Mahka Rajasthan Vimochan By CM Vasundhra Raje

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Rajasthan Chief Minister Vasundhra Raje Vimochan First Daily Edition of Dainik Mahka Rajasthan Chief Editor ABDUL SATTAR SILAWAT

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Dainik MAHKA RAJASTHAN

Tuesday, December 15, 2015

जयपुर ज्वैलरी की शुद्धता में चोरियां world gold council agreed Jaipur Jewellery not pure


वर्ल्ड गोल्ड काउसिंल ने माना

जयपुर ज्वैलरी की शुद्धता में cCFO65रियां

भारत में वर्ल्ड गोल्ड काउसिंल के जनसम्पर्क प्रबन्धक सोम सुंदरम् ने भी राजस्थान के जयपुर की गोल्ड ज्वैलरी के विश्व स्तर पर घटती शुद्धता की शाख पर कहा कि भारत में 316 हॉल मार्क सेन्टर हैं जिसमें तमिलनाडू में सर्वाधिक 58 जबकि जयपुर में 11 हॉल मार्क सेन्टर हैं।
वर्ल्ड गोल्ड काउसिंल के अनुसार भारत के 4 लाख ज्वैलर्स की शाख को जयपुर की गोल्ड ज्वैलरी में शुद्धता की कमी के बाद दुनिया में ‘शक’ के घेरे में ला खड़ा किया है जबकि अगले 5 साल में भारत का ज्वैलरी एक्स्पोर्ट 8 अरब से 40 अरब डालर तक विश्व बाजार में बढ़ सकता था, लेकिन जयपुर के ज्वैलरों के शुद्धता में चोरियों के कारनामों से भारत की ज्वैलरी की प्रतिष्ठा विश्व बाजार में खत्म हो गई है।


ए.एस. सिलावट - वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक

जयपुर। हीरे-पन्ने, माणक-मोती, रत्न जड़ित आभूषण राजा-महाराओं से लेकर मुगलों तक पहली पसंद के साथ अपनी विश्वसनीयता के लिए विश्व प्रसिद्धी हासिल कर चुका जयपुर आज भी सिंगापुर, हांगकांग, दुबई, लंदन से लेकर न्यूयॉर्क तक भारतीय ज्वैलर्स के शोरूम विदेशियों की पहली पसंद होते हैं और अन्य शोरूम में भारतीयों द्वारा भेजी ज्वैलरी पर ही पहली नज़र रुकती है। हीरे पन्ने और जवाहरात के स्टोन्स उत्पादन वाले अफ्रीकी देश भी अपने स्टोन्स को भारतीय ज्वैलरी मार्केट में बेचना पसंद करते हैं। भारतीय ज्वैलरी की दुनिया में यह प्रतिष्ठा बनाने में जयपुर के सर्राफा परिवारों की ‘पीढ़ियों’ ने आहुति दी है।। ज्वैलरी की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए नकली ‘स्टोन्स’ के सौदों में करोड़ों के धोखे खाकर भी नकली माल का ज्वैलरी में उपयोग नहीं होने दिया, लेकिन आज के जयपुर में ज्वैलरी व्यवसाय में जुड़े लोगों में ‘मिलावट खोरों’ नकली और कम गुणवत्ता के स्टोन्स की ज्वैलरी को ‘असली’ बताकर बेचने वालों ने अपने पाँव जमा रखे हैं। दुर्भाग्य से ज्वैलर्स का मुखौटा ओढ़े इन मिलावटखोरों को जयपुर के प्रतिष्ठित और बड़े जौहरी परिवारों का संरक्षण भी मिल रहा है और कुछ बड़े जौहरी परिवार जयपुर जौहरियों की शाख को धूमिल कर रहे ‘मुखौटा’ ओढ़े मिलावटखोरों के साथी भी बन चुके हैं।
राजस्थान ही नहीं देश के प्रसिद्ध दैनिक अख़बार ने पिछले दिनों जयपुर ज्वैलरी के प्रतिष्ठित घरानों के फर्म के नाम सहित उनकी ज्वैलरी में ‘खोट’ की खबरें प्रकाशित की थी। सोने की ज्वैलरी में 22 कैरेट के रूपये लेकर 16 और 18 कैरेट तक के नैकलेस, चूड़ियाँ, इयररिंग, अगूठियाँ पकड़ी गई। अख़बार में छपी ख़बरों के बाद सुत्रों के हवाले से खबर आई थी कि जयपुर के बड़े धोखेबाज़ ज्वैलर्स पर राजस्थान पुलिस ने बहुत बड़ी कार्यवाही की तैयारी कर ली थी, लेकिन मिलावटखोर ज्वैलर्स को संरक्षण देने वाले ‘राजनेताओं’ ने इस पुलिस कार्यवाही को रुकवाकर जयपुर के मिलावटखोर ज्वैलर्स को भोली-भाली जनता को लूटने की खुली छूट दिलवा दी।
जयपुर के ज्वैलर्स की सौ-सौ किलो ज्वैलरी जयपुर एयरपोर्ट पर कस्टम के ईमानदार अधिकारियों ने ‘कस्टम चोरी’ के आरोप में कई बार पकड़ी, लेकिन कस्टम चोरी की ज्वैलरी और व्यापारी पर कार्यवाही की ख़बर कभी नहीं आती है। सरकार को टेक्स चोरी का ‘चूना’ लगाने वाले ज्वैलर्स का करोड़ों रूपया ‘हवाला’ को पुलिस पकड़ती है, लेकिन उसके बाद इन्कम टेक्स, डीआरआई, या अन्य कार्यवाही की भनक भी नहीं लगती है तथा अन्दर ही अन्दर ‘आर्थिक’ अपराधियों को संरक्षण देकर निरन्तर टेक्स चोरियों के लिए प्रोत्साहन मिलता रहता है और आगे भी यह स्थिती बदलने जैसी नहीं लगती है।
अब ज्वैलरी शो की सच्चाई जान लेते हैं। जयपुर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के दो ज्वैलरी शो हर साल होते हैं। इन दोनों शो के आयोजक एवं एसोसिएशन में कुछ चेहरे वही दिखाई देते हैं जिन पर राष्ट्रीय स्तर के दैनिक अख़बार में मिटावटी ज्वैलरी बेचने की रिपार्ट ‘हॉल मार्क’ एवं एमएमटीसी की लेबोरेट्री से जाँच करवाकर प्रकाशित की थी। ज्वैलरी शो में सरकारी खजाने को कैसे ‘चूना’ लगाते हैं पहले यह जान लेते हैं।
आने वाली ज्वैलरी चाहे दिल्ली, मुम्बई, कोलकता या चैन्नई से आती है प्राप्त जानकारी के अनुसार शो में उसे ‘अनसोल्ड’ (बिना बिकी हुई) बताकर कस्टम एवं अन्य टेक्स से बचा लिया जाता है। ज्वैलरी शो में बेची जाने वाली किसी भी ‘आइटम’ का बिल किस फर्म का है। इस नाम की फर्म रजिस्ट्रर्ड भी है। ज्वैलरी का लाइसेंस या ज्वैलरी मिलावटी निकलने या स्टोन्स नकली निकलने पर ग्राहक कहाँ जाकर इस फर्म को ढ़ंूढेगा। बिल पर फर्म का नाम, फर्जी दुकान नम्बर, जौहरी बाजार, जयपुर के साथ ईमेल लिखा होता है। अब आप फर्जी दुकान नम्बर पर जौहरी बाजार में कहाँ जायेंगे।
ज्वैलरी शो में बेचे जाने वाले माल पर ‘हॉलमार्क’ का निशान 90 प्रतिशत पर नहीं होता है। विदेशी ग्राहक जिस माल को ज्वैलरी शो से खरीदकर ले जाता है उसको अपने देश में पाँच-दस साल बाद मिलावट या नकली स्टोन की शिकायत पर सब्र करने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है। विदेशी व्यापारी ज्वैलरी शो के स्टाल मालिक को ढ़ूंढने भी निकले और व्यापारी के खिलाफ कोई कार्यवाही भी करे, तो ऐसे व्यापारी एसोसिएशन की सदस्यता शुल्क इसीलिए देते हैं ताकि उनकी एसोसिएशन ऐसे मामलों में उनकी मदद कर सके या एसोसिएशन के नाम पर उन्हें धमकाया जा सके।
राजस्थान सरकार की जिम्मेदारी है कि ज्वैलरी शो में ‘हॉल मार्क’ स्टाल लगाकर शो में बेची जा रही ज्वैलरी की शुद्धता और गुणवत्ता की जाँच करें और जयपुर ज्वैलरी की ‘शाख’ को बनाये रखें। कस्टम चोरी से ज्वैलरी शो में लाई जाने वाली सैकड़ों किलो ज्वैलरी की जाँच के लिए एयरपोर्ट के साथ ज्वैलरी शो में भी कस्टम विभाग द्वारा विशेष दस्ता तैनात किया जाए। ज्वैलरी शो के समय देश-विदेश से होने वाले करोड़ों रूपये के हवाले की धरपकड़ के लिए डीआरआई एवं पुलिस दल संयुक्त दल बनाकर निगरानी कर कालेधन के आदान प्रदान को भी रोकें। आयकर विभाग एवं राजस्थान सरकार के सेल्स टेक्स, वेट एवं अन्य कर में ज्वैलर्स को दी गई ‘सेल्फ एसेस्मेंट’ छूट की निगरानी के लिए भी ज्वैलरी शो में विभाग द्वारा विशेष दस्ते नियुक्त कर सरकारी खजाने की आय को लूट से बचाने का प्रयास करना चाहिये।


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Friday, August 28, 2015

दिल्ली गये थे देश बदलने, ओटन लगे कपास!


अब्दुल सत्तार सिलावट            
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आपने दिल्ली के लाल किले से दो बार देश में साम्प्रदायिकता रोकने और देश के विकास में सबको साथ लेने का नारा ज़रूर दिया, लेकिन इस नारे का अंज़ाम भी 27 अगस्त 2015 को गुजरात में भड़की हिंसा को रोकने के लिए आप द्वारा की गई अपील की तरह बेअसर ही रहा और जिस गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़कर आप गुजरात मॉडल जैसा भारत बनाने दिल्ली की संसद में पहुंचे थे वहाँ जाकर आप विदेश यात्राएं, अपने राजनीतिक विरोधियों को घर बैठाने, छोटे-छोटे देशों से दोस्ती कर संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता का समर्थन जुटाने में लगे हैं। वहीं देश में नक्सलवाद, कश्मीरी अलगाववाद, पाकिस्तानी आंतकियों की घुसपैठ और अब आरक्षण की माँग पर आपके गुजरात को सेना के सुपुर्द करना पड़ा। आज सेना गुजरात में, कल महाराष्ट्र और परसों बिहार चुनाव में होगी तो फिर चीन और पाकिस्तान की सीमाएं कौन सम्भालेगा।
प्रधानमंत्री जी आप दिल्ली जाने के मकसद से भटक गये हैं। 'गये थे देश बचाने और ओटन लगे कपास' वाली कहावत को सिद्ध करने लग गये हैं। आप उस व्यापारी या उद्योगपति जैसे बन गये हैं जिसकी फैक्ट्री में मशीनें ज़ंग खा रही हो, उत्पादन बंद हो, मज़दूर हड़ताल पर हो, लेकिन फैक्ट्री मालिक मंडियों में दौड़ भाग कर अपना उत्पादन बेचने के लिए ऑर्डर बुकिंग करता हो। उसे इस बात की चिंता नहीं है कि फैक्ट्री बंद है, माल कहां से भेजेंगे। बस, वैसे ही आप दुनिया भर में भारत के योग, भारत की परमाणु और सैन्य शक्ति, विकास की योजनाओं का बखान कर विदेश में बसे भारतीयों से तालियां बजवा रहे हैं और घर में साम्प्रदायिकता, जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद का ज़हर बढ़ता जा रहा है।
आपकी पार्टी के अनुसार देश का सबसे काला अध्याय 'आपातकाल' में इंदिरा गांधी ने अख़बारों पर सेंसरशीप, अपने राजनीतिक विरोध की ख़बरों को रोकने के लिए लगाई थी, वैसे ही आज समय आ गया है कि देश के सोशल मीडिया और अख़बारों से अधिक सबसे तेज, सबसे पहले, ब्रेकिंग शगुफे पेश करने वाले इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सीमाएं तय की जाये। आज टीवी न्यूज़ चैनलों पर एक व्यक्ति अपने दिल में भरा ज़हर मुसलमानों की घर वापसी, मुसलमान लड़कियों से शादी कर हिन्दू बना दो, मुस्लिमों की बढ़ती आबादी देश के हिन्दूओं के लिए ख़तरा जैसे साम्प्रदायिक ज़हर को बिना परिणाम सोचे देश को भ्रमित कर रहे हैं। इस ज़हर पर हिन्दू और मुसलमानों के बड़े धर्म गुरू, राजनेता, सांसद और जि़म्मेदार पदों पर बैठे लोग आग पर पानी डालने के बजाये टीवी चैनलों की अदालतों, सीधी बात, इन्टरव्यू में साम्प्रदायिकता पर पेट्रोल छिड़क रहे हैं। ऐसे ऐसे तर्क देते हैं कि सीधा साधा साफ दिल वाला भारतीय (हिन्दू और मुसलमान दोनों ही) भी इनके तर्क सुनकर भगवा और हरा रंग का चौला धारण कर साम्प्रदायिकता की बहस का सहभागी बन बैठता है।
टीवी चैनलों का दूसरा ताजा उदाहरण गुजरात आरक्षण आन्दोलन है जिसमें 25 अगस्त की रात अहमदाबाद में एक इलाके में छिटपुट झड़प हुई, लेकिन टीवी कवरेज की प्रतिक्रिया में पूरा गुजरात दूसरे दिन सिर्फ इसलिए जलना शुरू हो गया कि हार्दिक पटेल का बयान टीवी चैनलों पर दिखाया गया जिसमें हार्दिक पटेल ने कहा कि 'हमारे लोगों को पुलिस ने घरों में घुसकर मारा, गाडिय़ों के शीशे फोडे।' हालांकि यह बात सत्य थी लेकिन सभी टीवी चैनलों ने जिस प्राथमिकता से पुलिस बर्बता की कवरेज की, उसी का परिणाम सेना का फ्लैग मार्च और हार्दिक पटेल द्वारा पहले पुलिस बर्बरता में शामिल अधिकारी और कर्मचारियों को बर्खास्तगी की मांग और मज़बूत होकर गुजरात को शांत होने से रोक रही है।
साम्प्रदायिकता एवं आरक्षण आंदोलन की बेलगाम कवरेज के बाद टीवी पर चलने वाले विज्ञापनों पर भी एक नज़र डालें। कण्डोम के जो विज्ञापन पहले दूरदर्शन पर रात 11 बजे के बाद दिखाये जाते थे, उन विज्ञापनों को सुबह से शाम हर चैनल पर 15 से 30 मिनट के अन्तराल पर युवती को लगभग निर्वस्त्र समुद्र किनारे लहरों के पानी भीगोकर इन शब्दों के साथ दिखाया जा रहा है कि 'दिन भर करने का मन....'। अब ऐसे विज्ञापन जब आप दिन भर दिखाओगे तो फिर आबादी कंट्रोल पर चिंता और बहस करना तो छोडऩा ही होगा। एक विज्ञापन में बारात में घोड़े की नाल में जंग होने से घोड़ा 'हिनहिनाता' है और कम्पनी कहती है जंग निरोधक सीमेन्ट वाले घर में जंग की नो एंट्री। पिछले पाँच साल से जंग निरोधक सीमेन्ट का प्रचार शुरु हुआ है, जंग की सच्चाई तो ईश्वर जाने, लेकिन क्या इससे पहले बिना जंग निरोधक सीमेन्ट से बनी इमारतें अब गिर जाऐंगी।
प्रधानमंत्री जी, आप जिस राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं उसकी पहचान नैतिकता, देशभक्ति, हिन्दू रक्षा जैसे नारों से होती है। आपको गुजरात के मुख्यमंत्री से दिल्ली की संसद और प्रधानमंत्री तक पहुँचाने में देश के इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया की भागीदारी उल्लेखनीय एवं प्रसंसनीय है। लेकिन अब समय आ गया है कि मीडिया की कुछ मर्यादाएं, कुछ सीमाएं ज़रूर तय कर लेनी चाहिये अन्यथा बिहार चुनाव में मतदाताओं को भाजपा से जोडऩे के लिए टीवी चैनलों के लिए 'कण्डोम' का विज्ञापन बनाने वाली पीआर कम्पनीयां भाजपा के कमल को गुटखा, खैनी, माचिस, माथे की बिन्दिया के साथ कण्डोम के पैकेट पर भी कमल का निशान छापकर चुनाव प्रचार सामग्री की थैलीयों में नहीं डलवा देवें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, August 21, 2015

गांव के वार्ड की आबादी वाले देशों के आवभगत में भारत के प्रधानमंत्री


चौदह देशों का फिपिक सम्मेलन

गांव के वार्ड की आबादी वाले देशों के आवभगत में भारत के प्रधानमंत्री


 अब्दुल सत्तार सिलावट

राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी में पिछले एक माह से 14 देशों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की फिपिक समिट की तैयारी चल रही थी। जयपुर विकास प्राधिकरण, नगर निगम, पर्यटन विभाग के साथ सुरक्षा में तैनात एक सौ से अधिक आईपीएस, आरपीएस एवं दो हजार से अधिक जवान। 30 किलोमीटर एयरपोर्ट से होटलों तक सभी विभागों के सिविल इंजीनियर, इलेक्ट्रीक एक्सईएन के साथ सीनियर अधिकारी तैनात।
14 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के ठहरने के लिए प्रदेश की सर्वाधिक सुविधायुक्त होटल रामबाग पैलेस, जयमहल पैलेस और राजपूताना शेरेटन में ठहरने और मेहमानों के खाने का प्रबन्ध। एयरपोर्ट से होटलों तक सरकार ने सड़क के रिफ्लेक्टर से लेकर ग्रीनरी एवं फुटपाथ का रंगरोगन एकदम नया कर दिया। एक रात में जयपुर शहर का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा खड्डा भर दिया गया। शुक्रवार सुबह दिल्ली से मेहमान देशों के राष्ट्राध्यक्ष दो चार्टर प्लेन से सांगानेर के स्टेट हैंगर पर उतरे और उनका स्वागत हमारी मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने किया। राष्ट्राध्यक्षों की अगवानी, स्वागत, पधारो म्हारे देस के साथ स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन मेहमानों के लिए किया गया।
राष्ट्राध्यक्षों की सुरक्षा के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा। सड़कों पर वर्दीधारी। होटल एवं समिट में कुछ वर्दीधारी बाकी सिविल में। जबरदस्त सुरक्षा। एक दिन पहले गुरुवार को एयरपोर्ट से होटलों तक मेहमानों को कैसे लायेंगे इसका पूर्वाभ्यास भी किया गया।
अब एक नजर चौदह देशों की भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिती पर डालकर हमारी मेहमान नवाजी पर करोड़ों के खर्च एवं सरकार की दूर दृष्टी देख लेते हैं। चौदह देशों में एक देश 'निउव' की आबादी मात्र 1190 है इस देश की विशेषता फ्रि वाई फाई। जो भारत के लिए प्रेरणा देने वाला देश है! 1190 में से 50 व्यक्ति भारत में आज अपने देश के गवर्नर जनरल के साथ जयपुर घूम रहे हैं। दूसरा देश 'नौरु' इसका क्षेत्रफल 21 वर्ग किलोमीटर है। इस देश के राष्ट्रपति बारोन वाक्या के स्वागत में हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, राजस्थान की मुख्यमंत्री 'पलक-पावड़े' बिछा रहे हैं! चौदह देशों में एक देश है 'टुवालु' क्षेत्रफल 26 वर्ग किलोमीटर देश की आय का साधन इन्टरनेट डोमियन नेम डॉट टीवी, वर्ष भर की आय 22 लाख डॉलर। एक देश है 'पालाउ' क्षेत्रफल 466.55 वर्ग किलोमीटर। इस देश के राष्ट्रपति टामनी रेमेंगगेशन ने सबसे पहले परमाणु हथियारों के स्टोर और इस्तेमाल के खिलाफ घोषणा की है इसलिए हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी इस देश से प्रभावित हो गये और सम्भवत: प्रेरणा भी ले सकते हैं। चौदह देशों में एक देश मार्शल आइलैण्ड क्षेत्रफल 181 वर्ग किलामीटर इनके साथ कुक आइलैण्ड क्षेत्रफल 240 वर्ग किलोमीटर। अब तीन देश टोंगा, माइक्रोनेशिया और किरिबाटी इन तीनों की समान आबादी एक लाख तीन हजार से पांच हजार तक की है।
चौदह देशों के विशाल समिट में मात्र दो देश फिजी (आबादी 8.58 लाख) और पोपिया न्यू जिनी (70.59 लाख) बड़े देश है जबकि बाकी बारह देशों की आबादी और क्षेत्रफल से दस गुना बड़ा क्षेत्रफल और आबादी अजमेर नगर निगम की है। जहाँ मेयर के चुनाव के लिए भाजपा के पार्षदों में दो धड़े बनकर एक बागी प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इसी प्रकार राजस्थान के कई नगर परिषदों एवं पालिकाओं में भी सत्ता दल भाजपा के पार्षदों में गुटबाजी के कारण चेयरमेन पद निर्दलीयों और कांग्रेस की झोली में जा रहे हैं, लेकिन भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इतने 'बड़े-बड़े' देशों के राष्ट्राध्यक्षों की अगवानी में व्यस्त हैं इसलिए भाजपा के अन्दरूनी झगड़े में हस्तक्षेप भी नहीं कर पा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि अजमेर नगर निगम की बगावत में वसुन्धरा राजे हस्तक्षेप कर दें तो यह सीट बच सकती है, ऐसा ही राजस्थान की कई नगर परिषदों और पालिकाओं में भी भाजपा का बोर्ड बनाने के लिए मुख्यमंत्री स्वयं या इनके नाम से एक फोन की आवश्यकता है जो भाजपा के बागीयों या निर्दलीयों को भाजपा के बोर्ड बनाने में मदद दिलवा सकते हैं। खैर, मुख्यमंत्री चौदह देशों के राष्ट्राध्यक्षों की 'आव-भगत' में व्यस्त हैं। पालिका चुनाव तो आते-जाते रहते हैं। इतने बड़े-बड़े देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री गवर्नर जनरल की आव-भगत का मौका बार-बार थोड़े ही मिलता है!
हमारे प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी के विदेश दौरों के बाद तथा हमारे देश की विदेश नीति के चाणक्यों की दूर दृष्टी और देश की अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के बारे में हमारे बढ़ते कदमों की पहचान आज राजस्थान में हो रहे चौदह देशों की अन्तर्राष्ट्रीय समिट से ही लगा सकते हैं। इन देशों से हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आर्थिक समझौतों की फाइलों पर दस्तखत कर राष्ट्राध्यक्षों के साथ 'आदान-प्रदान' करते फोटो भी खिचवाऐंगे? क्या इन देशों में हमारे उद्योगपति निर्यात कर गिरते रूपये का स्तर सुधार लेंगे? फिपिक सम्मेलन में आये चौदह देश यदि भारत की पाकिस्तान या चीन से ईश्वर नहीं करे, कभी युद्ध हो जाये तो क्या यह देश अपनी सेना, इन देशों के लड़ाकू विमान या थल सेना और पनडुब्बीयां भेजकर हमारे देश की मदद करने की स्थिती में हैं? क्या भारत के स्पेस सेन्टर श्री हरिकोटा से इन देशों के रॉकेट छोड़कर भारत को आर्थिक लाभ हो सकता है या हम इन्हें अपने देश से आलू, प्याज, गेहूँ, काली मिर्च भेजकर विदेश व्यापार से मुद्रा को मजबूत कर सकेंगे?
चौदह देशों की फिपिक समिट की कवरेज कर रहे एक टीवी चैनल की न्यूज एंकर ने जयपुर में खड़े अपने रिपोर्टर से जब इस समिट का लाभ पूछा तब इन देशों के क्षेत्रफल और आबादी से अनभिज्ञ रिपोर्टर का जवाब आश्चर्य चकित करने वाला था। रिपोर्टर ने कहा 'प्रधानमंत्री मोदी की दूर दृष्टी और भाजपा की नई सरकार की विदेश नीति का परिणाम है यह विशाल अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन। शाम को विदेश व्यापार के बहुत से समझौते प्रधामंत्री मोदी की उपस्थिती में होंगे। रिपोर्टर आगे कहता है कि चौदह देशों के सम्मेलन से चीन जैसे देश का बढ़ता वर्चस्व इस क्षेत्र में खत्म हो जायेगा।' अब आप ही अंदाज लगाऐं कि हजार बारह सौ की आबादी और 21 वर्ग किलामीटर क्षेत्रफल वाले एक दर्जन देशों के लिए हमारे एक वार्ड की राशन की दुकान ही बहुत है। ऐसे देशों को हम क्या तो बेचेंगे और इनके साथ खड़े होने से चीन को क्या फर्क पड़ेगा?

यह लेख फिपिक सम्मेलन की आलोचना या इसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए नहीं है, बल्कि भारत जैसे 130 करोड़ के देश के नये राजनेता सैकड़ों करोड़ रूपये और दो दिन तक केन्द्रीय एवं राजस्थान सरकार की पूरी मशीनरी को चौदह देशों के मेहमानों के आवभगत में 'पलक पावड़े' बिछाकर किस दिन की तैयारी कर रहे हैं। हमें इन देशों से किस चीज की उम्मीद रखनी चाहिए और हमारे राजनेताओं को इन देशों को गले लगाने के पीछे कौन सा छुपा रहस्य दिखाई दे रहा है? इस पर आप भी विचार करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, August 3, 2015

हम देश को किस ओर ले जा रहे हैं...


अब्दुल सत्तार सिलावट                    
जुलाई 2015 का आखिरीे सप्ताह। देश के कुछ राज्यों में भारी बारिश से तबाही। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब का निधन और फ़ांसी की सजा पर राष्ट्रीय बहस। इस सब के बीच 30 जुलाई 2015 की पूर्व रात आज़ादी के बाद पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात में सुनवाई (बाद में पता चला यह सुनवाई दूसरी बार थी)। मुम्बई बम धमाकों के आरोपी की फ़ांसी को उम्र कैद में बदलने की 'पुकार' में मुसलमानों से अधिक 'सेक्युलर' हिन्दू नेताओं और समाज के प्रतिष्ठित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट में 'गुहार' लगाई। खैर, इस बीच फ़ांसी हो गई और सुरक्षा एजेन्सीयों ने बहुत ही 'दुस्साहसपूर्ण' निर्णय कर 'डेथ-बॉडी' मुम्बई तक पहुंचाकर इस घटना का पटाक्षेप कर दिया और मीडिया पर आरोप लगे कि देश के पूर्व राष्ट्रपति के निधन, सुपुर्द-ए-ख़ाक से अधिक कवरेज फ़ांसी की घटना के 'चलचित्र' को दी गई।
अगस्त के पहले दिन से शुरु होता है भारत के मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए 'ख़तरा' साबित करने का इलेक्ट्रोनिक मीडिया का 'मिशन' और इस आग में घी की पहली धार डालते हैं त्रिपुरा राजभवन में बैठे महामहिम राज्यपाल। महामहिम त्रिपुरा में भारी बारिश की तबाही को भुलकर फ़ांसी के बाद मुम्बई में याकुब मेमन की मय्यत में शामिल मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताकर ही शांत नहीं होते हैं। यह सलाह भी देते हैं कि मय्यत में शामिल मुसलमानों पर कड़ी नज़र रखी जाये। यह लोग आईएसआईएस में शामिल हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से उठाकर भाजपा की केन्द्र सरकार ने त्रिपुरा के राज्यपाल जैसे पद पर जिन्हें बैठाया है उनमें बैठा मुस्लिम विरोधी कट्टरपंथी इतने बड़े पद की गरीमा को कलंकित कर रहा है। महाराष्ट्र और मुम्बई त्रिपुरा की राजधानी या त्रिपुरा की सीमा में नहीं आते हैं और त्रिपुरा के राज्यपाल के पास महाराष्ट्र का अतिरिक्त प्रभार भी नहीं है फिर उन्हें मय्यत में शामिल हजार-पाँच सौ मुसलमानों से सवा सौ करोड़ के भारतवासियों की सुरक्षा की चिन्ता का 'ठेका' किसने दिया?

त्रिपुरा के महामहिम की अकारण चिन्ता की मशाल को हमारे इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने हाथों हाथ सम्भाल लिया और आईएस के काले झण्डे, तालिबान के आतंकी कमाण्डों के दिवारों पर दौड़ते दृश्य और बेगुनाहों पर बंदूकें तानकर खड़े आतंकियों के 'रेडिमेड क्लिप' के साथ ऊँची आवाज़ में स्क्रिप्ट पढ़कर एक भय का माहौल तैयार करना शुरु कर दिया। आईएस और तालिबान सीरिया, इराक और क्यूबा जैसे देशों के लिए बहुत बड़े हमलावर हो सकते हैं, लेकिन भारत जैसे विशाल देश की ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। हमारे टीवी चैनल आईएस और तालिबान को जाने अन्जाने निमन्त्रण के साथ यह भी बता रहे हैं कि भारत का मुसलमान याकुब मेमन को फ़ांसी के बाद देश की कानून व्यवस्था और सुरक्षा एजेन्सीयों से नाराज़ ही नहीं आक्रोशित भी है। जबकि भारत के मुसलमान ने ना तो संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफज़ल गुरु को फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था और ना ही मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब की फ़ांसी पर कोई एतराज़ किया था, बल्कि भारत का मुसलमान तो ऐसे आतंकियों को मौत की सज़ा पर ख़ुश हुआ जिन्होनें कौम का नाम बदनाम किया।
मीडिया याकुब मेमन की फ़ांसी पर अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पुरे घटनाक्रम को ऐसे पेश करता रहा जैसे वो आतंकी संगठनों को निमन्त्रण दे रहा हो कि ऐसे में यहाँ आप 'प्रवेश' करते हैं तो भारत के मुस्लिम नौजवान आपके साथ मिलकर भारत के लाल किले पर तिरंगे के साथ आईएस का काला झंडा लहराने में भी मदद कर सकते हैं। जबकि हकीकत यह है कि भारत के अधिकतर मुस्लिम नौजवान बेरोज़गार हैं, उन्हें आईएस, याकुब की फ़ांसी या आतंकी गतिविधियों में कोई रूचि नहीं है। इन मुस्लिम युवाओं को इनके माँ-बाप देर तक सोने पर जबरन उठाकर मज़दूरी के लिए भेजते हैं और यह नौजवान भी अपने हाथ-खर्च जितनी 'दिहाड़ी' मजदूरी कर शाम को लौट आता है। एक सर्वे के मुताबिक भारत का मुसलमान 'सेल्फ एम्प्लॉयड' है वो अपनी रोजी रोटी मेहनत मजदूरी कर कमाता है और खाता है। रात का खाना खाने के बाद गली के बाहर चाय की होटल पर लगे टीवी पर यही नौजवान क्रिकेट मैच या कोई पुरानी फिल्म देखकर लौट आता है। इससे अधिक दोस्तों ने रोक दिया तो रात ग्यारह बजे तक बजरंगी भाईजान या करीन की ख़ूबसूरती पर 'चटकारे' लेकर लौट आते है।
याकुब को फ़ांसी क्यों हुई। 30 जुलाई की रात को देश के 'समझदार' लोग क्यों जागे। इन बातों से आम मुसलमान को कोई लेना देना नहीं है। वह तो अपनी पेट और परिवार की आग बुझाने में रोज सुबह उठकर मजदूरी की तलाश में भटककर अपनी जि़न्दगी पूरी कर रहा है जबकि देश के समझदार राजनेता, साम्प्रदायिकता की खेती करने वाले 'किसान' (हिन्दू-मुस्लिम दोनों किसान) मुसलमानों की बढ़ती आबादी के आंकड़ों को लेकर चुनावों से पहले ऐसा माहौल बना देते हैं कि 2050 तक मुसलमान भारत में हिन्दूओं से अधिक हो जायेंगे इसलिए हमारी पार्टी को 'वोट' दो। हिन्दूओं का वोट तो मुसलमानों आबादी का डर दिखाकर एक झंडे के नीचे ले आने में सफल हो गये, लेकिन मुसलमानों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए साम्प्रदायिक दंगों में हजार पाँच सौ को मार देना, आईएसआईएस-तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ने के आरोपों के अलावा भी मुसलमानों को देशभक्त बनाने में 'दुबले' हो रहे नेताओं और संगठनों को कुछ करना चाहिये!
मीडिया के बड़े घरानों से अनुरोध है कि मैनेजमेन्ट इंस्टीट्यूट में स्टूडेन्ट्स को जीवन के सफलता के 'गुर' बताने के साथ ही टीवी चैनल के 'कर्मचारियों' को भी देश में शांति, कौमी एकता बनाये रखने जैसे कार्यक्रम और भाषा का उपयोग करने के 'गुर' भी सिखाएं। 30 जुलाई मुसलमानों के सबसे बड़े 'नेता' याकुब मेेमन को फ़ांसी के बाद देश के सबसे अधिक लोकप्रिय चैनलों ने मुसलमानों के लोकप्रिय 'नेता' औवेसी साहब और हिन्दूओं के सबसे अधिक लोकप्रिय 'नेता' साक्षी महाराज को विशेष सम्मान देते हुए एक-एक घंटे के इन्टरव्यू प्रसारित किये। इन नेताओं ने अपने समाज को क्या संदेश दिया इस बात से टीआरपी बढ़ाने में सक्रिय टीवी चैनल के विद्वान पत्रकार बेफिक्र थे, लेकिन जाने अन्जाने में देश की जनता को टीवी चैनल के कार्यक्रमों से इतना पता चल गया कि अब भारत में मोदी से मुकाबला करने वाला मुसलमानों का नेता असदुद्दीन औवेसी ही है तथा कट्टरपंथी हिन्दू नेताओं की दोड़ में साक्षी महाराज को चैनल वालों ने सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है।
देश की जनता के साथ मेरे देश की सुरक्षा एजेन्सीयों के आला अधिकारी भी टीवी चैनलों के भडकाऊ कार्यक्रमों को देखते हैं, लेकिन इन्हें रोकने, इन पर अंंकुश लगाने की पहल तब तक नहीं करते हैं जब तक देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हो जाता है। सुरक्षा एजेन्सीयों के प्रभाव का एक नमूना फ़ांसी के बाद याकुब मेमन के 'जनाज़े' को टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर नहीं दिखाने के आदेश की पालना इतनी सख़्ती से हुई कि आज तक टीवी चैनल तो दूर बेकाबू सोशल मीडिया पर भी किसी 'सर-फिरे' ने मय्यत की क्लिप डालने का साहस नहीं किया। सुरक्षा एजेन्सीयों के कर्णधार टीवी चैनलों पर देश की जनता के साथ भडकाऊ भाषणों से खिलवाड़ करने वाले हिन्दू और मुसलमान नेताओं के बढ़ते प्रवेश को रोकें। भले ही इसके लिए मीडिया को 'कान' में 'ऑफ दी रिकॉर्ड' आदेश भी देना पड़े। ऐसा देश की कौमी एकता और शांति के लिए ज़रूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, July 23, 2015


राजस्थान की पत्रकारिता में स्वयं को भीष्म पितामह के वंशज समझने वालों के अख़बार में आज (23 जुलाई 2015) आयकर छापे के समाचार को इसलिए नहीं छापा गया कि देश के राजस्व भण्डार पर डाका डाल रहे आयकर चोर समाचार पत्र से नाराज़ होकर वित्तीय लाभ देना बंद नहीं कर दें। जबकि इससे बड़े राजस्थान ही नहीं देश के नम्बर एक अख़बार ने प्रथम पृष्ठ पर आयकर चोरों की फर्म के नाम सहित समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

अब्दुल सत्तार सिलावट          
 
 लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ प्रेस-मीडिया-समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार से आज के समाज को अफसरों और राजनेताओं से अधिक उम्मीदें, विश्वास हैं, इसलिए नलों में गंदा पानी आने पर, बिजली कटौती, अस्पताल में अव्यवस्था या गली मोहल्ले की गन्दगी पर अफसरों और नेताओं से पहले पत्रकार को आवाज़ देते हैं। आज देश की संसद, विधानसभाएं और कई बार कहा जाता है कि न्यायालयों में चल रहे जनहित के मुकदमों पर भी मीडिया की खबरों का प्रभाव या मार्ग दर्शन दिखाई देता है।
मीडिया भी बहुत जागरुक है, आपने समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की ख़बरों में देखा होगा कि चार बोतल शराब या पुरानी दस हजार कीमत वाली मोटर साइकिल की चोरी में पकड़े गये चोर के दोनों तरफ कांस्टेबल-थानेदार खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं और वह फोटो दूसरे दिन अख़बारों में दिखाई देता है। ऐसा ही चैन स्नेचींग में पकड़े जाने पर और इससे भी आगे बढ़कर गली मोहल्ले की नाबालिग लड़की किसी गली छाप हीरो के बहकावे में आकर कहीं चली जाये तो उसके बाप के नाम से ख़बर को छाप देते हैं, ऐसी ही बलात्कार के झूठे आरोप की भी ख़बर मिल जाये तो हम बलात्कार के समय चश्मदीद गवाह बनकर ख़बर को 'रोमांटिक' बनाकर छाप देते हैं, लेकिन सैकड़ों करोड़ की आयकर चोरी करने वाले ज्वैलर्स और शेयर ब्रोकर की ख़बर के साथ उसका या उसके प्रतिष्ठान का फोटो तो दूर उसका नाम तक बड़े से बड़ा अख़बार और लोकप्रियता की बुलन्दी छू रहे टीवी न्यूज़ चैनल भी नहीं दिखाते हैं। ऐसी ही पत्रकारिता कांग्रेस के पूर्व विधायक या नेता के होटल में सेक्स रैकेट में पकड़ी गई लड़की के हाथों और पांवों को तो टीवी न्यूज़ में 'क्लोज अप' करके नेल-पॉलिश की चमक के साथ दिखाया जाता है, लेकिन होटल मालिक नेता का नाम उजागर नहीं किया जाता है।
मीडिया की इस दोहरी भूमिका के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या मीडिया का व्यवहार भी जेडीए या निगम-पालिका के अतिक्रमण हटाओ अभियान जैसा नहीं है? जो गरीब की झौपड़ी को बिना नोटिस भी तोड़ देते हैं जबकि पूंजीपतियों की गगनचुम्बी अवैध ईमारतों को अख़बारों और टीवी चैनलों की ख़बरों में सात-सात दिन तक चलाने के बाद भी अतिक्रमण हटाने वाले दस्तों से दूर रखकर न्यायालयों से 'स्थगन आदेश' लाने का भरपूर समय और समर्थन देते हैं।

....हमारी पत्रकारिता!
ऊपर के समाचार में एक पटवारी 1100/-रू. की रिश्वत में पकड़ा गया। उसकी पोस्टिंग, रिश्वत लेने का स्थान और मूल निवास मय जिले के नाम के छापा गया है। इसी समाचार के नीचे सैक्स रैकेट के समाचार में जोधपुर के पूर्व विधायक के बेटे की होटल का या मालिक का नाम तक नहीं है। पाठक आज़ादी के बाद से आज तक के सभी पूर्व विधायकों के बेटों के नामों का अनुमान लगाते रहे। -सम्पादक

देश के राजस्व आयकर, एक्साइज एवं कर चोरों का अपराध देश द्रोह की श्रेणी में आता है। ऐसे अपराधियों को जनता के सामने नंगा करने का दायित्व सरकार के साथ मीडिया का भी है। सट्टेबाजों, आयकर चोरों, निर्यात के कंटेनरों में गलत जानकारी देकर एक्साइज चोरी करने वाले मीडिया या अख़बार वालों के कितने हितैषी हो सकते हैं। छोटे अख़बारों और टीवी चैनलों को ऐसे लोग मुँह भी नहीं लगाते हैं जबकि बड़े अख़बारों और चैनलों को साल भर में आयकर चोरी का एक प्रतिशत दस बीस लाख या एक करोड़ का विज्ञापन दे देते होंगे। यह विज्ञापन भी आयकर चोरों का बड़े अख़बारों पर 'अहसान' नहीं है बल्कि काम के बदले अनाज या मेहनत का भुगतान ही तो है। इसके बदले हम अपनी पत्रकारिता की कलम का 'सर नीचा' क्यों करें!
इन टैक्स चोरों से अधिक विज्ञापन चुनावों के समय और सरकार बनने के बाद अपनी सरकार की प्रगति के रुप में राजनैतिक दल अख़बारों और टीवी चैनलों को देते हैं फिर भी हम उनके ख़िलाफ जब भी मौका मिलता है चाहे ललित गेट हो या कारपेट मुकदमा। खूब बढ़ा चढ़ाकर समाचार छापते हैं। विज्ञापन पोषण के बदले में 'कृतज्ञता' आयकर चोरों से अधिक राजनैतिक पार्टीयों के प्रति होनी चाहिये लेकिन होता है उलट। हम सरकार का एक पृष्ठ पर विज्ञापन छापते हैं और उसी के सामने वाले पृष्ठ पर उद्घाटन में आये नेता को दस बीस लोगों के विरोध स्वरूप काले झंडे दिखा दिये, तो एक पेज उद्घाटन के विज्ञापन की खबर एक कॉलम दस सेंटीमीटर में छुप जायेगी और काले झंडे वाली ख़बर फोटो सहित तीन या चार कॉलम में छाप कर हम 'विज्ञापन का अहसान' चुका देते हैं। ऐसे समय में मीडिया या हमारा तर्क होता है स्वतंत्र पत्रकारिता का धर्म निभाते हैंं, लेकिन आयकर चोरों के नाम, प्रतिष्ठान का नाम छुपाकर क्या हम उन चोरों के 'सहभागी' का धर्म नहीं निभा रहे हैं।
क्षमा करें! थोड़े लिखे का 'थोड़ा' ही समझें और अगर दिल में 'राम' बैठा हो तो आत्मचिंतन, आत्म मंथन, ठंडे दिल से विचार करें और पत्रकारिता को कॉरपोरेट हाऊस के बड़े घरों के अख़बार भी अपने पूर्वजों को याद कर पत्रकारिता की सही राह पर लड़खड़ाते कदमों को जमा कर चलने का प्रयास करें। बड़े अख़बार छोटे अख़बारों के 'आदर्श' हैं। प्रदेश के एक बड़े अख़बार का 'नो-नेगेटिव न्यूज़' का निर्णय हमें गौरान्वित करता है ऐसा ही निर्णय आयकर चोरों या देश की राजस्व चोरी करने वालों के ख़िलाफ भी लेकर हम छोटे अख़बारों, पत्रकारों का मार्गदर्शन करें।

Friday, July 17, 2015

महामहिम: संवैधानिक पद का 'भगवा करण'


राजस्थान राजभवन रोज़ा इफ़्तार से दूर
 
अब्दुल सत्तार सिलावट
राजस्थान का राजभवन इस साल मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देने से पीछे का कारण यह रहा कि नये राज्यपाल कल्याण सिंह अपनी हिन्दूवादी छवि को 'बरकरार' रखना चाहते हैं, ऐसी बातें मुस्लिम नेताओं और संगठनों में चर्चा का विषय बनी हुई है, जबकि आज़ादी के बाद से हिंदुओं की शुभचिन्तक, रक्षक, मुस्लिम विरोध का 'दक्ष' झेल रही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इसी रमज़ान में अपनी परम्पराओं को 'ताक' पर रखकर देश की राजधानी दिल्ली में भव्य रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रम करके भारत ही नहीं पड़ौसी देशों को भी संदेश दिया कि अब भारत में धर्म की राजनीति के समीकरण बदल चुके हैं।
रमज़ान 2013 में तत्कालीन राज्यपाल मागे्रट आल्वा ने उत्तराखण्ड में हुई भारी तबाही के शोक में रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देकर देवभूमि की तबाही के प्रति संवेदना व्यक्त की थी, जिसका सभी मुस्लिम संगठनों ने भी समर्थन किया था, लेकिन इस बार देश में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी 'आड' में राजस्थान के राज्यपाल राजस्थान के दाढ़ी वाले-टोपी वाले मुसलमानों को इबादत के माह रमज़ान में रोज़ा इफ़्तारी के लिए राजभवन के प्रांगण में नहीं बुलाना चाहते हैं।
राजस्थान के महामहिम को मालूम होना चाहिये कि भारत के मुसलमानों के रमज़ान की इबादत किसी राजनेता के रोज़ा इफ़्तार पार्टीयों में जाने से ही अल्लाह कुबूल नहीं करता है बल्कि मुसलमान तो स्वयं अपने 'मन' के कदम बढ़ाता है। महामहिम आप अपने मुस्लिम नेताओं से एक बात मालूम कर लें, कि जो भी मुसलमान रोज़ा इफ़्तार की राजनैतिक पार्टीयों में आता है वह अपने घर से 'दो खजूर' अख़बार के टुकड़े में बांधकर साथ लाता है और जब इफ़्तार का वक्त होता तब आपके ज्यूस, खजूर और मेहमान नवाज़ी की रश्मों में रखे बादाम-काजू से पहले अपनी जेब से हक-हलाल की कमाई के दो खजूर निकालकर अल्लाह का शुक्र अदा कर अपना रोज़ा इफ़्तार करता है।
राजभवन के विशाल लॉन में फाईव स्टार होटल से आये खाने पर राजनैतिक मुसलमान और सरकारी कर्मचारी टूट पड़ते हैं। मोती डूंगरी, मुसाफिर खाना के पास और रामगंज़, जालूपुरा से आने वाला रोज़ेदार मुसलमान तो सिर्फ राजभवन की खूबसूरती, बैण्डवादन पर राष्ट्रगान, और मौका मिल जाये तो राजभवन में इफ़्तार पार्टी में आये किसी मंत्री से हाथ मिलाकर वापस लौटने में भी अपनी खुश किस्मती समझ लेता है। राजभवन के रोज़ा इफ़्तार से अधिक आम मुसलमान मुख्यमंत्री के रोज़ा इफ़्तार में जाना पसन्द करता है, भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या वसुन्धरा राजे। राजस्थान का मुसलमान वसुन्धरा राजे को आज भी 'अपनी' मुख्यमंत्री मानता है और यह बात सत्य भी है कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की छवि 'कट्टरवादी' नहीं है।
आज़ादी के बाद से राष्ट्रपति भवन, प्रदेशों के राज्यपाल देश की कौमी एकता की छवि को बनाये रखने के लिए रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रमों का आयोजन करते आये हैं जबकि राजभवन या राष्ट्रपति जी को मुस्लिमों के वोट नहीं चाहिये होते हैं। राजस्थान के राज्यपाल को मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार करवाना 'फिज़ूल खर्ची' लगता हो तो भविष्य में 15 अगस्त और 26 जनवरी के आयोजन भी बंद करवा देने चाहिये।
आज़ादी के 67 साल बाद भी शिक्षा देने वाले अध्यापक स्कूल पर झंडा लहराते समय कौन-सा रंग ऊपर रखना हैं भूल जाते हैं, ऐसे ही सूर्यासत के बाद भी झंडे लहराते हुए फोटो दूसरे दिन अख़बारों में छपते रहते हैं। आज़ादी के जश्न में भी स्कूली बच्चों और सरकारी कर्मचारियों के अलावा टेन्ट, माइक, लाईट वालों की ही भीड़ ज्य़ादा होती है। आम आदमी तो घर बैठे टीवी पर ही आज़ादी का जश्न मना लेता है। अब रही बात संविधान दिवस 26 जनवरी की। अब तो आप भी जान गये होंगे कि देश की सभी राजनैतिक पार्टीयां 2जी, 4जी से लेकर सुषमा, ललित मोदी तक की श्रंखला में देश के संविधान की कैसे धज्जियां उड़ा रहे हैं।
राजस्थान के महामहिम आपका रोज़ा इफ़्तार रद्द करने का कार्यक्रम किसी भी परिस्थिती में रहा हो, इससे राजस्थान के मुसलमानों की रमज़ान की इबादत, रोज़े की फ़ज़ीलत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुसलमानों की इबादत अल्लाह मंज़ूर करता है, लेकिन बाबरी मस्जि़द शहीद होने से पहले जब आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते कोर्ट में बाबरी मस्जि़द बचाने का जो हलफनामा दिया था, आज उस हलफनामें और आपके दिल में मुसलमानों के प्रति कैसा सम्मान तब था और आज है उसकी झलक राजस्थान ही नहीं देश भर के मुसलमानों को 'रोज़ा इफ़्तार' रद्द करने के बाद दिखाई दे रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, July 16, 2015

मोदी तो बच्चों का भविष्य छीन रहे हैं: राहुल


ए.एस. सिलावट

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान में पदयात्रा को मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार के शांत अंगारों को फिर हवा देकर केन्द्र की मोदी सरकार से जोड़ते हुए शुरु की तथा कहाकि राजस्थान में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। राजस्थान की मुख्यमंत्री और ललित मोदी से जुड़े भ्रष्टाचार को राहुल गांधी ने मुद्दा बनाते हुए राजस्थान भर से आये कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को आमजन की तकलीफों से जुड़कर मदद करने का आव्हान भी किया। प्रदेश भर से आये कार्यकर्ताओं ने हनुमानगढ़ के खोथांवाली गांव में माईक पर सम्बोधित कर राहुल जी तक अपने क्षेत्र की समस्याएं एवं भाजपा की सरकार द्वारा बंद की गई कांग्रेसी सरकार की योजनाओं की जानकारी भी दी।
उदयपुर के आदिवासी क्षेत्र के कांग्रेसियों द्वारा राहुल गांधी को बताया गया कि कांग्रेस सरकार द्वारा आदिवासियों के विकास के लिए जो योजनाएं शुरु की गई थी, उन्हें भारतीय जनता पार्टी की सरकार आते ही बंद कर दिया गया है। इस पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेसियों को आव्हान करते हुए कहा कि हम आदिवासियों के विकास के लिए उनके साथ हैं और आपकी आवाज़ सरकार तक पहुँचाकर विकास को रोकने नहीं देंगे।
राहुल गांधी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार आम आदमी की आवाज़ को दबाने में लगी है और कांग्रेस किसानों, गरीबों, आदिवासियों की पार्टी है तथा हम समाज के दलित, मज़दूर और पिछड़ों की आवाज़ को दबने नहीं देंगे। कांग्रेस इन सभी वर्गों के हितों के लिए मौज़ूदा भाजपा और एनडीए सरकार से संघर्ष करती रहेगी।
भूमि विधेयक बिल पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि कांग्रेस किसानों की एक इंच ज़मीन भी पूंजीपतियों की इस सरकार को नहीं लेने देगी। राजस्थान नहर के उपजाऊ क्षेत्र हनुमानगढ़ के किसानों को सम्बोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी ने किसानों को विकास का झूठा सपना दिखाकर आज उनकी उपजाऊ भूमि को जबरन पूंजीपतियों को देने का विधेयक पास करवाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस किसानों की रक्षा के लिए खड़ी है और हम किसान के भविष्य के साथ धोखा नहीं होने देंगे।

राहुल जी बोले मोदी स्टाइल में...
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राजस्थान के हनुमानगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाषण शैली की 'कॉपी' करते हुए सभा में उपस्थित किसानों से पूछा कि 'भाईयों मोदी जी ने क्या कहा था?... याद हैं ना!... मोदी जी ने कहा था, ना खाऊंगा-ना ही खाने दूंगा, लेकिन यह तो नहीं कहा था कि भ्रष्टाचार पर शांत रहूंगा, कुछ भी नहीं बोलूंगा।'
राहुल गांधी की 49 दिन की गुप्त यात्रा के बाद भाषण शैली, बांहेें चढ़ाना बंद कर सभा की भीड़ को अपने शब्दों में बांधे रखने की कला का एक नमूना राजस्थान में आज की पदयात्रा के पहले मोदी स्टाइल की कॉपी के रुप में दिखाई दिया।

...कांग्रेसियों की गुटबाजी, सदाबहार!
राहुल गांधी के दौर को भाजपा नेताओं ने राजस्थान में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के सामने नगण्य, प्रभावहीन कहकर सभी आरोपों को नकारते हुए कहा कि राहुल गांधी पहले अपने घर की धड़ेबंदी को सम्भालें।
हनुमानगढ़ में राहुल गांधी को अपने क्षेत्र की समस्याएं सुनाते समय पश्चिमी राजस्थान के कांग्रेसियों ने माईक पर 'अशोक गहलोत.....' का नारा लगाया, लेकिन भीड़ के एक कौने से ही 'जिन्दाबाद' का स्वर सुनाई दिया। ऐसी ही हालत मेवाड़, शेखावाटी, धुंधाड़ और बीकानेर से आये कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की थी।
राजस्थान में कांग्रेसी सरकार जाने के बाद गहलोत और सी.पी. जोशी गुट से आगे बढ़कर आधा दर्जन गुट कांगे्रस में सक्रिय हो गये हैं। गिरीजा व्यास, बी.डी. कल्ला, चन्द्रभान एवं प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट तो पहले से संगठन को सक्रिय करने से अधिक समय एक दूसरे की 'कार-सेवा' में दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Monday, July 6, 2015

मोदी जी, देश की सुरक्षा के लिए इनकी 'कलम' को रोकें...


सेवानिवृति के बाद खुफिया अधिकारियों की किताबों के रहस्योद्घाटन

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                            
कंधार विमान अपहरण काण्ड के 16 साल बाद खुफिया विभाग के सेवानिवृत अधिकारी द्वारा उस समय के नेताओं की मजबूरियों को निर्णय की कमजोरी, नेताओं की अक्षमता कहकर आज विवाद ही पैदा नहीं किया जा रहा बल्कि उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। 1999 में एयर इंडिया का विमान आईसी 814 के अपहरण के बाद के निर्णयों में भारत के देशभक्त नेता, राजनयिक और खुफिया विभाग पूरा ही शामिल था, लेकिन आज सेवानिवृत अधिकारी अपनी किताब के रहस्योद्घाटन से उस वक्त के नेताओं को अक्षम, दबाव में निर्णय और देश भक्ति पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।
आपातकाल के बाद से ऐसा दौर चला कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के निजी सचिव ने उनके जीवन के रंगीलेपन को एक साध्वी से जोड़कर अपनी किताब बेची। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी सत्ता में नहीं रहते हुए लंदन और मास्को यात्रा में सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी के जनरल सैके्रट्री लियोनिद ब्रेझनेव के एयरपोर्ट पर स्वागत को रहस्यपूर्ण बताया। आईबी के तत्कालीन जोइन्ट डायरेक्टर ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद को उद्योगपति धीरुभाई अम्बानी से जोड़ा। उमा भारती-गोविन्दाचार्य के पाक रिश्तों को 'शक' में बदला। मेनका गांधी के फोन टेप से सनसनी पैदा की गई।
मिशन 'रॉ' के भूतपूर्व अधिकारी द्वारा आपातकाल से जुड़ी, अमेरिका से जुड़े कई महत्वपूर्ण गुप्त दस्तावेजों की जानकारी, बड़े देशों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर किये गये गुप्त समझौते पर सवाल खड़े कर सार्वजनिक किये गये। इस अधिकारी ने तो 'रॉ' के तत्कालीन चीफ एस.के. त्रिपाठी को काठमांडू में दाऊद की पार्टी में मेहमान बनकर जाना भी रहस्योद्घाटन में शामिल कर दिया।
देश की सुरक्षा में खुफिया एजेंसीयों, भारत सरकार के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के निजी सहायकों, विदेशों में राजनयिकों की सेवानिवृति के बाद पांच-दस करोड़ रूपये कमाने के लिए किताबें लिखकर मीडिया में प्रचार पाने, देश में सनसनी फैलाने और जाने अंजाने में 20-30 साल पहले के देश भक्त नेताओं की छवि धूमिल करने का अभियान चलाकर अपनी काल्पनिक किताबों को बेचने की परम्परा बन गई है।
जो अफसर अपने सेवा काल में देश के बड़े नेताओं के सामने 'बाबू' की तरह हाथ में शॉर्ट हैण्ड लिखने की डायरी लेकर सर झुकाये 'यस सर'-'यस सर' का स्वर अलापते नहीं थकते थे, आज वे ही रिटायर्ड अफसर अपने समय के देश भक्त नेताओं के देश हित में समय की मांग के अनुसार लिये गये निर्णयों को गलत, जनहित के खिलाफ बताकर देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं, साथ ही उस समय के नेताओं के विरोधी राजनैतिक दलों को मौजूदा समय में चुनावी दुष्प्रचार की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं और इसके पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ अपनी हजार-पन्द्रह सौ की किताब को बेचकर दो-चार करोड़ रूपये कमाना है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा शर्तों में 'ऑल इंडिया सर्विस' (कंडक्ट) रुल्स 1968 के पैरा 6 (पेज 184) में स्पष्ट किया गया है कि मीडिया से जुड़कर या रेडियों के माध्यम से किसी भी तरह की गोपनियता को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। इसी के पैरा 7 में सरकार, सरकार से जुड़े मामलों एवं नीतिगत फैसलों की आलोचना भी नहीं की जा सकती है। पैरा 9 (पेज 185) में एकदम साफ लिखा है कि सरकारी निर्णयों, सूचनाओं, नीतियों और अनुबंधों को अपने विभाग के अलावा अन्य सरकारी कर्मचारी, विभाग या अन्य किसी भी व्यक्ति को बताना भी प्रतिबंधित है। फिर इतने बड़े पदों पर भारत सरकार को सेवा दे चुके अधिकारी नियमों की धज्जियां कैसे उड़ा रहे हैं और देश भक्त नेताओं की मौत के बाद उन्हें शक के घेरे में सिर्फ इसलिए खड़ा कर रहे हैं कि आज इनकी काल्पनिक किताबों में किये गये झूठे और आधारहीन रहस्योद्घाटन का खण्डन करने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है।
देश के नेता मंत्री बनते समय गोपनीयता की शपथ लेते हैं और सिमित समय के लिए बने नेताओं से बड़ी और विश्वसनीयता के साथ तीस-चालीस साल तक महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले अधिकारी भी नियुक्ति के साथ पद की मर्यादा, जिम्मेदारी, गोपनीयता, देश की अखण्डता के लिए शपथ लेते हैं। सेवानिवृत होते ही क्या पद की मर्यादा, गोपनीयता और देश भक्ति की शपथ से यह उच्च अधिकारी मुक्त हो जाते हैं? क्या सेवानिवृति के बाद सेवा काल के संस्मरणों के नाम पर देश की सुरक्षा से जुड़े फैसलों, नीतिगत निर्णयों को सार्वजनिक कर देश के दुश्मनों को मदद नहीं कर रहे हैं?
आज इन अधिकारियों को मर्यादा में रहने की शिक्षा देनी चाहिये, लेकिन आज पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी जैसे नेता नहीं हैं और अटल बिहारी वाजपेयी इन्हें रोकने में सक्षम नहीं है यह काम देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही करना होगा। दुनियाभर के देशों में भारत की नई छवि बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन सेवानिवृत अधिकारियों से सावधान होना चाहिये। कहीं ऐसा नहीं हो कि जिन अधिकारियों को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेते ही अपनी सरकार का पहला संशोधन लाकर अपने निजी और गोपनीयता में साझेदार बनाया है, कल वही अधिकारी सेवानिवृत होकर अपनी किताबें बेचने कि लिए नरेन्द्र मोदी और नागपुर के रिश्तों के रहस्योद्घाटन करें। ऐसा ना हो कि गुजरात कैडर के अधिकारी 2002 के दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौन सहमति पर अपनी उपस्थिती की छाप लगाकर आपकी लोकप्रियता को आपके जीवनकाल या बाद में भी धूमिल करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे अधिकारियों की किताबी रहस्योद्घाटन की प्रवृति परम्परा और शगूफेबाजी को रोक सकते हैं। आप एक बार उनके आपातकाल से अब तक के रहस्योद्घाटन पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि ऐसे लेखक भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए भी उपयोगी या राजनैतिक सहयोगी नहीं हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, May 29, 2015

हाय रे सरकार की 'मजबूरियां'...



अब्दुल सत्तार सिलावट                                          
मुबारक हो राजस्थान की सात करोड़ मजबूर जनता को। पिछले आठ दिनों से राजस्थान को देश के मुख्य भागों से जोडऩे वाले रेल और सड़क मार्ग सिर्फ बाधित ही नहीं बल्कि किसी भी समय सुरक्षा प्रहरियों के संगीनों से गोलियों की आवाजों के बीच आशंकीत था। ईश्वर ने गुर्जर नेताओं और मजबूर सरकार के प्रतिनिधियों को सद्बुद्धि दी कि राजस्थान की पावन धरती एक बार फिर कलंकित होने से बच गई। बेगुनाह और भोलेभाले आन्दोलनकारियों की लाशों एवं सामूहिक चिताओं की लपटों के दृश्य टीवी न्यूज चैनलों के कैमरों से बच गये। मुबारक उन भोलीभाली माताओं, बहनों और सुहाग की रक्षा की पुकार करने वाली उन माताओं की गोद, बहनों की राखी और सिन्दूर के सुहाग की रक्षा देवनारायण भगवान ने की है। जिनके बेटे-भाई और पति पुलिस के संगीन पहरों में रेल पटरियों के क्लिप उखाड़ रहे थे। नेशनल हाईवे के डिवाईडर की रैलिंग तोड़ रहे थे और इससे आगे बढ़कर सड़क चौराहों को जाम कर रहे थे। मुबारक हो गुर्जर आन्दोलन के उन नेताओं को जिनके बेटे-बेटियां-पोता-पोती और परिवार के लोग दिल्ली-गुडगांव-नौएडा के गगनचुम्बी बिल्डिंगों के एयरकंडिशन फ्लैटों से निरन्तर मोबाइल पर 'सम्भलकर' रहने की हिदायतों के साथ इन नेताओं की चिन्ता कर रहे थे।
राजस्थान की आबादी का मात्र 8 प्रतिशत 55 से 60 लाख गुर्जर समाज (आंकड़े गूगल के अनुसार) और इसमें से भी मात्र 5 प्रतिशत यानी तीन लाख गुर्जर ही पटरियों, सड़क चौराहों और आन्दोलन को भीड़ में बदलने में सक्रिय बताये गये। लेकिन 163 विधायकों के बहुमत वाली भाजपा की वसुन्धरा सरकार, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चाणक्य, शिवसेना-विश्व हिन्दू परिषद् के जांबाज और खूंखार-उग्र नौजवानों की फौज, हिन्दू समाज की रक्षा के अन्तराष्ट्रीय नेता प्रवीण तोगडिय़ा, आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत जी, जो हर दिनों हर पखवाड़े राजस्थान के किसी महानगर में पथ प्रदर्शन करते दिखाई देते हैं। इनमें से कोई तो साहस करता एक बार सिकन्दरा और पीलूपुरा की पटरियों पर पथ संचलन करने का, तोगडिय़ा जी देशभक्ति के भाषण ही सुना आते। क्या गुर्जरों में आरएसएस से जुड़े लोग नही हैं? शिवसेना-विश्वहिन्दू परिषद् से जुड़े गुर्जर भी नहीं है? क्या सभी गुर्जर कांग्रेसी मान लिये गये? सचिन और गहलोत के समर्थक थे? 163 विधायकों में से मात्र तीन राजेन्द्र राठौड़, भड़ाना और चतुर्वेदी ही सरकार का प्रतिनिधित्व करते रहे। बाकी भाजपा विधायक, संघ के नेता, शिवसेना, बजरंगदल, विश्व हिन्दू परिषद् के राज्य स्तर के नेताओं से पीलूपुरा की पटरियों पर बैठे अपने ही भाईयों से समझाईश करने का साहस नही जुटा पाये।
हिन्दू धर्म के रक्षक इन नेताओं को सिकन्दरा के जाम में फंसी 'एम्बुलेन्स' के सायरन की आवाजों के साथ बेगुनाह मरीज की टूटी सांसों और परिवार की र्ददभरी चीख भी सुनाई नहीं दी। बदन को झुलसाती 47 डिग्री गर्मी में गोद में बच्चा और सर पर सामान के बैग लिये कई किलोमीटर तक लडख़ड़ाते कदमों से बसों तक पहुंच रही मासुम और उच्च परिवार की औरतों के टीवी दृश्य देखकर भी हमारे नेता गुर्जरों को समझाने नहीं पहुंच पाये।
आजादी के बाद पहली बार राजस्थान में अभुतपूर्व बहुमत और केन्द्र में भी अपनी ही पार्टी वाली सरकार को गुर्जर आन्दोलन के सामने मजबूर, बेबस और लाचार हालत में देखकर शर्मिंदगी के साथ असुरक्षित भविष्य भी दिखाई दिया। हजारों जवान पुलिस के। अर्धसैनिक बलों की टुकडियों के पहुंचने के समाचारों की टीवी स्क्रीन पर रेग्युलर लाईन (पट्टी) चलना।
राजस्थान उच्च न्यायालय की फटकार को झेलते प्रदेश के सर्वोच्च पदों पर बैठे अधिकारी। सरकार के चाणक्यों के फैसलों का इन्तजार करती सुरक्षा एजेन्सीयां। सब मजबूर, लाचार, बेचारगी की घुटन के साथ आठ दिन तक तनाव और आक्रोश के बीच गुरूवार की शाम राजस्थान सचिवालय से खुश खबरी के साथ राहत की सांस और अच्छे दिनों की शुरूआत के साथ अगली सुबह सुनहरी किरणों की उम्मीद के साथ शुरू हुई।

गुर्जरों के बाद आन्दोलनों की कल्पना...
ईश्वर राजस्थान के जाटों, राजपूतों, ब्राह्मणों एवं ओबीसी की जातियों को आरक्षण की मांग मनवाने के लिए गुर्जर आन्दोलन से प्रेरणा लेने की सोच पैदा होने से रोकें अन्यथा गुर्जर तो मात्र 50 किलोमीटर क्षेत्र में ही अपने को सुरक्षित मानते हैं, जबकि अन्य जातियां पूरे प्रदेश के गांव-ढ़ाणी तक करोड़ों की तादाद में फैली है। इन सभी जातियों ने गुर्जर आन्दोलन में राजस्थान सरकार की कानून व्यवस्था, सरकार की मजबूरी, सुरक्षा बलों के बंधे हाथ, न्यायालय की आदेशों का माखौल उड़ते देखा है। राजस्थान के विकास में अपनी 'आहुति' दे रही अकेली मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इन हालात में रिसर्जेंट राजस्थान में लाखों करोड़ के निवेश वाले 'एमओयू-साईन' भी करवा लें, तब भी मेरे राजस्थान का भविष्य कितना उज्वल होगा आप स्वयं ही अनुमान लगा लेवें।

बाहुबलियों के आगे कानून 'नतमस्तक'
आन्दोलन में बसे जलाओ, चाहे पटरियां उखाड़ो, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करो। जो सामने आये उसे मारो-पीटो। पुलिस चाहे सरकारी काम में बाधा का मुकदमा करे या राजद्रोह का मुकदमा बना लेवें। डरने के कोई बात नहीं। सरकार से जब भी समझौता वार्ता होगी सबसे पहली शर्त आन्दोलन के दौरान किये मुकदमे वापस लिये जायें। और सरकार इस पहली शर्त को बिना तर्क दिये मान जाती है। बात गुर्जर आन्दोलन की नहीं है। इससे पहले भी जितने आन्दोलन हुए सभी में मुकदमे वापस लेने का फार्मूला लागू होता रहा है और यही कारण है कि आन्दोलनकारी सरकारी सम्पत्ति, जन-धन हानि बेहिचक करते हैं।

राजद्रोही बनाम देशभक्त
राजस्थान सचिवालय में राज्य के सर्वोच्च सुरक्षा एजेन्सीयों के मुखिया, कानून के रखवाले एटॉर्नी जनरल ऑफ राजस्थान, सरकार की मंत्री, सरकार चलाने वाले उच्च अधिकारियों के सामने की टेबल पर गुर्जर आन्दोलन में पुलिस द्वारा राजद्रोह के मुकदमों में अपराधी बनाये नामजद आरोपी समझोता वार्ता में अपनी शर्तें मनवा रहे थे और हमारी पूरी सरकार और सरकार के देशभक्त मंत्री, अधिकारी राजद्रोह के आरोपीयों के सामने हाथ बांधे, सर झुकाये उनकी शर्तें स्वीकार कर रहे थे।

...लेखक के नाम-जात पर न जाये
गुर्जर आन्दोलन की इस समीक्षा को एक पत्रकार की बेबाक कलम और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के धर्मपालन करने वाली नजर से पढ़ें। लेखक का नाम भले ही अब्दुल सत्तार सिलावट है, लेकिन पत्रकारिता की निष्पक्ष लेखनी में देशभक्ति, समाज की सुरक्षा की चिन्ता, कानून और प्रशासन के साथ न्यायालयों का सम्मान बनाये रखने के लिए पाठकों का ध्यानाकर्षण ही मुख्य उद्देश्य रहता है। पत्रकार की निष्पक्ष कलम को ही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है और 2002 के गुजरात दंगों से लेकर मुजफ्फर नगर के दंगों तक मुसलमानों का पक्ष हिन्दू पत्रकारों, टीवी चैनलों ने ही रखा है। इसलिए पत्रकार जाति-मजहब से उपर उठकर समाज का सही दर्पण पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करता है।-सम्पादक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Wednesday, May 27, 2015

ओम माथुर: राजस्थान की ओर बढ़ते कदम...


अब्दुल सत्तार सिलावट                                   
बृज की भूमि मथुरा के पास दीनदयाल धाम की विशाल रैली से जब पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सफलतम एक वर्ष के भाषण आधे मन से सुन रहा था उस समय राजस्थान की जनता इस बात से खुश थी कि नरेन्द्र मोदी के मंच पर राजस्थान के भाजपा नेता ओम माथुर को सिर्फ मंच पर कुर्सी के पास लेकर ही नहीं बैठे हैं बल्कि ठहाके लगा-लगाकर हंसते हुए पूरे देश को संदेश दे रहे हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे नजदीक आधा दर्जन लोगों की लिस्ट में हमारे राजस्थान के ओम प्रकाश माथुर साहब यूपी चुनाव के प्रभारी होने के नाते सबसे नजदीक ही नहीं बल्कि दोस्ताना रिश्ते वाली टीम के सदस्य भी हैं।
मथुरा रैली से जब ड्रोन कैमरा विशाल जनसमूह की क्लिप टीवी चैनलों को दे रहा था उस समय राजस्थान की जनता को मंच पर लगे कैमरे से ओम जी भाई साहब के साथ मोदी जी की अगली तस्वीर देखने का उत्साह था और अब ओम माथुर के राजस्थान के सीएमओ की ओर बढ़ते कदमों के शगूफों को पुख्ता जमीन भी मिल रही थी।
नरेन्द्र मोदी के दोस्त, मुख्यमंत्री चुनावों में अब तक गुजरात की कमान सम्भालने वाले ओम प्रकाश माथुर ने पिछले एक साल में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने के बाद पांच प्रदेशों में भाजपा की सरकारों को एक तरफा जीत दिलवाकर साबित कर दिया कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव की बागडोर ओम माथुर को बहुत सोच समझकर दी गई है। इस निर्णय में सिर्फ पार्टी-प्रधानमंत्री ही शामिल नहीं है बल्कि भाजपा सरकार के रिमोट कंट्रोल कहे जाने वाले 'नागपुर' के चाणक्यों की भी एकतरफा सहमति भी शामिल है।
राजस्थान की राजनीति में ओमप्रकाश माथुर ने 2008 में एक धमाकेदार 'एन्ट्री' की थी, लेकिन उस समय केन्द्र से किसी बड़े नेता का समर्थन नहीं था। राजस्थान की राजनीति में वसुन्धरा राजे के सामने ओमजी भाई साहब की केवल संघ नेता की पृष्ठभूमि थी और इसी टकराव ने 2008 में भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया था, लेकिन इस बार पिछले छ: माह से चल रहे 'शगूफों' में ओमप्रकाश माथुर के राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की बात को मथुरा की रैली के साथ ही राष्ट्रीय भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह द्वारा राजस्थान के एक बड़े अखबार को दिये इन्टरव्यू में स्पष्ट संकेत दिये गये हैं कि राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री ओमप्रकाश माथुर ही होगा। राजस्थान की मौजूदा सरकार को हलचल या खलबली से बचाने के लिए अमित शाह ने यूपी चुनाव के बाद और दो साल का समय जरूर बताया है, जबकि अब स्वयं ओमप्रकाश माथुर भी ज्यादा इन्तजार के 'मूड' में नहीं है जबकि दूसरी ओर राजस्थान प्रदेश भाजपा की 104 सदस्यों वाली कार्यकारिणी में राजस्थान में सांसद-विधायक-मंत्री पद पर भी नहीं होते हुए ओम माथुर को कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के बाद स्थान दिया गया है यह बात भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के यूपी चुनाव के बाद ओम माथुर के राजस्थान प्रवेश को झूठला रही है। ओमजी भाई साहब की राजस्थान वाली टीम भी मौजूदा सरकार से दूरियां बनाकर ओमजी भाई साहब के शपथ ग्रहण समारोह में आतिशबाजी करने का इन्तजार कर रही है।
राजस्थान भाजपा प्रदेश कार्यालय में मोदी सरकार के एक साल सफलता के कार्यक्रमों में ओम माथुर समर्थक भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यही कार्यकर्ता पार्टी कार्यक्रमों में कल तक पीछे की लाईन में 'अनमने' भाव से खड़े रहकर पार्टी कार्यकर्ता होने की 'रश्म' अदायगी करते थे वे ही ओम जी समर्थक मथुरा की विशाल सभा में नरेन्द्र मोदी-ओम माथुर की दोस्ती की झलक से इतने उत्साहित हैं कि अब हाथ जोड़कर नमस्ते या हाथ मिलाकर अभिवादन ही नहीं करते हैं बल्कि अपनी टीम के कार्यकर्ता को खींचकर गले लगाते हैं और ऊंची आवाज में बोलते है 'भाई साहब, अब अच्छे दिन सामने दिखाई दे रहे हैं।'
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंत्रिमण्डल में राजस्थान का प्रतिनिधित्व लेने की बेरूखी से मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और नरेन्द्र मोदी के बीच बेरूखी की चर्चा सिर्फ राजनैतिक गलियारों तक ही सिमित नहीं थी बल्कि प्रशासनिक हल्कों में भी इसे गम्भीरता से लिया गया था और परिणाम पिछले एक साल से सरकार की गति 'झील के ठहरे पानी' की तरह निष्क्रिय ही दिखाई देती रही है।
मथुरा की विशाल रैली में नरेन्द्र मोदी-ओम माथुर के हंसी के ठहाके और उसी दिन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री के लिए ओम माथुर के नाम पर सकारात्मक संकेतों ने राजस्थान में मौजूदा सरकार द्वारा किनारे किये गये आईएएस, आईपीएस एवं उच्च अधिकारियों में आशा की किरण पैदा कर दी है और इन अधिकारियों ने ओम माथुर से जुड़े विधायकों, भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं तक पहुंचने के माध्यम ढूंढने शूरू भी कर दिये हैं।
खैर: राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री ओमप्रकाश माथुर बने या यह बातें शगूफों की कड़ी में खत्म हो जाये, लेकिन इतना निश्चित है कि मौजूदा वसुन्धरा सरकार के मंत्रियों, प्रशासनिक टीम में एक बार निराशा एवं अनिश्चितता की लहर राजस्थान के विकास को जरूर धीमा कर देगी और पिछले छ: माह के एक तरफा प्रयासों से अक्टूबर में होने वाले 'रिसर्जेंट राजस्थान' में निवेश करने का मन बना चुके उद्यमियों को मौजूदा बदलते समीकरणों में अपने निवेश को राजस्थान में लाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर सकते हैं।
राजस्थान के विकास के लिए स्थिर, मजबूत और केन्द्र सरकार के साथ अच्छे समन्वय वाली सरकार की जरूरत है। अब देखना यह है कि मौजूदा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे आगे बढ़कर नये बन रहे समीकरणों को तोड़ती हैं या ओमप्रकाश माथुर की झोली में प्रबल बहुमत वाली राजस्थान सरकार आती है, यह तो भविष्य ही बतायेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 24, 2015

गुर्जर आरक्षण आन्दोलन: वसुन्धरा सरकार के खिलाफ षडय़ंत्र?


बैंसला के हाथों से निकली आन्दोलन की कमान

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                                                                          
गुर्जर आरक्षण के लिए 21 मई को बुलाई महापंचायत का अचानक उग्र आन्दोलन का रूप लेना, पटरियों पर गुर्जरों का धरना, रेल यातायात बाधित करना, गुर्जरों की समन्वय समिति से ओबीसी एवं अन्य जाति के लोगों के नाम काटना। इसके पीछे गुर्जरों को आरक्षण दिलवाने से अधिक राजस्थान की लोकप्रिय भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को हटाने के षडय़ंत्र की भूमिका नजर आ रही है। गुर्जरों के नये नेताओं को दिल्ली में बैठे वसुन्धरा राजे विरोधी नेताओं का सिर्फ संरक्षण ही नहीं मार्गदर्शन भी मिलता दिखाई दे रहा है। शांत महापंचायत को उग्र आन्दोलन में बदलकर, रेल पटरियों को उखाडऩा, बसों में तोडफ़ोड़, सरकारी अधिकारियों पर पथराव। यह सभी हथकंडे सरकार को आन्दोलनकारियों पर सख्ती करने, लाठीचार्ज या फिर गोलीकाण्ड के लिए उकसाने की ओर बढ़ते कदम हैं।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे देश-विदेश से राजस्थान में औद्योगिक निवेश के लिए दिन-रात अभियान चलाकर अक्टूबर 2015 में होने वाले रिसर्जेंट राजस्थान को सफल बनाकर नये कीर्तिमान स्थापित करना चाहती हैं जबकि वसुन्धरा राजे विरोधीयों को डर है कि रिसर्जेंट राजस्थान की सफलता के बाद पांच साल तक राजस्थान में वसुन्धरा सरकार को कोई नहीं हटा पायेगा। इसलिए गुर्जर आन्दोलन को दिल्ली में बैठे राजे विरोधी नेता उग्र गुर्जर नेताओं के हाथों में देकर राजस्थान की शांति को एक बार फिर 'बदनाम' करवाने के प्रयासों में लगे दिखाई दे रहे हैं।

गुर्जर आरक्षण की मांग पर रणनीति के लिए बुलाई महापंचायत कुछ घंटों में रेल पटरियों पर पहुंचकर उग्र आन्दोलन में परिवर्तित होने तथा गुर्जर आरक्षण के एकमात्र नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के रेल पटरियों से भी मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के प्रति 'नरम' बयानबाजी और आरक्षण के लिए सरकार द्वारा ठोस आश्वासन की मांग गुर्जरों के नये नेताओं को पसन्द नहीं आई तथा सरकारी प्रतिनिधियों से बात करने के लिए बनाई गुर्जर नेताओं की लिस्ट में बीस गुर्जर नेता थे जो अन्त में शनिवार को 26 तक पहुंच गये। गुर्जरों के नये नेताओं की पहली शर्त कर्नल किरोड़ी को सरकारी वार्ता में शामिल नहीं कर पटरियों पर ही बिठाये रखना तथा दूसरी शर्त सरकार से बात भी पटरीयों पर ही होगी। सरकार ने जयपुर की जिद्द छोड़कर पटरियों से बयाना आईटीआई तक गुर्जरों को आने के लिए राजी किया, लेकिन कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को आन्दोलन में कूदे नये गुर्जर नेताओं की नियत पर शक हो गया कि इस आन्दोलन से मुझे दूर करना चाहते हैं। इसके बाद 26 लोगों की लिस्ट 6 पर आ पहुंची और सरकार से मिलने से पहले गुर्जर नेताओं की आपसी फूट रेल की पटरियों पर ही दिखाई दे गई।
सरकार से गुर्जर नेताओं की वार्ता फेल हुई या गुर्जरों के नये नेताओं द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार फेल की गई इस बात को सिर्फ कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ही भलीभांती जानते हैं। कर्नल बैंसला को गुर्जर आन्दोलन की संवैधानिक स्थिती, सरकार की मजबूरी और गुर्जरों की महापंचायत से सरकार पर न्यायालय में अच्छी पैरवी का दबाव बनाने की योजना को नये नेता फेल करने में कामयाब होकर आन्दोलन को कर्नल बैंसला के हाथों से छीनने के प्रयास में सफल होते दिखाई दे रहे हैं।
गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में 2008 से कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ दिखाई देने वाले बहुत से चेहरे इस बार नहीं है बल्कि 2015 के आन्दोलन में सभी गुर्जर नेता नये और अधिक उग्र दिखाई दे रहे हैं। 2008 की टीम पर कर्नल बैंसला की एक तरफा पकड़ थी। सरकार को कैसे मजबूर करना, गुर्जरों को कम से कम नुकसान के साथ आरक्षण का लाभ कैसे दिलवाना। यह बात आज भी कर्नल किरोड़ीसिंह बैंसला में मौजूद है, लेकिन शनिवार को कर्नल बैंसला बयाना की सरकारी वार्ता में तथा रेल पटरियों पर अकेले-तन्हा एवं बेसहारा दिखाई दिये।

गहलोत आन्दोलन के खिलाफ
गुर्जर आरक्षण आन्दोलन में रेल पटरियों पर बैठे आन्दोलनकारियों को भड़काने की जगह विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुत ही प्रसंसनीय बयान देकर आन्दोलन खत्म करने की सलाह दी है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को गलत बताते हुए सरकार से गुर्जरों को समझाईश का सुझाव दिया है। गहलोत ने आरक्षण के मामले को न्यायालय में विचाराधीन होने से गुर्जरों को आन्दोलन नहीं करने, और सरकार को इस मामले को शिघ्र निपटाने के प्रयासों की सलाह भी दी है।

ओबीसी गुर्जरों के विरोध में...
ओबीसी एवं जाट नेता राजाराम मील ने गुर्जर आरक्षण आन्दोलन को कुछ नेताओं का निजी स्वार्थ बताते हुए ओबीसी के आरक्षण में से चार प्रतिशत गुर्जरों की मांग को गलत बताते हुए चेतावनी दी है कि राजस्थान की सभी ओबीसी जातियों, जाटों एवं मेघवालों द्वारा भी विरोध किया जायेगा।
जाट नेता मील ने कहा कि गुर्जर आरक्षण मामला न्यायालय के विचाराधीन है ऐसे में रेल पटरियों पर बैठकर न्यायालय के फैसले को अपने हित में करने का दबाव बनाना न्यायालय की अवमानना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 17, 2015

पुलिस में 'फिट' है तो आप 'हिट' है: आईजी दत्त


39वीं जोधपुर रेंज पुलिस खेलकूद प्रतियोगिता 
पुलिस में 'फिट' है तो आप 'हिट' है: आईजी दत्त

अब्दुल सत्तार सिलावट                                                                           
पुलिस को देखते ही आपके दिलों में एक भयपूर्ण नफरत पैदा होती है। आपको बचपन से ही सिखाया गया कि पुलिस से बचकर रहना। पुलिस कभी दोस्त नहीं होती, वगैराह-वगैराह। इसलिए हम पुलिस को सम्मान से दूर रखते हैं भले ही यह भी सच्चाई है कि इन पुलिस वालों के खौफ से हमारी जवान बेटियां अकेली स्कूल-कॉलेज जाकर सुरक्षित घर लौटती हैं। हमारे व्यापारी लाखों रूपया नकद अखबारों में बंडल बांधकर या प्लास्टिक के थेलों में डालकर बैंक से ले आते हैं या जमा करवाने चले जाते हंै। इससे भी आगे बढ़कर आप और हम चैन की नींद जो सोते हैं उसमें भी पुलिस के जागने का बलिदान है। पुलिस वालों के जीवन की 'आहुति' से ही हम सम्मान से जी रहे हैं।
पुलिस की पृष्ठभूमि और सामाजिक सोच से अलग हटकर हम आज शुभारम्भ हुए 39वें जोधपुर रेंज पुलिस खेलकूद प्रतियोगिता का दृश्य देखते हैं जिसमें जोधपुर की चार टीम के साथ जालोर, सिरोही, बाड़मेर,जैसलमेर, पाली सहित कुल नौ टीमें, 540 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं जिनमें महिला पुलिस की खिलाड़ी भी शामिल है।
पुलिस जवानों को छोटी-छोटी गलतियों पर डांटने-फटकारने वाले बड़े पुलिस अधिकारियों का दूसरा रूप भी आज के खेल समारोह के उद्घाटन में देखने को मिला जब एक परिवार के सदस्यों की तरह बड़े अधिकारी से नये रंगरूट जवान तक अनुशासनबद्ध, संवेदनशील हृदय का परिचय दे रहे थे। बड़े अधिकारी खेलों से स्वास्थ्य, परिवार और जीवनशैली बदलने की सीख दे रहे थे। पुलिस थानों के घुटन और तनावपूर्ण वातावरण से अलग पाली पुलिस लाईन के खेल मैदान पर आज के रेंज खेलकूद प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में उच्च अधिकारी अपने जवानों पर स्नेह, सीख एवं आत्मीयता का प्रभाव छोडऩे के साथ साहित्यक प्रेम के परिचय में कविता की पंक्तियों का उल्लेख करते देखे गये।
उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरिक्षक सुनिल दत्त ने खिलाडियों के परेड के बाद कहा कि खेल के मैदान में हमें धर्म-जाति-समूह-क्षेत्रियता के बंधन से मुक्त होकर एक अनुशासनबद्ध खिलाड़ी की तरह खेलकर परिचय देना चाहिये कि पुलिस के जवान अनुशासित जीवन जीने वाले तथा समाज की रक्षा के प्रहरी है।
आईजी दत्त ने कहा कि पुलिस की नौकरी की समय सीमा तय नही है एक जवान को दो-चार घंटों से लेकर कई बार चौबीस घंटे भी काम करना पड़ता है ऐसे हालात में खेलकूद को नियमित दिनचर्या में लिया जाये तो तनाव कम ही नहीं खत्म भी हो सकता है। आपने कहा कि खेलों से आप फिट रहेंगे तो परिवार भी फिट रहेगा साथ ही हमारा पुलिस महकमा भी फिट रहेगा।
संवेदनशील हृदय का परिचय देते हुए आईजी सुनिल दत्त ने अपने बचपन के खेल संस्मरण भी सुनाये और बचपन के खेलों को बड़े होकर खेलने वालों से तुलना करते हुए कहा कि आजकल समाज में बड़े होकर लोग एक दूसरों को 'पटखनी' देने का खेल खेलते हैं जिससे हमें दूर रहकर समाज को सुरक्षा एवं अपने कर्तव्यों के प्रति सजगता का परिचय देना चाहिये।
खेलकूद प्रतियोगिता के आयोजक एवं पाली पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार टांक ने कहा कि सात जिलों की सीमाओं से जुड़े पाली जिले को 39वें खेलकूद प्रतियोगिता के आयोजन का सौभाग्य मिला है। प्रतिभागी जवान खिलाड़ी अपनी टीम भावना से खेलकर अनुशासन का परिचय देवें। आपने सम्बोधन में कवि की पंक्तियां कही 'जीतकर जो रूक गया उसे जीता नहीं कहूंगा, हार कर जो चल पड़ा उसे हारा नहीं कहूंगा।'
समारोह के अध्यक्ष एवं पाली विधायक ज्ञानचन्द पारख ने समारोह में देर से आने को राजनेताओं का भ्रम बताते हुए कहाकि राजनैतिक कार्यक्रम देर से शुरू होते हंै जबकि आज के पुलिस समारोह ने मुझे समय पाबन्दी एवं पुलिस के अनुशासन की सीख दी है। नगर परिषद चेयरमेन महेन्द्र बोहरा ने भी खिलाडिय़ों को शुभकामनाएं एवं टीम स्पीड से खेलने का संदेश दिया।
आज के समारोह में जोधपुर रेंज के विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों ने भी अपनी टीमों के साथ भाग लिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोढ़ा बाल निकेतन के छात्र-छात्राओं द्वारा देशभक्ति, मार्शल आर्ट कोच आसिफ खान ने सेल्फ डिफेन्स एवं गैर नृत्य का आयोजन भी दर्शकों एवं खिलाडियों को समारोह में बांधे रखने में सहयोगी रहा।

बेस्ट टीम को आईजी पुरस्कार
जोधपुर रेंज खेलकूद प्रतियोगिता की 9 टीमों में सर्वश्रेष्ठ खेल प्रदर्शन करने वाली टीम को आईजी सुनिल दत्त अलग से सम्मानित करेंगे। खेल शुभारम्भ में खिलाडियों को अच्छे प्रदर्शन का गुरूमंत्र देते हुए आईजी दत्त ने प्रोत्साहन के लिए 'बेस्ट टीम' को आईजी जोधपुर रेंज की ओर से विशेष पुरूस्कार देने की घोषणा कर उत्साहित किया।
58 को सेवा चिन्ह अलंकरण
जोधपुर पुलिस रेंज के उत्कृष्ट सेवा कार्य करने वाले 58 पुलिस अधिकारियों एवं जवानों को आईजी सुनिल दत्त ने खेलकूद उद्घाटन समारोह में पुलिस सेवा चिन्ह अलकंरण से सम्मानित किया। खेल के मैदान पर गौरान्वित अधिकारियों के सीने पर स्वयं आईजी दत्त ने सेवा चिन्ह लगाकर 58 पुलिस जवानों को अच्छी सेवा के लिए प्रोत्साहित किया।
...याद करो कुर्बानी
खेलों के शुभारम्भ पर लोढ़ा बाल निकेतन छात्र-छात्राओं ने युद्ध के समय सीमा पर पुलिस जवानों के कौशल एवं साहसिक युद्ध का सजीव चित्रण मय हिमालय की पहाडिय़ों के किया। साथ ही बालिकाओं द्वारा शहीदों को श्रद्धांजलि का अमरगीत 'ए मेरे वतन के लोगों' को पहली बार डांस पर पेशकर मार्मिक एवं भावुक वातावरण पैदा कर दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Sunday, May 3, 2015

जहाँ बेदर्द हो हाकिम...


'जन सुनवाई : मंत्री दरबार : जनता दरबार

अब्दुल सत्तार सिलावट
जन सुनवाई। मंत्रियों के बंगलों पर। भाजपा प्रदेश कार्यालय में 'मंत्री दरबार' लगेंगे। मुख्यमंत्री निवास पर तो बारहो महिनों जन सुनवाई चलती है। कांग्रेस के अशोक गहलोत के कार्यकाल में भी प्रदेश भर से रात भर जागकर, सैकड़ों रूपये किराया लगाकर और घर से चार रोटी कपड़े में बांधकर जनसुनवाई में लोग आते थे। मुख्यमंत्री गहलोत जनता दरबार में उनके हाथों से प्रार्थना पत्र लेकर पीछे खड़े स्टाफ को देते थे और गांव से आया गरीब संतुष्ट होकर चला जाता था कि अब मेरा काम हो गया... बिल्कुल वैसा ही दरबार, जन सुनवाई, गांवों से आने वालों की भीड़ मौजूदा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के दरबार में भी लगती है। मुख्यमंत्री के सामने होते हैं गांवों से आये फरियादी, हाथों में दो-चार पेज पर हाथ से या टाईप की हुई 'दर्द भरी दास्तान' और मुख्यमंत्री उनके हाथों से लेकर पीछे खड़े स्टाफ को दे देती है। गरीब संतुष्ट, गांव में जाकर कार्यवाही का इन्तजार...।
वसुन्धरा जी, अशोक गहलोत ने भी जनता दरबार तो लगाये, लेकिन जनता की फरियाद, दु:ख दर्द की शिकायतों पर कार्यवाही नहीं होती थी इसलिए राजस्थान की जनता ने उन्हें .... जहाँ बेदर्द हो हाकिम, वहाँ फरियाद क्या करना .... और सत्ता से बेदखल कर दिया। आपकी भाजपा सरकार भी पिछले सवा साल में अशोक गहलोत के 'पद चिन्हों' पर या उनकी 'वर्क स्टाइल' का अनुसरण कर रही है। जनता की फरियाद आप, आपके मंत्री और पार्टी पदाधिकारी ले लेते हैं, लेकिन उन पर कार्यवाही नहीं होती है। ऐसी बातें आम जनता के साथ आपकी पार्टी भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता और जिन्हें मंत्री नहीं बनाये वे विधायक तो खुले आम जन सुनवाई को 'नाटक' कहकर मजाक उड़ाते हैं।
महारानी साहिबा, आप कुशल प्रशासक हैं, आपकी 'रगों' में शासक का खून दौड़ रहा है आपके चेहरे के तेजस्व से पिछले शासन में अधिकारियों की दिल की धड़कने बढ़ जाती थी, लेकिन इस बार उन्हीं अधिकारियों ने आपको चारों ओर से घेर कर इतना विश्वास में ले लिया है कि आप अपने शुभचिन्तकों, विश्वसनीय राजनेताओं और अपने पार्टी पदाधिकारियों के साथ आम जनता की दु:ख, पीड़ा और दर्द की चीख से बेखबर और दूर होती जा रही हैं। आप राजस्थान के विकास में दिन-रात दौड़ रही हैं, लेकिन इस दौड़ में आपके 'अपने' पीछे छूट रहे हैं और खुदगर्ज लोगों की भीड़ आपको चारों ओर से घेर कर आपको जनता से ही दूर कर रही है।
मुख्यमंत्री जी, आप जनता दरबार लगवायें, जन सुनवाई भी करवायें, पार्टी मुख्यालय में मंत्रियों को रोजाना बैठा दीजिये। साथ ही आप हर सप्ताह मंत्रिमण्डल की बैठक भी जरूर लेवें, लेकिन इन सब से पहले पिछले सवा साल में जनता द्वारा आपको राजस्थान के दौरों में दी गई फरियादें, अपने दुखों की दास्तानों के 'चि_ों' और आपके आवास पर आने वालों की फरियादों पर कितने लोगों को राहत मिली है। कितनी शिकायतों पर दोषी कर्मचारियों, अधिकारियों को सजा मिली है। फरियादी को राहत मिलने के बाद आपके पार्टी पदाधिकारियों ने अअसकी सुध ली है या नहीं। एक बार आप नई सरकार गठन के बाद वाले सवा साल में जन सुनवाई पर हुई कार्यवाही की समीक्षा करवाकर देख लेवें आपको 'सच्चाई' का पता चल जायेगा। राजस्थान में सिर्फ आपकी सरकार ही नहीं पिछली कांग्रेस सरकार में भी जनसुनवाई मात्र औपचारिकता बनकर रह गई थी।
वसुन्धरा जी, आपकी पहली सरकार में आप जनता के दिलों में कुशल प्रशासक के रूप में छा गई थीं और यही कारण था कि सचिवालय से लेकर पूरे जयपुर और राजस्थान में बड़े शहरों में सफाई, बिजली, पेयजल, उद्यानों में ताजा फूल भी खिलते थे, लेकिन इस बार की सरकार के पहले छ: माह के बाद से ही मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर कमल कुण्ड से लेकर स्टेच्यू सर्कल, जनपथ और मुख्य चौराहों पर ताजा फूल तो दूर की बात तीन-तीन दिन तक टूटे पत्ते भी नहीं हटाये जा रहे हैं। जनता में आपकी छवि अधिकारियों द्वारा चलाई गई पिछली कांग्रेस सरकार जैसी बनती जा रही है।
मुख्यमंत्री जी, आप पिछले तीन माह से रिसर्जेंट राजस्थान को ऐतिहासिक एवं विश्व स्तरीय बनाने में लगी हैं और यह बात सत्य है कि आप जिस 'विजन' से यह आयोजन करने जा रही हैं उससे राजस्थान देश ही नहीं विश्व स्तर पर एक नई पहचान बना डालेगा। राजस्थान में सिर्फ औद्योगिक विकास ही नहीं बल्कि इसके साथ कृषि, शैक्षणिक, चिकित्सा क्षेत्रों में भी विकास होगा और राजस्थान की बेरोजगारी खत्म हो जायेगी।
मुख्यमंत्री जी, आपके साथ प्रदेश को चलाने वाले सभी प्रमुख एवं उच्च अधिकारी रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारियों में व्यस्त होने के कारण बाकी अधिकारी भी रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारियों की चर्चाओं में लगे रहते हैं और पूरे राजस्थान की सरकारी कार्यों की स्पीड को ब्रेक लग चुका है जो सम्भवत: रिसर्जेंट राजस्थान समारोह की समाप्ती के बाद ही गति पकड़ पायेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Friday, April 24, 2015

शाह का दौरा तय करेगा राजस्थान का भविष्य...


अब्दुल सत्तार सिलावट
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़े नेता अमित शाह या यह भी कह सकते हैं कि नरेन्द्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से दिल्ली के लालकिले की दिवार तक प्रधानमंत्री बनाकर पहुंचाने वाला चाणक्य और आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पूरे भारत में भाजपा की प्रदेश सरकारें बनाने में एक के बाद एक कदम सफलता की ओर।
अमित शाह ने जिस पर हाथ रखा वह केन्द्र सरकार में मंत्री या प्रदेश का मुख्यमंत्री बना जिनमें महाराष्ट्र, हरियाणा के अन्जान चेहरे उल्लेखनीय है। राजस्थान में अमीत शाह पहली बार आ रहे हैं जबकि राजस्थान में विधानसभा, निकाय या पंचायत स्तर तक के चुनाव भी नहीं हैं, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के राजस्थान दौरे को ऐतिहासिक एवं यादगार बनाने के लिए सिर्फ प्रदेश भाजपा ही नहीं बल्कि वसुन्धरा राजे की पूरी सरकार समारोह स्थल को सजाने में लग गये हैं।
अमर जवान ज्योति के सामने अमित शाह की विशाल सभा में आने वाले प्रदेश भर के भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए जो मंडप बनाये गये हैं उन्हें देखकर वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय वल्र्ड ट्रेड पार्क के शिलान्यास की याद ताजा हो जाती है जिसमें शाहरूख खान ने सोने की ईंट से नींव रखी थी और वातानुकुलित मंडप में विश्व भर से ज्वैलर्स ने भाग लिया था।
राजस्थान की राजनीति पर 'पैनी नजर' रखने वाले चाणक्य कहते हैं कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे अमित शाह के इस दौरे को ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय बनाकर नरेन्द्र मोदी एण्ड कम्पनी जिसमें अमित शाह भी प्रमुख हैं इनके दिलों में वसुन्धरा राजे के प्रति फैली 'गलत फहमी' मिटाने का प्रयास कर रही है, जबकि कुछ लोग ऐसे शगुफे भी छोड़ रहे हैं कि अमित शाह अपने वफादार साथी ओम माथुर के 'उज्जवल' भविष्य की नींव रखने आ रहे हैं। भगवान करे यह शगुफा झूठा हो। क्योंकि राजस्थान सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इस समय रिसर्जेंट राजस्थान के मार्फत राजस्थान में सौ साल तक एक तरफा विकास की नींव रखने में दिन रात व्यस्त हैं। देश-विदेश में मुख्यमंत्री राजे के दौरों के अलावा पूरे मंत्रिमण्डल के प्रयास बताते हैं कि राजस्थान में सिर्फ उद्योगपति ही नहीं इनसे जुड़े लाखों परिवारों को रोजगार, व्यवसाय, छोटे उद्योग, किसान की फसलों को उचित मूल्य एवं अन्य विकास के नये रास्ते भी खुलेंगे।
चाणक्य का उपदेश है कि राजनीति में अपने से तेज भाग रहे साथी में यदि स्वयं का बेटा भी है तब भी उसे गिराने या रोकने का प्रयास किया जाना चाहिये। ऐसा ही राजस्थान की राजनीति में भी सम्भावित लग रहा है। आज देश के किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने राज्य के लिए ऐसे प्रयास नहीं कर रहा है जो मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे कर रही हैं या यूं भी कह सकते हैं कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और राजस्थान में वसुन्धरा राजे एक ही गति से विदेश दौरे एवं देश के विभिन्न राज्यों से उद्योगों के लिए निवेश लाने का प्रयास कर रहे हैं।
अमित शाह का दौरा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की पीठ थपथपाता है या 162 विधायकों के कान में अपने वफादार दोस्त को आगे बढ़ाने का मंत्र फूंकता है। जो भी हो 25 अप्रेल को 'शनि' किसके लिए शुभ होता है और किसके लिए 'प्रकोप' बनेगा। इसका फैसला मंच पर बैठने की व्यवस्था और अमित शाह के भाषण में किसकी प्रसंशा होती है इसी से मेरे राजस्थान के विकास का भविष्य तय हो जायेगा।

'बेलगाम भाषण' टोपी-बुर्के को भाजपा से धकेल रहे हैं...
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्वागत में हजारों मुसलमानों को टोपीयां पहनाकर एवं मुस्लिम औरतों को काले बुर्के पहनाकर शानदार स्वागत कर पूरे देश में और विशेषकर यूपी-बिहार के मुसलमानों को भाजपा के साथ आने का संदेश दिया जायेगा। भारत का मुसलमान तो कांग्रेस छोड़कर लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के साथ आ गया था, लेकिन अपनी पार्टी के 'सांपनाथ-नागनाथ'  बने नेताओं के मुस्लिम विरोधी भाषण मुसलमानों की भाजपा के प्रति विश्वसनीयता को आपके दिलों में ही कम कर दिया है जिससे राजस्थान दौरे में आपके स्वागत में 'टोपी-बुर्के' का प्रदर्शन दौहराना पड़ रहा है।
अमित शाह साहब, आजादी के बाद देश और प्रदेश (राजस्थान) में जब भी भाजपा का शासन रहा तब मुसलमान सुरक्षित रहा है। मुसलमान भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे पर भरोसा ही नहीं करता है बल्कि इन्हें कांग्रेसीयों से ज्यादा मुसलमानों का हमदर्द मानता है, लेकिन आपकी पार्टी के 'बेलगाम' नेताओं के सिर्फ भाषण ही मुसलमान के भाजपा की ओर बढ़ते कदमों को रोक देता है। यूपी-बिहार में आप विजयी रहें, लेकिन थोड़े बहुत भी उल्टे परिणाम आये तो उनका श्रेय 'सांपनाथ-नागनाथ' ब्रांड नेताओं की ही देना चाहिये।
भाजपा की प्रदेश ईकाई में बैठे मुस्लिम नेता अमित शाह के स्वागत में हजारों की संख्या में सर पर टोपीयां पहनकर और औरतें बुर्का पहनकर अमित शाह का एयरपोर्ट से मंच तक के रास्ते में किसी एक स्थान पर फूल बरसा कर बतायेंगे कि राजस्थान का मुस्लिम भाजपा के साथ है। इतनी तेज गर्मी में मुसलमानों का ऐसा प्रदर्शन क्यों हो रहा है। जबकि ऐसे नाटकिय टोपी-बुर्का प्रदर्शन चुनाव के वक्त मतदाताओं में भ्रम फैलाने के लिए होता है।
अमित शाह के स्वागत में मुसलमानों को एयरपोर्ट से आते वक्त जयपुर डेयरी के पास फूल बरसाने एवं अमित शाह को टोपी पहनाकर रूमाल गले में डालने का स्थान तय किया है। सभा स्थल से तीन किलोमीटर दूर हजारों मुसलमान स्वागत के बाद वापस सभा स्थल अमरूदों का बाग तक दो-तीन घंटे में भी नहीं पहुंच सकते हैं फिर भाजपा के नेताओं ने ऐसा स्थान क्या मुसलमानों को अमित शाह की विशाल सभा से दूर रखने के लिए चुना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, April 23, 2015

कौन रोकेगा किसान की आत्महत्याएं?


अब्दुल सत्तार सिलावट

''किसान की फसलों के अलावा देश में अन्य व्यापार, उद्योगों में भी आपदाएं, मंदी, अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मार से, शेयर मार्केट के लुढ़कने से करोड़ों रूपये डूब जाते हैं। कपास या सूत के निर्यात बंद होने पर पाँच पाँच रूपया मीटर भाव टूटने से मिल मालिकों को करोड़ों का नुकसान हो जाता है। सट्टा बाजार के ऑनलाइन व्यापार में भी करोड़ों के घाटे आपने सुने होंगे, लेकिन कभी किसी मिल मालिक, शेयर बाजार के दलाल, एक्सपोर्टर को आत्महत्या करते नहीं सुना होगा, जबकि देश के बड़े उद्योगपतियों के पास राष्ट्रीय बैंकों के हजारों करोड़ के लोन डूबत खाते में न्यायालयों के मुकदमों में फंसे पड़े हैं, लेकिन गाँव का किसान दस-बीस हजार के कॉपरेटीव लोन या साहूकार की उधारी नहीं चुकाने पर समाज-परिवार को मुँह दिखाने लायक नहीं रहता है और आत्महत्या कर देता है। अब आप ही बताएं कौन खुद्दार है किसान या बैंकों का हजारों करोड़ लेकर बैठा उद्योगपति। समाज और सरकार किसान की खुद्दारी बचाने के लिए 100-100 रूपये के चैक देने बंद कर उसका वास्तविक नुकसान भुगतान करे। सरकारी कर्मचारियों के महंगाई भत्ते की तरह किसान के लिए भी एक सम्मानजनक मासिक आय निर्धारित कर उसकी फसल का उचित मूल्य तय करे। तभी किसानों की आत्महत्याएं बंद होंगी अन्यथा किसान की मौत पर सरकारें भले ही शर्मिंदा ना हों, लेकिन भगवान जरूर शर्मसार हो जायेगा।''

भारत कृषि प्रधान देश है और आज देश के कौने-कौने में किसान आत्महत्याएं कर रहा है। हमारे प्रधानमंत्री फ्रांस, जर्मनी, कनाडा की विदेश यात्राओं के बाद राज्यों के मुख्य सचिवों से वीडियो कांफ्रेंसिंग कर प्रगति पूछ रहे हैं। संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पर किसान के शोषण पर विपक्ष से शक्ति परीक्षण चल रहा है। हमारे राजस्थान में भी आठ माह बाद होने वाले रिसर्जेंट राजस्थान की तैयारी में मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव और प्रदेश को चलाने वाले मुख्य ब्यूरोक्रेट्स जापान से कलकत्ता तक नया निवेश लाने में व्यस्त हैं। उद्योगों के विकास के प्रयास प्रसंसनीय हैं, लेकिन प्रदेश का किसान ओलावृष्टी और बेमौसम की बरसात से बर्बाद होने के बाद विधानसभा से गाँव की चौपाल तक सरकारी सहायता की घोषणाओं की उम्मीद पर अपने घर खर्च से बेफिक्र होकर अपने खेतों में मवेशियों के लिए बची हुई घास निकालने में लगा था, लेकिन सरकारी मदद के नाम पर हजारों के नहीं 100-200 रूपये के चैक देखकर उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और इसी सरकारी मदद के बाद किसान आत्महत्याएं कर रहा है या हार्ट अटैक से मर रहा है, हमारे किसी राजनेता को इसकी चिन्ता नहीं है!
राजस्थान के दौसा के किसान की दिल्ली में 'आप' के सम्मेलन में पेड़ से लटककर आत्महत्या की खबर राजस्थान में सत्ता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के 'आवभगत' की तैयारियों में दबकर रह गई। भाजपा को अगले चार साल तक वोटों की जरूरत नहीं है इसलिए ग्रामीण, मजदूर, गरीब, किसान की चिन्ता से मुक्त नेता स्थाई साथी उद्योगपति, बिल्डर्स, ज्वैलर्स, एक्सपोर्टर्स के साथ 'गलबहियों' में उलझे हुए हैं। कुछ नेता अन्य प्रदेशों से राज्य में निवेशक लाने के प्रयासों में हवाई सफर कर रहे हैं। किसान के दर्द से सभी बेखबर। नेताओं और अफसरों को ऐसा लगता है कि राजस्थान में ओलावृष्टी से फसलें पिछले साल बर्बाद हुई थीं, जबकि दस दिन पहले तक विधानसभा में कुछ विधायक किसानों की बर्बादी पर राहत की माँग उठा लेते थे और सरकार भी हमदर्दी के आँसूओं के साथ मुफ्त बिजली, ब्याज मुक्त कर्ज जैसी घोषणाएं कर देती थीं, लेकिन अब किसान की बात करने की किसी को फुर्सत नहीं है।
आजादी के बाद से अब तक देश के राजनेताओं को संसद पहुँचाने एवं देश की तरक्की में कृषि करने वाला किसान 'रीढ़ की हड्डी' बनकर अपने घर-परिवार और स्वास्थ्य की 'आहुति' देता रहा है, लेकिन हमारी सरकारें ऑफिस के चपरासी को पन्द्रह हजार रूपया महीना दे देती है जबकि किसान मात्र तीन हजार रूपये मासिक आय ही ले पाता है अपनी फसलें बेचकर। किसान ओलावृष्टी से बर्बाद फसल पर सरकार से मदद मांगता है तब संसद में मंत्री नीतिन गडकरी भगवान पर भरोसा रखने की सलाह देते हैं और केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग देते वक्त देश की आर्थिक स्थिती सुधरने तक कर्मचारियों को भगवान पर भरोसा रखने की सलाह देने का साहस किसी मंत्री या प्रधानमंत्री में नहीं हैं।
देश का भाग्य विधाता किसान को जयपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारी से भी कम आय पर गाँवों में लू के थपेड़ों और भट्टी सी सुलगती जमीन पर भरी दोपहरी में नरेगा में काम करने पर सभी 'कमीशन' काटने के बाद एक सौ रूपये हाथ में आते हैं और वह भी पूरे तीस दिन नहीं।
किसान की फसल आने के बाद मंडियों में सरकार न्यूनतम दर 1450 रूपये तय तो कर लेती है, लेकिन इस सरकारी दर पर उद्योगपति और मंडी का व्यापारी भी किसान से खरीद नहीं करता है और सरकार तो व्यापारियों के ईशारों पर किसान को सरकारी दर से कम पर बेचने को मजबूर कर ही देती है। इन हालात में किसान भगवान के अलावा किस से फरीयाद करे और किसान जब फरीयाद कर करके थक जाता है तो आत्महत्याओं का दौर शुरू हो जाता है।
हमारे देश में प्राकृतिक आपदा बारीश, ओलावृष्टी, बाढ़, अकाल में देश भर से समाजसेवी पीडि़तों की मदद के लिए दवाईयां, कपड़ा, जरूरी सामान लेकर चले जाते हैं। चाहे गुजरात का भूकम्प हो या बद्रीनाथ में बादल फटने की घटना हो, हाल के कश्मीर में भारी बारीश से बर्बादी। सभी में देश भर से ट्रकें भरकर नेताओं से, समाजसेवीयों से हरी झण्डी दिखाकर आपदा वाले क्षेत्रों में राहत भेजी जाती रही है, लेकिन आश्चर्य और दु:ख इस बात का है कि देश में कपास उगाने वाले क्षेत्रों में किसानों ने फसलों की बर्बादी पर 70 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं की हैं और देश के किसी भी टेक्सटाइल मिल मालिकों या बड़े टेक्सटाइल घरानों में से किसी भी उद्योगपति ने कपास पैदा करने वाले किसानों की मदद के लिए आगे आकर राहत देने का प्रयास नहीं किया जिससे हमारे किसान देश के लिए शर्मनाक मौत से बच सकते थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Tuesday, April 21, 2015

दुनिया में कौमी एकता की मिसाल: ख़्वाजा का उर्स


अब्दुल सत्तार सिलावट                                                  
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़। सरकार-ए-हिन्द। ग़रीब की फ़रियाद सुनने वालों का आस्ताना हमारे राजस्थान में। पाकिस्तान, बांग्लादेश ही नहीं, श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार), नेपाल और खाड़ी देशों में बसे अफगानिस्तान एवं अखण्ड भारत के सिर्फ मुसलमान ही नहीं, मुसलमानों से अधिक ख़्वाजा के दिवाने हैं गैर मुस्लिम। कौमी एकता में यकीन रखने वाले। सूफियाना इबादत को मानने वाले, सभी के क़दम हर साल उर्स मुबारक के मौके पर ख़्वाजा की चौखट अजमेर शरीफ़ की ओर बढऩे लगते हैं और वैसे तो साल भर हर इस्लामी महीने की छ: तारीख़ को ख़्वाजा के दरबार में छठी शरीफ़ की फ़ातिहा भी छोटा उर्स कहलाने लगी है।
सरकार-ए-हिन्द ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के उर्स मुबारक के झंडे की रश्म के साथ ही देश भर से पैदल आने वालों को अचानक दो दिन से तेज़ हुई गर्मी-लू के थपैड़ों और आग उगल रही डामर की सड़कों पर अपनी मन्नतों के लिए नंगे पाँव स$फर तय करते हुए भी देखा जा सकता है।
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दरबार में कोई छोटा-बड़ा, अमीर, दौलतमंद, सियासतदां या वज़ीर-ए-वक़्त नहीं होता। यहाँ हाथों में फूल, सर पर चादर लिये सभी अपनी मुरादों की झोलीयां फैलाये ख़्वाजा के आस्ताने की तरफ बढ़ते नज़र आते हैं और ख़्वाजा के दर पर आने वाले करोड़पति से लेकर झौपड़पट्टी के ग़रीब तक सभी मुरादें माँगते हुए ही आते हैं इसलिए ख़्वाजा को ग़रीब को नवाज़ने वाला 'ग़रीब नवाज़' कहा जाता है।
सरहदों पर चाहे गोलियां चलें या जासूसी के ड्रोन पकड़े जाये, लेकिन ख़्वाजा के दिवानों को उर्स मुबारक में आने के लिए हुकुमत-ए-हिन्द कौमी एकता का संदेश देते हुए वीजा भी ज़ारी करती है और ग़रीब नवाज़ के दिवानों का बिना किसी कड़वाहट के मेहमान नवाज़ी के लिए खुले दिल से इस्तक़बाल भी करती है।
अजमेर शरीफ़ की तरफ आने वाले देश भर के 'हाइवे', रेल की पटरियां और हवाई सेवा के साथ छोटी गाडिय़ों में आने वाले ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के दिवानों का राजस्थान की सरज़मीं पर छोटे गाँव, कस्बों और शहरों में खान-पान, वाहन मरम्मत और पैदल ज़ायरीनों का गैर मुस्लिम भाई भी ख़ूब अच्छा इस्तक़बाल करते हुए राजस्थान की मेहमान नवाज़ी की परम्परा 'पधारो म्हारे देस' के नारे को 'पधारो म्हारा ग़रीब नवाज़ री नगरी' के रूप में चरितार्थ करते हैं।
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का आस्ताना जितना मुसलमानों की अक़ीदत का दरबार है उससे कई गुना ज़्यादा गैर मुस्लिम भी ख़्वाजा की चौखट पर अपनी मुरादों की दस्तक देते हैं। देश के राजनेता हों या बड़े उद्योगपति और फिल्म नगरी के सितारे हों या खेल जगत की हस्तियां। सभी ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर अपनी क़ामयाबी की मुराद लेकर आते हैं और झोलीयां भरने के बाद 'शुकराने' की हाजिरी भी देते हैं।

मोदी से पहले ओबामा ने पेश की चादर...
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का उर्स शुरू होते ही देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री अपनी ओर से 'चादर' पेश कर मुल्क में अमन, तरक्की, ख़ुशहाली की मुराद मांगते हैं और इस बार भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से 'चादर' पेश की गई तथा विदेश से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की ओर से ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर अक़ीदत के साथ चादर पेश की गई। राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल कल्याण सिंह की ओर से भी ख़्वाजा के दरबार में चादर पेश की गई।
जब राजनेताओं और अमेरिका से ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' पेश हो चुकी है तब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से अब तक 'चादर' नहीं आने पर चर्चाओं का बाज़ार गर्म हैं। राजनीति के पंडित बता रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी की गुजरात टीम के चाणक्य मोदी के नाम से ख़्वाजा के दरबार में चढ़ायी जाने वाली 'चादर' के गुण-लाभ देख रहे हैं। बताया जा रहा है कि मुसलमानों की टोपी-रूमाल से दूर रहने वाले नरेन्द्र मोदी द्वारा ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' चढ़ाने से हिन्दू कट्टरपंथियों की नाराज़गी हो सकती है या साक्षी महाराज की टीम के भगवा राजनेताओं में भी ग़लत संदेश जा सकता है। नरेन्द्र मोदी की टीम ख़्वाजा की चौखट पर 'चादर' चढ़ाने को लेकर 'पशो-पेश' (असमंजस) में हैं फिर भी प्रधानमंत्री पद की परम्परा के अनुसार ग़रीब नवाज़ के आस्ताने पर 'चादर' पेश करने से पहले कट्टरपंथियों को विश्वास में लेने के प्रयास चल रहे हैं जिससे 'चादर' की ख़बर के साथ ही 'उल्टे-सुल्टे' बयानबाजी से बचा जा सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

Thursday, April 16, 2015

अक्षय तृतीया का मतलब बाल विवाह...



अब्दुल सत्तार सिलावट
शारदा एक्ट। अक्षय तृतीया। एक पखवाड़े तक ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात सरकारी अधिकारी पटवारी, तहसीलदार, गाँव की पुलिस चौकी का दारोगा, सभी बाल विवाह रोकने के लिए मुस्तैद। घोड़ी, बैंड, टेन्ट, हलवाई और कार्ड छापने वाले अपना मेहनताना तय करने से पहले दुल्हा-दुल्हन की उम्र की जाँच करते हैं, पास-पड़ौसीयों से। शादी के घर में दुल्हा-दुल्हन के मेहन्दी, पीटी और तेल की रशम से अधिक चिन्ता बालिग होने के प्रमाण पत्र फूल माला की जगह उनके गले में लटकाये रखो और रिश्तेदारों के यहाँ से 'बान' और बन्दोली खाने से अधिक सुबह से शाम तक जाँच करने को आने वाले गाँव के कलेक्टर पटवारी और उनके साथियों को चाय-पानी, अमल की मनुहार में घर का एक बड़ा आदमी लगा रहता है।
अक्षय तृतीया पर नाराज़ रिश्तेदारों, पड़ौसीयों, गाँव में आपकी प्रतिभा से जलने वाले और खेत की ज़मीन पर पड़ौसी से झगड़े का बदला लेने का ऐसा मौका होता है जिसे सभी 'भुनाने' में लग जाते हैं। ऐसे लोग सरकारी अधिकारियों को चोरी-छुपे फोन पर या पोस्टकार्ड लिखकर अपने प्रतिद्वन्दी का ठीकाना बता देते हैं। इसके बाद सरकारी अफसरों, गाडिय़ों और पुलिस के चक्कर लगने से शादी के घर में दुल्हा-दुल्हन के 'लाड़-कोड़' करना भुल कर गाँव के सरपंच, चौपाल के फालतू नेताओं के बीच शादी वाले घर का मुखिया अपने समर्थन में चार लोग जुटाने में ही व्यस्त हो जाता है।
हमारे पूर्वजों ने अक्षय तृतीय (आखा तीज) को 'अणबुझिया मुहुर्त' (बिना पंडित जी को दिखाये शादी का मुहुर्त) और शुभ दिन क्यों बताया इसके पीछे गाँव की गरीबी, निरन्तर अकाल, सूखा से किसान की आर्थिक स्थिती कमजोर होना और यही हालात आज भी है किसान अकाल और सूखे से बचाकर अपनी लहलहाती फसलों को देख बेटी की शादी के सपने बुन रहा था और प्राकृतिक आपदा ने पश्चिमी विक्षोभ के नाम से पकी-पकाई फसलों पर ओलावृष्टी, भारी बारिश ने तबाही कर दी और यह तबाही किसान के घर एक बार नहीं बल्कि निरन्तर एक माह से चल रही है।
गाँवों में सामूहिक परिवार होते हैं। एक बाप के चार बेटे। चारों बेटों के तीन-तीन, चार-चार बेटा बेटी। इन बच्चों में से चार छ: हम उम्र शादी के लायक बालिग हो जाते हैं और परिवार के मुखिया को शादी खर्च की चिन्ताएं घेर लेती है तथा वह अपनी फसल की अच्छी पैदावार की उम्मीद में दो-तीन साल तक शादी को आगे खींच लेता है। गाँवों की परम्परा में बड़ा परिवार, बड़ी रिश्तेदारियां और घर की प्रतिष्ठा के अनुसार शादी में बड़ा खर्च सामूहिक भोज में ही होता है और इसके लिए घर के बड़े-बुजुर्ग की मौत के बाद उनके 'फूल' (अस्थियां) बड़े आयोजन तक हरिद्वार नहीं ले जाकर घर में ही रखते हैं। जब बच्चों की शादी की तैयारी हो जाती है तब घर में रखी अस्थियां हरिद्वार ले जाकर गंगाजी में विसर्जित कर वहाँ से गंगाजल लेकर आते हैं और गाँव के प्रवेश द्वार से घर तक गंगा जल को सर पर उठाकर घर की औरतें ढ़ोल बाजों के साथ घर लाती हैं और अब गंगा प्रसादी के रूप में सामूहिक भोज की तैयारी होती है।
गंगा प्रसादी के सामूहिक भोज में पिताजी की मौत का 'मौसर', बच्चों की शादीयां और नये पैदा हुए बच्चों की ढूंढ़ का खाना भी शामिल हो जाता है। गाँव के बड़े घरों में दस-बीस साल में एक ही बड़ा खाना होता है जिसमें उस जाति का पूरा समाज (न्यात) गाँव के करीबी लगभग सभी शामिल हो जाते हैं। 
ऐसे आयोजन में बाल विवाह का सत्य भी जान लीजिए। बड़े परिवार के तीन-चार भाईयों के बालिग बच्चों के साथ उनसे छोटे बारह साल, दस साल या आठ साल और कई बार दो-तीन साल के बच्चों को भी थाली में बैठाकर अग्नि फेरे पहले करवाते थे जो अब लगभग स्वत: ही बंद कर दिये गये हैं। नाबालिग बच्चों की शादीयां करने के पीछे गाँवों के गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों को बार-बार विवाह के खर्च से बचाने की परम्परा है जबकि बालिग भाई-बहनों के साथ होने वाली नाबालिग या बाल विवाह में शादी की मात्र रशम अदायगी है। यह बच्चे जब जब बालिग होते हैं तब तब इनके गौने (मुकलावा) होते हैं और फिर सुहागरात की दहलीज तक पहुंचते हैं इसलिए इस बाल विवाह को 'मंगनी' या सगाई की रशम जितना ही माना जाता है।
शारदा एक्ट में बाल विवाह के बाद शारीरिक सम्बन्धों (सुहागरात) को बच्चों का शोषण मानकर अपराध बनाया गया था, लेकिन मौजूदा हालात में गाँव के लोग गरीबी की मार के कारण बालिग बच्चों के शादी खर्च में छोटे बच्चों की शादी की रशम अदायगी करते हैं जबकि इनके बालिग होने पर ही सुहागरात तक यह शादीयां पहुँचती है। पढ़ी लिखी एनजीओ से जुड़ी महिला हो या गाँव की अनपढ़-गंवार कही जाने वाली रूढ़ीवादी गृहिणी। इतना सभी जानते हैं कि लड़की जब तक बालिग या परिपक्व नहीं हो जाती उसको गौना या सुहागरात तक कैसे पहुँचा सकते हैं। हमारे देश में रेड लाईट एरियों में 'धंधा' करवाने वाली चकला मालकिनें खरीद कर लाई लड़कियां जब तक बालिग नहीं हो जाती हैं उनकी 'नथ उतरवाने' का सौदा भी नहीं करती हैं फिर गाँव की एक माँ जिसने अपनी कोख से जिस बेटी को पैदा किया है उसे बिना बालिग हुए शारीरिक शोषण के लिए ससुराल कैसे भेज सकती है।
शारदा एक्ट का हम सभी सम्मान करते हैं, लेकिन साल के 365 दिन की शादियों में बाल विवाह की चिन्ता से मुक्त हमारी सरकारें, गैर सरकारी संगठन, जनप्रतिनिधि और जागरूक एवं बुद्धिजीवी गाँवों की गरीबी में हो रहे छोटे भाई बहनों की शादी की रशम अदायगी को बाल विवाह या शारदा एक्ट के उल्लंघन के रूप में नहीं देखकर सरकार की सामूहिक विवाह प्रोत्साहन योजना में शामिल कर गाँव के गरीब के बच्चों की सामूहिक शादी में आर्थिक सहयोग की नीति बनाकर प्रोत्साहित करना चाहिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक महका राजस्थान के प्रधान सम्पादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)