Mahka Rajasthan Vimochan By CM Vasundhra Raje

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Rajasthan Chief Minister Vasundhra Raje Vimochan First Daily Edition of Dainik Mahka Rajasthan Chief Editor ABDUL SATTAR SILAWAT

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Dainik MAHKA RAJASTHAN

Monday, March 30, 2015

गहलोत साहब, भाजपा को आप साम्प्रदायिक नहीं कह सकते...


ए.एस. सिलावट                                                                         
अब गहलोत साहब को कौन समझाये कि आपको तो कम से कम साम्प्रदायिकता जैसे शब्द पर नहीं बोलना चाहिये क्योंकि आपके पाँच साल के मुख्यमंत्री काल में गोपालगढ़ की मस्जिद में नमाज़ पढ़ते मुसलमानों को पुलिस ने गोलियों से भून डाला, सराड़ा (उदयपुर) में मुसलमानों को रात में नींद से उठाकर बसों में भरकर उदयपुर के मदरसों में भेजकर पीछे से उनकी पूरी बस्ती को पुलिस की मौजूदगी में आग के हवाले कर दिया गया था। ऐसे कई साम्प्रदायिक दंगों के उदाहरण हैं गुलाबपुरा, भीलवाड़ा, कृष्णगंज आदि और पूरे राज्य में पाँच साल तक मुसलमान स्वयं को असुरक्षित एवं ठगा-सा महसूस करता रहा। इन सबसे बढ़कर अशोक गहलोत साहब के गृह जिले जोधपुर के गांव बालेसर में मुसलमानों की ईदगाह को ट्रेक्टरों और बुलडोजर से तोड़ा गया। मुसलमानों के मकानों में रसोई गैस की टंकियों में आग लगाकर तबाह किया गया और यह सब काम भाजपा-शिवसेना या बजरंग दल ने नहीं बल्कि गहलोत साहब की जाति के माली समाज के कांग्रेसी लोगों ने ही किया था।
अशोक गहलोत साहब के मुंह से भाजपा साम्प्रदायिक है यह शब्द शोभा नहीं देता क्योंकि वसुन्धरा राजे के पिछले कार्यकाल (2003-2008) में एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ और अब तक सवा साल में भले ही मुसलमानों को कुछ मिला नहीं है तो कम से कम कुछ छिना भी नहीं है और राजस्थान का मुसलमान वसुन्धरा सरकार में चैन की नींद सोता तो है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष या वरिष्ठ नेताओं की चिन्ता भाजपा का भविष्य उज्जवल होने तक सीमित नहीं है। कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत साहब के इस बयान को भी सुन लीजिये। गहलोत साहब कहते हैं कि 'भाजपा सरकार को ग्रामीणों के विकास के खनिज सम्पदा के उपयोग और इनसे सम्बन्धित उद्योगों को गांवों में लगाने पर ध्यान देना चाहिये।' अब कोई अशोक जी से पूछे आप जब मुख्यमंत्री थे तब राजस्थान का खनिज भण्डार समुन्द्र में डूबा हुआ था क्या? आपने ग्रामीणों के विकास के लिए राजस्थान के विशाल भण्डार का उपयोग क्यों नहीं किया?
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत भी चाहते हैं कि भाजपा की सरकार अच्छे काम करें ताकि अगली बार जनता फिर वसुन्धरा जी को जीतवाकर मुख्यमंत्री बना देवें। अशोक गहलोत भाजपा की सरकार स्थाई रहे इसके लिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी का काम स्वयं कर रहे हैं। गहलोत साहब सिर्फ खनिज सम्पदा तक ही नहीं बोलते हैं बल्कि भाजपा को साम्प्रदायिक साबित करने के लिए सूर्य नमस्कार का विरोध करते हुए कहते हैं कि यही भाजपा का असली चेहरा है। जनता को भ्रमित कर सत्ता तक पहुँच जाते हैं और अब साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं।
भाजपा की सरकार अगली बार विपक्ष की सीटों पर नहीं बैठ जाये। भाजपा  की नीतियों से ग्रामीण जनता नाराज होकर वसुन्धरा जी को अगले चुनाव में हरा देगी। यह सभी चिन्ताएं भाजपा के मंत्री, विधायक या पार्टी के नेता नहीं कर रहे हैं बल्कि राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जब भी बोलने का अवसर मिलता है तब सत्ता पक्ष की ओर लम्बे लम्बे हाथ करके कहते हैं 'ऐसे ही जनता की अनदेखी करते रहे तो अगली बार हमारी सीटों पर विपक्ष में आप होंगे।' कभी कहते हैं कि 'वसुन्धरा सरकार को ब्यूरोके्रट चला रहे हैं इसलिए अगली बार भाजपा विपक्ष की कुर्सीयों पर दिखाई देगी।'
अब कांग्रेसी नेताओं से कोई यह पूछे कि अगली बार भी भाजपा की ही सरकार बननी चाहिये इसलिए आप विधानसभा में उन्हें उल्टे सीधे कामों पर रोकने के बजाय सुझाव देकर भाजपा की जनता में लोकप्रियता बढ़ाने के 'मिशन' में लगे हुए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रद्युमन सिंह विधानसभा में कहते हैं कि 'वसुन्धरा सरकार समय बर्बाद नहीं करे जनता का काम करे, पाँच साल में से सवा साल तो निकल गया बाकी समय भी कल खत्म हो जायेगा और जनता का काम नहीं करोगे तो जनता आपको भी हमारी तरह सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा देगी।'

राजस्थान दिवस: फिजुल खर्ची के बयान शुरु...
राजस्थान के 66वें स्थापना दिवस समारोह की सांस्कृतिक झांकियां जनपथ से रवाना होकर दूसरे छोर तक नहीं पहुँचेगी उससे पहले विपक्षी दलों के नेता वसुन्धरा सरकार पर फिजुल खर्ची का आरोप लगाना शुरु कर देंगे। राजस्थान दिवस पर विधानसभा भवन की रंग बिरंगी रोशनी और जनपथ से वन्दे मातरम् की गगनचुम्बी स्वर लहरों के बीच विपक्षी नेता ओलावृष्टी से बर्बाद फसलों और परेशान किसान को याद करते हुए सरकारी खर्च के दुरुपयोग के नाम पर घड़ीयाली आँसू बहाना शुरु कर देंगे।
हमारे विपक्षी पार्टीयों के नेता सरकारी खजाने से हजारों करोड़ की अपनी जमीन और प्रकृति का दिया तोहफा तेल भण्डार सिर्फ 'चवन्नी' मुनाफे पर कंपनियों को सौंप दें और नौ किलोमीटर के मैट्रो सफर के लिए अपने विभागों से कर्ज दिलवाकर उन्हें दिवालिया बना देवें तब फिजूलखर्ची दिखाई नहीं देती है जबकि आज के तनाव भरे जीवन में 100 मिनट तक राजस्थान दिवस के नाम पर जनपथ पर बैठकर राजस्थान की विभिन्न लोक कलाएं एक पथ पर आ जाये, जनता का मनोरंजन हो जाये, उनका मानसिक तनाव कम हो जाये, जनता में नई सोच, नई उमंग भर जाये ऐसे अच्छे अवसर भी विपक्षी नेताओं को फिजूलखर्ची वाले लगते हैं जबकि सच्चाई यह है कि राजस्थान दिवस की आलोचना करने वाले नेताओं के बच्चे, बीवीयां और पूरा परिवार 'वीवीआईपी' ब्लॉक में बैठकर राजस्थान दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनन्द लेते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक- दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, March 27, 2015

अटलजी नहीं, भारत रत्न स्वयं हुआ सम्मानित...



ए.एस. सिलावट                                                             
संवेदनशील हृदय, वाक चातुर्यता, सीधे सरल और अपने विरोधियों के दिलों में भी अपनेपन का स्थान रखने वाले भारत के एक सर्व व्यापी, सर्व जाति-धर्म एवं राजनैतिक नेताओं के हृदय सम्राट अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित कर सरकार स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रही होगी, लेकिन सच्चाई तो यह है कि आज अटलजी नहीं हमारा सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न स्वयं 'सम्मानित' हुआ है और यही कारण है कि अटल जी को सम्मानित करने भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी स्वयं सभी 'प्रोटोकोल' तोड़कर भारत रत्न का सम्मान देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के घर गये। उनके साथ अपने राजनैतिक जीवन के अविस्मरणीय क्षणों को 'शेयर' किया।
अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ से राजनैतिक जीवन शुरु कर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना और दो लोकसभा सदस्यों से आज के चौंकाने वाले आंकड़े तक पहुँचाने में अपना योगदान ही नहीं अपने जीवन की 'आहूति' दी है। अटल जी किसी राजनैतिक घराने से नहीं आते हैं और ना ही किसी जाति-धर्म के झंडे को लेकर लोकसभा में पहुँचकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन फिर भी आपकी प्रतिभा, अटल जी के राजनैतिक संघर्ष, जनसेवा के साथ कौमल हृदय वाले कवि अटल जी का पंडित जवाहरलाल नेहरु भी सम्मान करते थे। दक्षिण के नेता करुणानिधी, फारू$ख अब्दुल्लाह, ममता बनर्जी, जयललिता ऐसे कई नाम है जो जनसंघ या भाजपा की पृष्ठभूमि वाले एक मात्र नेता अटल जी का सम्मान भी करते थे और अपने मन की बात भी करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार सांसद बनकर आज़ादी के बाद पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने का श्रेय ले चुके हैं। 1996 में अटल जी पहली बार प्रधानमंत्री बने, 13 दिन चली इस सरकार के अविश्वास प्रस्ताव के बाद संसद में दिये गये भाषण को भारत के राजनैतिक इतिहास में आज भी याद किया जाता है। सरकार गिरने के बाद भी संसद में देश के विकास, राजनैतिक मजबूरियां और फिर सरकार बनाने का संकल्प ही जनता के दिलों को छू गया और अगली बार अटल जी पूरी ता$कत के साथ प्रधानमंत्री बनकर देश को नई सोच, नई दिशा दे गये।
अटल के वाकचातुर्यता और शब्दों से मोहित करने के कई उदाहरण हैं, लेकिन 1999 में भारत-पाक रिश्तों को सुधारने के प्रयास में लाहोर बस सेवा शुरु कर जब स्वयं लाहोर पहुँचे तब गवर्नर हाऊस में उनकी कविता 'ज़ंग नहीं होने देंगे, अब ज़ंग नहीं होने देंगे' सुनकर गवर्नर सहित वहाँ के हुकमरान भावुक हो गये और अटल जी को गले लगाने वालों की कतार लग गई।
दक्षिण में हिन्दी विरोधी आन्दोलन के नेता डीएमके के अन्ना दुरई उन दिनों अटल जी के साथ राज्यसभा मेम्बर थे और हिन्दी विरोधी नेता होने के बावजूद उन्होनें कहा था कि हम अटल जी की कविता जैसी हिन्दी का विरोध नहीं करते हैं और अटल जी जैसी हिन्दी बोलते हैं उसका भी विरोध नहीं करते हैं। अटल जी की देश भक्ती, देश को सर्वोच्च मानने और देश की अस्मिता के लिए कोई राजनैतिक विरोध नहीं। इस भावना से सभी विरोधी पार्टीयों के नेता भी अटल जी का सम्मान करते थे।
अटल जी की कश्मीर यात्रा में वहाँ के लोगों ने जब आपसे पूछा कि कश्मीर समस्या का समाधान आप संविधान के दायरे में करेंगे या कोई और हल है आपके पास। इसके जवाब में अटल जी ने कहा कश्मीर समस्या का समाधान 'इंसानियत' के दायरे में करुंगा और कश्मीरी भी अटल जी के दिवाने हो गये। अटल जी ने बातों से आगे बढ़कर देश की सुरक्षा के लिए पोकरण परिक्षण भी किया जिससे दुनिया की बड़ी शक्तियों को हमारी ताकत का संदेश भी गया।
आज मोदी सरकार के विशाल सांसदों के आंकड़ों वाली भारतीय जनता पार्टी की नींव 'सेक्यूलर' बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सभी धर्मांे, जातियों, वर्गों के लिए दरवाजे खोले थे और उसी का परिणाम है आज देश का मुसलमान भी भाजपा में बढ़ चढ़कर राजनैतिक भागीदारी निभा रहा है और साधारण कार्यकर्ता से लेकर देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा एवं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी दिखाई दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, March 25, 2015

राजनाथ के संकल्प ने अल्पसंख्यकों को किया भयमुक्त...


ए.एस. सिलावट                                                                      
देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने परमात्मा की कसम खाकर कहा कि देश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए मैं कुछ भी करूंगा। अल्पसंख्यकों के मन में पल रही असुरक्षा की भावना को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जाऊँगा और साथ ही राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए हर सम्भव कदम उठाने के आदेश भी दे डाले।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश भर का अल्पसंख्यकों पर भाजपा की केन्द्रीय सरकार में बैठे सन्तों, सांसदों और वरिष्ठ विद्वान राजनेताओं द्वारा भड़काऊ भाषण दिये जा रहे हैं साथ ही नवी मुम्बई, नई दिल्ली, मध्यप्रदेश में चर्चों पर हमले हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में 71 साल की बुजुर्ग नन के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है। ऐसे समय में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सिर्फ राजनैतिक औपचारिकता पूरी नहीं की है बल्कि बिगड़ते माहौल को लगाम देने के लिए सच्चे मन से और राजधर्म को निभाते हुए एक ओर देश भर के अल्पसंख्यकों को भाजपा की सरकार से अब तक फैली असुरक्षा की भावना को रोका है वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारों, केन्द्र की सुरक्षा एजेन्सीयों और धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे लोगों को भी स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब गृह विभाग देश की कानून व्यवस्था बिगाडऩे वालों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
गृहमंत्री चाहे भाजपा या आरएसएस से राजनीति में आते हों लेकिन इनकी धर्म निरपेक्षता को सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरा देश जानता है कि राजनाथ सिंह ने अगर ईश्वर की शपथ खाकर देश में अल्पसंख्यकों की रक्षा का वायदा किया है तो अब ईसाइयों, मुसलमानों या अन्य अल्पसंख्यकों को भड़काऊ बयान देने वालों को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिये और अल्पसंख्यकों के धर्म गुरुओं, विद्वानों एवं नेताओं को भड़काऊ बयानों पर प्रतिक्रिया भी नहीं करनी चाहिये।
देश की राजधानी में अल्पसंख्यकों के मंच से जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दस माह से अस्थिर साम्प्रदायिक सौहार्द पर खुलकर सच्चे मन से बोल दिया है ऐसे समय में थोड़ा और आगे बढ़कर केन्द्र और राज्यों की सुरक्षा एजेन्सीयों को स्पष्ट आदेश भी देना चाहिये कि बेलगाम, भड़काऊ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर भरे बाण छोडऩे वाले बयानबाजी करने वालों को तत्काल कानून की हथकड़ी पहनानी चाहिये। कौमी एकता बिगाडऩे की बयानबाजी करने वालों को सिर्फ मुल्जिम की नजर से देखा जाये भले ही देश की सत्ता पार्टी के नेता हों, सांसद या विधायक हों, भगवा या हरी पगडी वाले हों। कानून ऐसे लोगों को सिर्फ अपराधी की नजर से देखकर कार्यवाही करेगा तभी देश में शांति व्यवस्था कायम रह पायेगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का जो भरोसा दिया है इसे लागू करने में गृह विभाग की सुरक्षा एजेन्सीयां ही मददगार बन सकती है जबकि देश के अल्पसंख्यकों का सुरक्षा एजेन्सीयों से विश्वास उठ चुका है इसके परिणामस्वरुप गुजरात, मुजफ्फरपुर, आसाम, के दंगों में मूल दंगाइयों को भूलकर अल्पसंख्यक पुलिस, आरएसी से भीड़ जाते हैं और अल्पसंख्यकों ने ऐसा मान लिया है कि देश की पुलिस और सुरक्षा एजेन्सीयां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो चुकी है। गृहमंत्री जी, सुरक्षा एजेन्सीयों के खिलाफ फैले इस भ्रम को तोडऩे के लिए आपको अपने गृह विभाग में भी सोच बदलने का एक अभियान चालाना होगा तभी आपका अल्पसंख्यक सुरक्षा का संकल्प पूरा हो पायेगा।
देश की कौमी एकता को बिगाडऩे का मिशन चलाने वालों के निशाने पर अल्पसंख्यकों में मूलत: ईसाई और मुसलमान हैं। इनमें से ईसाई देश में धर्म परिवर्तन के आरोप लगे हैं, जबकि मुसलमानों को आतंकवाद शब्द से जोड़कर देश की मुख्य धारा से अलग थलग करने के प्रयासों में बहुत सफलता भी मिली है।
देश की ईसाई मिशनरियां विरान जंगलों में बैठे आदिवासियों की सेवा और शहरों में मिशनरी स्कूलों के माध्यम से शिक्षण क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इनकी आय क्या है? गरीबों की सेवा के लिए पैसा कहाँ से आता है? और जिनकी भी सेवा करते हुए वे गरीब सेवा करने वालों को 'दुवाएं' देने के बदले उनके धर्म में ही शामिल हो जाते हैं। अब तक ऐसे ही आरोप ईसाई अल्पसंख्यकों पर लगते रहे हैं। लेकिन भारत का मुसलमान आपके गली-मौहल्ले में पंचर निकालता है। चाय की दूकान चलाता है। मजदूरी करता है। सब्जी बेचता है। आपकी कार का ड्राइवर, आपकी फैक्ट्री का चौकीदार। मुसलमान के बच्चे कानवेन्ट, सैंट जेवियर या दून स्कूल में नहीं आपकी मौहल्ले की सरकारी स्कूल में बिना ड्रेस के दण्ड स्वरुप हमेशा प्रार्थना सभा की लाईन से दूर एक कौने में खड़ा रहकर मुश्किल से आठवीं तक पहुँचकर अपने बड़े भाई या पिता के साथ काम पर चला जाता है और परिवार में एक और कमाने वाला तथा भारत देश में एक और गरीब मजदूर बनकर अल्पसंख्यकों के आँकड़ों में वृद्धी कर देता है।
देश के मुस्लिम नौनिहाल जो घर के आसपास की मस्जिद के कमरे में जहाँ टूटी चटाई, दिवारों मकडियों के जाले और टूटी खिड़कियों से आ रही रोशनी में बैठकर अलीफ, बे, ते, से पढ़ता है। इन्हीं मदरसों से नमाज, रोजा, जकात अपनों से गरीब पर दया करना सिखता है। इन्हीं मदरसों को देश के अल्पसंख्यक विरोधी नेता आतंकवाद का अड्डा कहते हैं।
गृहमंत्री जी, भारत का सौ करोड़ हिन्दू अल्पसंख्यकों का विरोधी नहीं है। मात्र एक या दो प्रतिशत लोग मनगढ़त भड़काऊ भाषण, अल्पसंख्यकों पर बेहुदी टिप्पणियां करके देश के सौ करोड़ हिन्दूओं के दिलों में नफरत का बीज बोकर दंगों की फसल काटना चाहते हैं। देश के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के लिए मानसिक विकृति के शिकार एक दो प्रतिशत लोगों पर सख्ती के साथ लगाम लगानी होगी। अगर आपका गृह विभाग भड़काऊ जबान वाले लोगों को मीडिया की पहुंच से दूर रखने में कामयाब हो जायें तो भारत में आने वाले सौ साल तक भले ही देश की बागडोर भाजपा-आरएसएस या अन्य हिन्दूवादी संगठनों के हाथ में रहे हमारी कौमी एकता को कोई भी तोड़ नहीं सकता है। गंगा-जमुनी तहजीब, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा आज भी देश के कौने-कौने में मौजूद है, इसलिए हर दंगे की टीवी स्क्रीन से कवरेज हटने के बाद हम वापस भाईचारे का धर्म निभाने लग जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक-दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Tuesday, March 24, 2015

वसुन्धरा जी: एक रिसर्जेंट पुराने उद्योगों के लिए भी


ए.एस. सिलावट                                                  
राजस्थान में औद्योगिक विकास के लिए नवम्बर 2015 में आयोजित होने वाले 'रिसर्जेंट राजस्थान' को भव्य रूप देने के लिए पिछले तीन माह से युद्ध स्तर पर तैयारियां चल रही हैं। राजस्थान सरकार के उद्योग विभाग, रिको, वित्त निगम और ब्यूरो ऑफ इन्डस्ट्रीयल प्रमोशन के साथ दिल्ली-मुम्बई इन्डस्ट्रीयल कोरिडोर भी अपने-अपने विभागों से नये उद्योगों की स्थापना के लिए नियमों में सरलीकरण, इंस्पेक्टर राज की समाप्ति एवं सिंगल विंडो जैसी सुविधाओं के साथ देश-विदेश से राजस्थान आकर उद्योग लगाने वालों के लिए 'पलक-पावड़े' बिछाने की तैयारियों में दिन रात लगे हैं।
राजस्थान सरकार नये उद्योग घरानों एवं विदेशी उद्योगों को राजस्थान की धरती पर आकर्षित करने के लिए सस्ती सरकारी जमीन, बाहर से मशीनरी इम्पोर्ट पर ड्यूटी में राहत, देश के अन्य हिस्सों से आने वाली मशीनरी पर टेक्स रियायत के साथ पाँच-दस साल तक उत्पादन शुल्क में भी राहत देने की नई-नई योजनाएं बना रही है।
'रिसर्जेंट राजस्थान' में आने वाले नये उद्योगों की स्थापना में नये भवन निर्माण एवं मशीनरी पर सरकारी अनुदान के साथ बैंकों से सस्ते ऋण सुलभ करवाने के अलावा ब्याज पर भी अनुदान जैसी योजनाओं पर मंथन किया जा रहा है।
राजस्थान में नये उद्योगों की बाढ़ आ जाये। नये रोजगार के द्वार खुले। हमारी खनिज सम्पदा, कृषि और अन्य पारम्परिक उद्योगों में राजस्थान के कच्चे माल के उत्पाद देश-विदेश तक पहुँचे। भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार नये उद्योगों के स्वागत के लिए जितनी 'खुले मन' से सरकारी सहायता एवं सरकारी सुविधा के द्वार खोल रही हैं ऐसी ही 'उदारता' राजस्थान के कौने-कौने में चल रहे पुराने उद्योगों के विकास में सहभागिता, पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण, प्रदूषण एवं सरकारी उपेक्षाओं के बीच लाखों लोगों को रोजगार दे रहे उद्योगों के लिए भी दिखायें। पुराने उद्योगों से राजस्थान सरकार को करोड़ों का राजस्व आज भी मिल रहा है। बड़े शहरों के अलावा कस्बों और ग्रामीण क्षेत्र में भी पुराने उद्योग जीवनयापन का मुख्य स्त्रोत हैं।
राजस्थान सरकार के उद्योग विभाग को 'रिसर्जेंट राजस्थान' में नये उद्योगों को 'लुभाने' के लिए बनाई जा रही सरकारी सुविधाओं की फहरिस्तों में पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण एवं अधिक उत्पादन से नये रोजगार सुलभ करवाने में मददगार योजनाओं पर भी चिन्तन करना चाहिये।
नये उद्योगों के एमओयू पर दस्तखत होने के बाद कितने समय में उद्योग शुरू होकर रोजगार एवं सरकार को राजस्व देंगे इसका अनुमान किसी के पास नहीं हैं, जबकि पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण एवं औद्योगिक विकास में बाधक सरकारी नीतियों में फेरबदल किया जाये तो पुराने उद्योगों से शिघ्र लाभ मिल सकता है। सरकार में बैठे अनुभवी 'ब्यूरोक्रेट्स' इस रहस्य को भी जानते हैं कि आजादी के बाद से राजस्थान के विकास और रोजगार सुलभ करवाने में खनिज, कृषि, इन्जिनियरिंग के साथ पारम्परिक टेक्सटाइल एवं इससे जुड़े उद्योग पीढ़ी दर पीढ़ी रोजगार सुलभ करवाने के साथ राजस्थान के विकास में उल्लेखनीय सहयोग देते रहे हैं इसीलिए राजस्थान में चल रहे उद्योगों को अधिक सुविधाएं देकर विकास की दौड़ में शामिल करने की योजनाएं भी बननी चाहिये।
राजस्थान का टेक्सटाइल उद्योग उत्तर भारत ही नहीं बल्कि देश भर में महिलाओं के लिए सूट, साड़ी, लहंगा से लेकर साड़ी फाल सप्लाई में अग्रणी है वहीं पुरुषों के लिए पेन्ट, शर्ट, सफारी एवं सूट में भी देश की कपड़ा मंडियों में विशेष पहचान रखता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि विगत चार दशक से सांगानेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, पाली, जोधपुर और बालोतरा जैसी टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण की समस्या से जूंझना पड़ रहा है। प्रदूषण को रोकने के लिए राजस्थान सरकार का प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अलावा टेक्सटाइल से जुड़े उद्योगपतियों पर विभिन्न न्यायालयों में मुकदमें भी चल रहे हैं। टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े लोग अपनी फेक्ट्रीयों में उत्पादन से अधिक प्रदूषण रोकने के लिए नई-नई टेक्नीक से ट्रीटमेंंट ऑपरेट करने के लिए अपने उत्पादन के कच्चे माल पर 'सेसकर' भुगतान के बाद भी न्यायालयों के चक्कर और किसानों के आन्दोलनों के शिकार होते हैं। राजस्थान सरकार को टेक्सटाइल उद्योगों के विकास में भागीदारी निभाने के लिए प्रदूषण समस्या से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास करने चाहिये। उद्योगों से केवल सेसकर ही वसूलकर उन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।
प्रदूषण फैलाने वाले कुछ उद्योगों पर राजस्थान सरकार पिछले दो दशक से एक तरफा 'मेहरबान' है, इनमें सीमेन्ट फेक्ट्रीयां और मार्बल उद्योगों द्वारा उपजाऊ कृषि भूमि पर 'मार्बल स्लरी' डालकर बंजर हो रही भूमि शामिल है। मार्बल और सीमेन्ट उद्योग पर कांग्रेस की गहलोत सरकार और भाजपा की वसुन्धरा सरकार सिर्फ प्रदूषण फैलाने वाले मामले पर ही नहीं बल्कि अपने कार्यकाल के हर बजट में इन उद्योगों को 'रॉयल्टी' के साथ अन्य टेक्सों में भी रियायत देते रहे हैं और उनकी इन्डस्ट्रीज में काम करने वाले मजदूरों एवं छोटे खान मालिकों को सरकारी रियायतों का लाभ नहीं मिल पाता है।
राजस्थान में सरकार को उद्योग क्रांति लाने के लिए नये उद्योगों के लिए 'पलक-पावड़े' बिछाने के साथ पहले से लगे उद्योगों को विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए उनकी समस्याओं के स्थाई समाधान के साथ आधुनीकीकरण के लिए सस्ते ऋण, भूमि-भवन एवं मशीनरी खरीद पर अनुदान जैसी सुविधाएं देकर राजस्थान के विकास में सभी उद्योगों को शामिल करना चाहिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक- दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, March 18, 2015

किसानों के दिल से निकला, धन्यवाद मुख्यमंत्री जी



ए.एस. सिलावट                                                
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ओलावृष्टी और बिन मौसम बरसात से बर्बाद हुई फसलों पर किसानों को राहत देने के लिए पहले दिन से ही चिंतित एवं सक्रिय है। जब बरसात और सन्डे की छुट्टी का मजा लेते हुए लोग गर्म-गर्म पकौड़े खा रहे थे उस समय मुख्यमंत्री राजे प्रदेश भर के जिला कलेक्टरों से ओलावृष्टी के नुकसान की प्रारम्भिक जानकारी के लिए सन्डे की सरकारी छुट्टी को आपातकाल मानकर राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव से जिला कलेक्टरों की विडियो कांफ्रेंसिंग करवा रही थीं।
भाजपा की मौजूदा सरकार मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में प्रदेश के विकास के साथ प्राकृतिक आपदा पर इतनी सतर्क एवं संवेदनशील है कि विधानसभा के महत्वपूर्ण बजट सत्र में प्रश्नकाल को परम्परा से हटकर स्थगित कर ओलावृष्टी से प्रदेश भर में हुए फसलों के नुकसान पर दो घंटे की चर्चा के बाद एक घंटा और बढ़ाकर सभी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने अपने क्षेत्र की बात रखने का अवसर दिया।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने आपदा सहायता की पुराने सरकारी नियमों में तत्काल बदलाव कर फसलों की खराबी, पशुओं की मौत एवं अन्य मामलों में सरकारी सहायता को बढ़ाकर घोषणा कर चुकी हैं और फसलों की बर्बादी पर अब तक परम्परा में गांव में बैठा पटवारी आंकलन कर बर्बादी की रिपोर्ट देता था इस परम्परा को तोडते हुए सही आंकलन के लिए मुख्यमंत्री राजे ने अपनी सरकार के मंत्रीयों, विधायकों को विधानसभा के बजट सत्र की दो दिन की छुट्टी रखकर फसलों के नुकसान के सर्वे के लिए अपने क्षेत्रों में किसानों को ढांढ़स बंधाने एवं खेत खलिहान में जाकर सही रिपोर्ट लाने को भेजा है।
राजस्थान स्थापना दिवस जिसका साल भर साहित्य क्षेत्र के लोग एवं कलाकार अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए इन्तजार करते हैं उसी राजस्थान दिवस को सात दिन तक मनाने के कार्यक्रम घोषित होने के बाद मुख्यमंत्री राजे ने किसानों की पीड़ा और फसलों की बर्बादी के दु:ख के समय को ध्यान में रखकर सभी रंगारंग कार्यक्रम स्थगित कर दिये। आज राजस्थान सरकार राजनैतिक भेदभाव भुलाकर मुख्यमंत्री राजे के नेतृत्व में किसान की बर्बाद फसल पर मुआवजे के साथ हर सम्भव सहायता में बिजली के बिल में राहत, ऋण वसूली एवं सरकारी वसूलीयों को रोककर किसान को राहत देने का एक अभियान चला रही हैं और इस बात का प्रदेश भर के किसानों को एहसास हो रहा है कि इससे पहले कभी प्राकृतिक आपदा में सरकारी मदद इतनी तीव्र गति से कभी नहीं पहुंची है।
राजस्थान विधानसभा चुनावों में प्रदेश की जनता ने वसुन्धरा राजे को भरपूर समर्थन देकर विपक्ष को नगण्य स्थिती में खड़ा कर दिया है। मौजूदा हालात में जब वसुन्धरा सरकार फसलों की बर्बादी पर किसानों की भरपूर मदद स्वयं आगे बढ़कर और बिना राजनैतिक भेदभाव के कर रही हैं इन हालात में विपक्ष को सरकार का सहयोग करना चाहिये और बर्बाद फसलों की 'बालियों' को हाथों में लेकर मीडिया के सामने सरकार की आलोचना कर विपक्ष का धर्म निभाने वाले नेताओं को ऐसी हरकतों से रोकना चाहिये जिससे जनता में विपक्ष की अच्छी छवि बनी रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, March 16, 2015

सरकार बर्बाद फसलों वाले किसानों को बेटीयों की शादी में मदद करें: महिला विधायक


ए.एस. सिलावट                                                         
राजस्थान विधानसभा में मौन दर्शक बनकर बैठी रहने वाली महिला विधायकों ने आज ओलावृष्टी और किसानों की बर्बादी की बहस में सिर्फ औपचारिकता ही नहीं निभाई बल्कि अपने क्षेत्र की फसलों की बर्बादी के आंकड़े, आकाशीय बिजली गिरने से घायल, मृतक, मकानों के नुकसान में महिला विधायकों ने अपने विधायक कोष से दी गई राहत की जानकारी भी दी।
राजस्थान में पिछले सप्ताह भर से चल रही ओलावृष्टी, बेमौसम बरसात और इससे खराब हुई फसलों की गूंज विधानसभा में इतनी तेज हुई कि विधानसभा का प्रश्नकाल भी आज खत्म कर फसलों के नुकसान और किसानों की बर्बादी पर चर्चा की गई। किसान को राहत दी जाये इस बात पर पक्ष-विपक्ष दोनों ही विधायकों में एक समान चिन्ता थी।
भोपालगढ़ (जोधपुर) विधायक कमसा मेघवाल ने सरकार से किसानों की बर्बाद फसल के मुआवजे के साथ उन किसानों की आर्थिक मदद का सुझाव भी दिया जिनकी जवान बेटीयों की शादी मौजूदा फसल से आने वाले पैसों से इस बार 'आखातीजÓ पर होने वाली थी, लेकिन ओलावृष्टी से बर्बाद फसलों के कारण उस किसान की जवान बेटीयों की शादी नहीं हो पायेगी। विधायक कमसा ने मुख्यमंत्री से मांग करते हुए कहा कि किसान की बेटीयों की शादी के लिए दिये जाने वाली आर्थिक सहयता के लिए पक्ष-विपक्ष के साथ पूरा राजस्थान समर्थन में हैं और अन्य प्रदेशों में फसलों की बर्बादी के बाद आत्महत्या करने वाले किसानों के जीवन रक्षा हेतु वहां की सरकारों के लिए राजस्थान की पहल अनुकरणीय उदाहरण भी होगा।
सवाई माधोपुर विधायक राजकुमारी दीया कुमारी ने अपने क्षेत्र की फसलों की बर्बादी का आंकलन तहसीलदार-पटवारी के साथ करने और अपने विधायक कोष से प्रारम्भिक मदद की जानकारी के साथ मांग करते हुए कहा कि किसान की फसलों की बर्बादी की निश्चित सीमा के बाद मुआवजे की शर्त हटाकर थोड़े नुकसान पर थोड़ा और अधिक नुकसान पर अधिक मुआवजा दिया जाना चाहिये।
बिहार की राबड़ी देवी के बाद पति के साथ राजनीति में प्रवेश कर अपने पारम्परिक पहनावे और मूल भाषा में अपनी बात रखने में सक्षम राजगढ़ विधायक श्रीमती गोलमा देवी ने ओलावृष्टी से बर्बाद फसलों में नाम ले-लेकर अपने क्षेत्र के नुकसान की जानकारी के साथ किसानों को तत्काल राहत देने की मांग भी की।
राजस्थानी परिवेष में परम्परागत सर पर पल्लू लिये मसूदा विधायक सुशीला कंवर ने फसलों की बर्बादी का आँखों देखा हाल तो बताया ही साथ ही फसलों के अलावा प्राकृतिक आपदा में घायलों को विधायक कोष से मदद देने की जानकारी भी दी।
विधायक पर भारी पटवारी
राजस्थान सरकार द्वारा ओलावृष्टी से बर्बाद फसलों की मुआवजा राजस्व विभाग द्वारा भेजी गई सर्वे को आधार मानकर निश्चित करने पर आपत्ति करते हुए विधायक गुरजन्ट सिंह (गंगानगर) कांगे्रस के रमेश एवं अन्य ने सरकार से विधायकों को एक दिन के लिए अपने क्षेत्रों में जाकर सही रिपोर्ट लाने का सुझाव दिया साथ ही एक छोटे से कर्मचारी पटवारी की सर्वे रिपोर्ट के सामने विधायकों के सुझाव को नहीं मानने पर भी आपत्ति दर्ज करवाई गई।
विधानसभा में विधायकों ने इस परम्परा को खत्म करने का सुझाव देते हुए कहा कि लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक अपने क्षेत्र की बर्बादी की सही जानकारी देता है, लेकिन सरकार की रिपोर्ट को आधार मानकर किसानों की क्षतिपूर्ति में दी जाने वाली राहत में आलोचना की शिकार होती है।
विधानसभा में ओलावृष्टी पर सुझाव देने वाले अधिकतर विधायकों ने किसानों की बर्बादी पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे द्वारा तत्काल कदम उठाकर छुट्टी के दिन भी जिला कलेक्टरों से विडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा रिपोर्ट तलब करने की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री राजे का आभार व्यक्त किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, March 12, 2015

राजस्थान में वन विभाग का जंगल राज: विधायक धानका


ए.एस. सिलावट
राजस्थान सरकार का वन विभाग एक ऐसा क्षेत्र है जहां महिला अधिकारों की धज्जीयां उड़ाने के अलावा कोई पुलिस सुरक्षा या कानून की बात नहीं कर सकता है। वन का मतलब जंगल है और जंगल में सिर्फ जंगल राज ही चलता है। इस जंगल राज को वन विभाग के रेंजर, वन पालक एवं छोटे मोटे अधिकारियों के साथ सत्ता में बैठे मंत्रियों तक का संरक्षण मिलता है। यह आरोप किसी विपक्षी या सड़क छाप नेता का नहीं है बल्कि विधानसभा में बस्सी विधायक श्रीमती अंजू देवी धानका ने लगाया है।
विधायक अंजू कहती हैं कि वन विभाग की बेशकीमती जमीनों पर समाज के सफेद नकाबपोश लोग, समाजसेवा का मुखौटा पहने, राजनेताओं के संरक्षण में अवैध निर्माण कर करोड़ों की भूमि पर अवैध कब्जा किये बैठे हैं जबकि गांवों में रहने वाले गरीब, मजदूर अनुसूचित, जनजाति परिवार की जवान लड़कियां और गृहणियां यदि चूल्हा चलाने की लकडिय़ां लाती हुई या भेड़ बकरी चराते हुए भी वन विभाग के रेंजरों-गार्डों के हाथों पकड़े जाये तो उनकी इज्जत सुरक्षित नहीं रहती है जबकि गरीबों की इज्जत से खिलवाड़ करने वालों की जानकारी राजस्थान विधानसभा के पटल पर विधायक द्वारा दिये जाने पर भी वन मंत्री सिर्फ आश्वासन और लीपा पोती की बयानबाजी कर शर्मनाक घटना को टाल देते हैं।
युवा, प्रतिभावान एवं ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक टिप्पणी करते हुए अपने क्षेत्र की समस्याओं को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाने वाली विधायक अंजू धानका ने विधानसभा में कहा कि बेटी बचाओ और महिला संरक्षण पर जनचेतना के विज्ञापनों तक ही सरकारी सतर्कता सीमित हो चुकी है जबकि गांवों में अनुसूचित और जनजाति की महिलाओं का शोषण आजादी से पहले की तरह ही होता जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले अंग्रेजों के चहेते लोग शोषण करते थे और अब सत्ता में बैठे लोगों को 'मंथली' पहुंचाने वाले वन विभाग के अफसर शोषण करते हैं।
विधायक अंजू धानका को विश्वास है कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे प्रदेश में हावी अफसरशाही पर नियन्त्रण कर रही है, लेकिन शहरों एवं आमजन से दूर जंगल राज में अफसर अब भी गरीब ग्रामीणों पर जुल्म-शोषण करते हैं जबकि बड़े अधिकारी वन विभाग के ठेकेदारों, भू-माफियाओं और राजनेताओं के हाथों की कठपुतली बन सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगवाते हैं। विधायक ने स्पष्ट किया कि वन विभाग के अधिकारियों की मिली भगत से जंगलात से अवैध लकड़ी का काटना आम बात हो गयी है साथ ही पर्यटन की दृष्टी से महत्वपूर्ण मंदिरों के आसपास की पहाड़ी क्षेत्र की भूमि पर भी धार्मिक पर्यटकों के लिए धर्मशालाओं के नाम पर अवैध निर्माण की बंदरबांट में वन विभाग के बड़े अधिकारियों की सहभागिता को कोई रोकने वाला नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, March 9, 2015

रिफाइनरी को बजट से दूर रखा...


ए.एस. सिलावट                                   
कांग्रेस की पिछली सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बाड़मेर में लगने वाली रिफाइनरी को वसुन्धरा सरकार ने बजट 2015-16 से दूर रखा तथा राजस्थान विधानसभा में बजट पेश करने के बाद वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल सत्तार सिलावट द्वारा 'बजट प्रेस वार्ता' में रिफाइनरी के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने कहा कि जमीन हमारी, रिफाइनरी निर्माण के लिए धन हमारा और हमारी धरती से निकलने वाले तेल पर सरकार की हिस्सेदारी मात्र 25 प्रतिशत जबकि का सिर्फ मैनेजमेंट देखने वाली कम्पनी को 75 प्रतिशत शेयर का समझौता पिछली सरकार की सबसे बड़ी भूल थी। जिस पर हमारी सरकार के उच्च अधिकारी स्तर की समिति सभी पक्षों पर विचार कर इस समझौते पर अपनी सलाह देगी, उसके बाद ही रिफाइनरी निर्माण पर विचार किया जायेगा।
मुख्यमंत्री राजे ने कहा कि राजस्थान के विकास में तेल उत्पादन और तेल शोधन में रिफाइनरी का बहुत बड़ा योगदान साबित हो सकता है, लेकिन पिछली सरकार ने अपने खजाने से धन देने, अपनी जमीन और अपने घर में निकल रहे तेल को सिर्फ निगरानी करने वाली कम्पनी की झोली में ऐसे डाल दिया जिससे हमारे प्रदेश की जनता को एक रूपये की कमाई पर सिर्फ चवन्नी का लाभ हो और बिना लागत वाली कम्पनी बिना कुछ निवेश किये हमारी तेल सम्पदा के एक रूपये की कमाई से तीन चवन्नी ले जाये।
बजट प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री राजे ने कहा कि पिछली सरकार के रिफाइनरी समझौते में राजनेताओं की अदूरदर्शिता और 'हवाबाजी' की योजनाओं की पोल खोलकर रख दी है। रिफाइनरी के समझौते को यदि गांव के अनपढ़ किसान के सामने भी रख देवें तो वह भी उस पर दस्तखत नहीं करेगा, लेकिन पिछली सरकार ने अपनी उपलब्धियों में सर्वोच्च रिफाइनरी को रखकर पिछले दिनों रिफाइनरी निर्माण के लिए मौजूदा सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक 'पैदल मार्च' निकालकर जनता के हितैषी बनने का नाटक भी किया था।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने रिफाइनरी से डेढ़ लाख लोगों को रोजगार मिलने के दावे को खोखला एवं जनता को भ्रमित करते हुए पिछली सरकार द्वारा झूठी वाह-वाही लूटने वाला दावा बताया।
श्रीमती राजे ने कहा कि तेल रिफाइनरी आधुनिक संयन्त्र है तथा पूर्ण रूप से स्वसंचालित (ओटोमैटिक ऑपरेशन) है जिसमें लाखों लोगों के रोजगार की बात जनता के साथ छलावा मात्र है। आपने कहा कि वास्तव में सिर्फ आठ हजार लोगों को ही रिफाइनरी लगने के बाद रोजगार सुलभ हो पायेगा। बाकी सभी दावे मनगढ़त है।
राजस्थान सरकार के बजट 2015-16 बनाने वाली टीम के प्रमुख एवं राजस्थान सरकार के प्रमुख शासन सचिव वित्त एवं टेक्स पी.एस. मेहरा ने 'बजट प्रेस वार्ता' में रिफाइनरी समझौते पर बताया कि सरकार द्वारा नियुक्त उच्च अधिकारियों की समिति रिफाइनरी समझौते की शर्तों पर पुन: विचार कर रही है तथा राजस्थान सरकार की इतनी कम भागीदारी को पिछली सरकार के समय कैसे दे दी गई इस पर भी गहनता से विचार किया जा रहा है। श्री मेहरा के अनुसार मौजूदा सरकार रिफाइनरी के समझौते को लागू करने पर अपना निर्णय शिघ्र ले सकती है।
राजस्थान सरकार के बजट 2015-16 में रिफाइनरी को दूर रखकर मौजूदा सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिये हैं कि पिछली सरकार के अदूरर्शी निर्णय और जनता के साथ भ्रम पैदा करने वाली रिफाइनरी की आय वाले आंकड़ों की सच्चाई को आम जनता समझ चुकी है तथा अब पिछली सरकार के मुखिया भी रिफाइनरी समझौते में एक तरफा कम्पनी को लाभ देने वाली बात को झुठला नहीं सकते हैं। इसलिए मौजूदा सरकार रिफाइनरी को कांग्रेस सरकार की भूल को आम जनता के साथ धोखा बताकर राजनैतिक लाभ अवश्य लेने के प्रयास करेगी और इसमें सफलता भी मिल सकती है।
बजट प्रेस वार्ता के बाद मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे द्वारा रिफाइनरी निर्माण के समझौते पर दिखाई नाराजगी एवं पिछली सरकार को रिफाइनरी पर घेरने की कोशिशों के चलते राजस्थान की जनता को रिफाइनरी निर्माण के लिए कुछ साल इन्तजार करना होगा। आज की स्थिती में इतना स्पष्ट को चुका है कि कांग्रेस सरकार द्वारा एचपीसीएल के साथ किये गये समझौते को मौजूदा सरकार ने लगभग अमान्य कर लिया है और अब एमओयू के रद्द करने की सिर्फ विधिवत घोषणा ही बाकी है। 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, March 4, 2015

मीडिया विकास में सहभागी: वसुन्धरा


ए.एस. सिलावट                                                                                                 
राजस्थान ही नहीं देश की पहली विधानसभा और पहली मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे हैं जिन्होंने राज्यपाल के अभिभाषण के धन्यवाद में प्रदेश के विकास में मीडिया की भूमिका को मार्गदर्शक, सहभागी एवं सकारात्मक बताया है। अब तक की परम्पराओं में राजनेता गांव के पंच-सरपंच से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को विकास की कड़ी मेहनत में श्रेय देते रहे हैं, उन्हीं के सर पर विकास का सेहरा बांधते रहे हैं, लेकिन राजस्थान विधानसभा में पहला अवसर है जब मुख्यमंत्री राजे ने खुलकर राजस्थान के विकास में मीडिया को भी सहभागी माना एवं पूरे देश के सामने अनुकरणीय मिसाल पेश की है।
देश भर में हर सुबह हजारों समाचार पत्र चार-आठ और बारह पृष्ठ में छपकर पाठकों तक पहुंचते हैं, लेकिन सरपंच से लेकर राष्ट्रीय स्तर के राजनेताओं की नज़र प्रदेश के दो चार बड़े समाचार पत्रों में अपनी ख़बरें ढूंढने और एक कॉलम दस सेंटीमीटर भी क्लासीफाइड पेज पर छपने से संतोष कर जाते हैं, लेकिन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे मध्यम और छोटे समाचार पत्रों को प्राथमिकता देती रही हैं चाहे विमोचन करना हो या सरकार से मान्यता देनी हो। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें मध्यम और छोटे समाचार पत्रों के प्रोत्साहन के लिए प्रयास किये गये हैं।
विधानसभा पटल पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने छोटे समाचार पत्रों को एक वरिष्ठ और कुशल पत्रकार की तरह सलाह दी है कि समाचार के मुख पृष्ठ और अन्तिम पृष्ठ पर ऐसे समाचारों को प्राथमिकता देवें जिससे जनहित की ख़बरें सरकार तक पहुंचे और पत्रकारिता के मिशन को कामयाबी मिले।
राजस्थान के विकास में बदलाव की अहम भूमिका में मुख्यमंत्री राजे ने पक्ष-विपक्ष में विधायकों, समाजसेवी संगठनों के साथ ही मीडिया का उल्लेख करते हुए बताया कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और सुझाव दिया कि राजस्थान के विकास के लिए जनता की बात को सरकार तक पहुंचाने, सरकार की विकास योजनाओं में मार्गदर्शन करने की सकारात्मक भूमिका मीडिया को निभानी चाहिये और मुझे आशा है कि राजस्थान के विकास में सरकार का सहभागी बनकर मीडिया सुझावात्मक समाचारों को प्राथमिकता देता रहेगा।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने कहा कि हमारी सरकार राजस्थान के विकास के लिए पक्ष-विपक्ष के अलावा समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर और विशेषकर मीडिया के सुझावों को भी प्राथमिकता देकर प्रदेश को आगे बढ़ाना चाहती है। सरकार खुले दिल से सभी के सकारात्मक सुझावों को आमंत्रित कर योजनाएं बनाती है। सरकार गरीब, किसान, ग्रामीण, मजदूर और समाज के पिछड़े वर्ग के जीवन स्तर का उठाने के लिए योजनाएं बना रही हैं उन्हें लागू करने एवं आमजन को इसका लाभ पहुंचे ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं।
अब तक की सरकारों में बड़े समाचार पत्रों को छोड़कर मध्यम और छोटे समाचार पत्रों में प्रकाशित ख़बरों पर मुख्यमंत्री या केबिनेट मंत्री तो बहुत दूर की बात है जिलों में बैठे जिला कलेक्टर भी सम्बन्धित विभाग से प्रकाशित समाचार पर टिप्पणी या कार्यवाही नहीं करते थे जबकि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे जब विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद दे रही थी तब उनके पास 'नोट्सÓ वाले पेपर में एक समाचार पत्र की कटिंग भी मौजूद थी जिसका हवाला देकर मुख्यमंत्री ने समाचार पत्रों के सकारात्मक विचारों पर धन्यवाद भी दिया।
पिछले एक दशक में समाचार पत्रों एवं पत्रकारिता का स्तर बहुत कुछ बदला है तथा पत्रकारों की नई टीम, नौजवानों के नज़रिये में पुराने पत्रकारों की तरह किसी नेता, पार्टी या व्यक्ति से दुर्भावना के साथ ख़बर बनाने की परम्परा नहीं रही है बल्कि युवा पत्रकारिता में समाचार को सिर्फ समाचार के रूप में ही पेश किया जाता है। उसे बढ़ा चढ़ाकर ख़बर के साथ मन की 'भडास' निकालने की परम्पराएं समाप्त हो गई है इसलिए ख़बरों का महत्व बढ़ा है तथा बड़े समाचार पत्रों में जो तथ्यात्मक ख़बरें नहीं होती है वैसी ख़बरों से चार पेज-आठ पेज के अख़बार भरे पड़े रहते हैं। सरकार भी इस बात से वाकिफ है कि मध्यम और छोटे समाचार पत्रों का संचालन भी वरिष्ठ, अनुभवी एवं बड़े अख़बारों की टीम से निकले पत्रकार ही कर रहे हैं, इसलिए अख़बार का नाम और सर्कुलेशन भले ही छोटा लगे, लेकिन ख़बरों का स्तर, लेखनी का तिखापन बड़े और छोटे समाचार पत्रों में आज भी मौजूद है।
राजस्थान का मीडिया जगत एवं विशेषकर मध्यम और छोटे समाचार पत्र मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से बजट 2015-16 में उम्मीद करते हैं कि अख़बारों की विज्ञापन नीति में छोटे समाचार पत्रों को आर्थिक रूप से सम्बल प्रदान करने, अधिस्वीकरण में उम्र के आ$िखरी पड़ाव से पहले सुविधा, हाऊसिंग बोर्ड के मकानों में प्राथमिकता एवं पत्रकारों को अगर मुख्यमंत्री राजे राजस्थान के विकास में भागीदार मानती है तब पत्रकारों, छोटे समाचार पत्रों एवं पत्रकारों के परिवारों के विकास में भी सरकार आगे बढ़कर भागीदारी निभाये। उसके बाद आप लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की प्रतिमा को देखें, आपके साथ कंधे से कंधा ही नहीं बल्कि सरकार का महत्वपूर्ण अंग बनकर दिखायेगा।
मुख्यमंत्री जी पत्रकारों और छोटे समाचार पत्रों को सरकार की 'आँख-कान' बनाकर गांव की चौपाल से लेकर सत्ता के गलियारों की ऐसी ख़बरें आप तक पहुंचेगी जिन्हें आपके भाजपा संगठन, इन्टेलीजेन्स एजेन्सीयां और ब्यूरोके्रट्स भी ढ़ूंढ़ कर नहीं ला सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, March 1, 2015

मोदी जी ने ललकारा : टेक्स चोरों सावधान


मोदी जी ने ललकारा : टेक्स चोरों सावधान
ए.एस. सिलावट
आम बजट 2015-16 पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के कौने-कौने और व्यवसाय, उद्योग, एक्सपोर्टर, बिल्डर्स, ज्वैलर्स सभी क्षेत्रों में बैठे टेक्स चोरों और कालाधन वाले पूंजीपतियों को ललकारते हुए कहा कि 'अब टेक्स चोरों की $खैर नहीं है।' यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 'मन' से कही है कोई राजनैतिक धमकी नहीं है जो सिर्फ जनता को $खुश करने के लिए देकर राजनेता तालियां बजवा देते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की चेतावनी को देश भर में फैले टेक्स चोरों को हल्के में नहीं लेना चाहिये क्योंकि पहले की सरकारों में उद्योगपतियों और व्यापारियों केे टेक्स चोरी के नये नये हथकण्डों के बारे में पकड़ नहीं थी, जबकि मोदी जी को व्यापार में सरकारी चोरियां करने वालों के बारे में सिर्फ समझ ही नहीं है बल्कि इनके आसपास देश के सर्वोच्च शि$खर पर बैठे कॉर्पोरेट जगत के सम्मानित उद्योगपति करोड़ों रूपये ईमानदारी से सरकार को टेक्स, एक्साईज देते हैं, लेकिन कुछ टेक्स चोरों के कारण पूरा व्यावसायिक जगत बदनाम होता है और जनता में उद्योगपतियों के विकास में टेक्स चोरी का विशेष सहयोग माना जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी को टेक्स चोरी को रोकने के लिए एक सुझाव भी है कि अब तक की सरकारें टेक्स चोरों को 'आयकर की रेड' और अन्य धरपकड़ में पकड़े जाने पर उनको अ$खबारों, टी.वी. की $खबरों से बचाती रही है। टेक्स चोरों द्वारा करोड़ों की टेक्स चोरी कबूल करने के बाद भी उनकी फर्म, डायरेक्टर के नाम को मीडिया से छुपाकर रखा जाता रहा है। साथ ही एक बार इन्कम टेक्स रेड के बाद अगले पाँच साल तक दोबारा 'रेड' नहीं होने का भी गुप्त संविधान से टेक्स चोर बेफिक्र होकर एक बार टेक्स चोरी में पकड़े जाने के बाद अगले पाँच साल 'सरेन्डर' की गई टेक्स चोरी की रकम को कई गुना ज्यादा टेक्स चोरी कर लेते हैं, ऐसा भी बताया गया है।
प्रधानमंत्री आप जानते हैं हमारे देश में पाँच-दस हजार का चैक रिटर्न होने पर 138 नेगोसिएबल एक्ट में साल छ: महिने की सजा हो जाती है। दुध में पानी मिलाने वाले ग्वाले को वर्षों कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हंै। 25-30 हजार की पुरानी मोटर साइकिल चुराने वाले चोर के साथ थानेदार, इंस्पेक्टर और कांस्टेबल फोटो खिंचवाकर दूसरे दिन अ$खबारों में छपवाते हैं। चार बोतल अवैध शराब पकडऩे पर कोर्ट से जमानत होती है। फैक्ट्री में बिजली चोरी पकड़े जाने पर लाखों रूपये का जुर्माना और कई दिनों तक बिजली कनेक्शन काट दिया जाता है, लेकिन करोड़ों की टेक्स चोरी करने वालों पर आयकर छापे के बाद उन्हीं के आलीशान आवास में बैठाकर हमारे अधिकारी ज्य़ादा रकम की घोषणा करने की मिन्नतें करते हुए टेक्स चोरों को आदर पूर्वक अपने कर सलाहकार (सीए) से मिलने-सलाह लेने का मौका भी देते हैं।
प्रधानमंत्री जी अगर आप 'मन' से टेक्स चोरों के $िखलाफ हैं और टेक्स चोरी रोकना चाहते हैं तो आपके प्रधानमंत्री कार्यालय में बाकी बचे चार सालों के लिए एक कानून बनाकर कालाधन और टेक्स चोरों को 'देश द्रोही' घोषित कर उन्हें भी इंजिनियरिंग कॉलेज में पढऩे वाले मुस्लिम छात्रों की तरह आतंकवादी घोषित कर उनके घर, फैक्ट्री, शो-रूम से उठवाकर अगले छ: माह तक रिमाण्ड पर ही रखिये। टेक्स चोरों की फर्मों को बैंक से मिल रही करोड़ों की ऋण, आर्थिक सुविधाएं बंद कीजिये। इनके प्रतिष्ठान की बिजली, पानी काटिये। उद्योग रजिस्ट्रेशन, चोरी पकड़ी जाने के दिन तक दी गई टेक्स रियायत, अनुदान, एक्सपोर्ट में ड्रा-बेक वापस लिये जाये। साथ ही अ$खबारों में फोटो सहित विज्ञापन बनाकर 'खाप पंचायत' की तरह चेतावनी दी जाये कि टेक्स चोर कम्पनी, व्यक्ति, भागीदार, परिवार के सदस्यों के साथ व्यापार करने वालों से भी सरकारी लाभ छिन लिये जायेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी जी एक बार साहसिक कदम उठाकर टेक्स चोरों को 'सबक' सीखा दीजिये। देश की सवा सौ करोड़ जनता के साथ देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भागीदारी निभा रहे करोड़ों का टेक्स देने वाले उद्योगपतियों, व्यवसायियों का भी सम्मान होगा और उनका भी साहस और आपके प्रति विश्वास बढ़ेगा।
मोदी जी अगर टेक्स चोरी को रोकना है तो आप सरकारी टेक्स नीति में गलिये निकालकर टेक्स चोरी करवाने वाले लोगों को भी इन चोरों के साथ देश द्रोही बनाइये जिससे टेक्स चोरों के मार्गदर्शक ही नहीं होंगे तो चोरी की राह कठीन हो सकती है।
प्रधानमंत्री जी एक बार सच्चे मन से टेक्स चोरों के $िखलाफ कदम उठा लीजिये वैसे भी 2019 तक आपको प्रधानमंत्री रहना ही है और आगे भी आपको प्रधानमंत्री पद तक पहुँचाने वाले देश की सवा सौ करोड़ जनता है। इन टेक्स चोरों के वोट तो हमेशा मौज़ूदा सरकारों की आलोचना करते हुए $िखलाफ ही पड़ते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)