों पर देश की जनता के साथ भडकाऊ भाषणों से खिलवाड़ करने वाले हिन्दू और मुसलमान नेताओं के बढ़ते प्रवेश को रोकें। भले ही इसके लिए मीडिया को 'कान' में 'ऑफ दी रिकॉर्ड' आदेश भी देना पड़े। ऐसा देश की कौमी एकता और शांति के लिए ज़रूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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