Mahka Rajasthan Vimochan By CM Vasundhra Raje

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Rajasthan Chief Minister Vasundhra Raje Vimochan First Daily Edition of Dainik Mahka Rajasthan Chief Editor ABDUL SATTAR SILAWAT

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Dainik MAHKA RAJASTHAN

Thursday, July 23, 2015


राजस्थान की पत्रकारिता में स्वयं को भीष्म पितामह के वंशज समझने वालों के अख़बार में आज (23 जुलाई 2015) आयकर छापे के समाचार को इसलिए नहीं छापा गया कि देश के राजस्व भण्डार पर डाका डाल रहे आयकर चोर समाचार पत्र से नाराज़ होकर वित्तीय लाभ देना बंद नहीं कर दें। जबकि इससे बड़े राजस्थान ही नहीं देश के नम्बर एक अख़बार ने प्रथम पृष्ठ पर आयकर चोरों की फर्म के नाम सहित समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया है।

अब्दुल सत्तार सिलावट          
 
 लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ प्रेस-मीडिया-समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार से आज के समाज को अफसरों और राजनेताओं से अधिक उम्मीदें, विश्वास हैं, इसलिए नलों में गंदा पानी आने पर, बिजली कटौती, अस्पताल में अव्यवस्था या गली मोहल्ले की गन्दगी पर अफसरों और नेताओं से पहले पत्रकार को आवाज़ देते हैं। आज देश की संसद, विधानसभाएं और कई बार कहा जाता है कि न्यायालयों में चल रहे जनहित के मुकदमों पर भी मीडिया की खबरों का प्रभाव या मार्ग दर्शन दिखाई देता है।
मीडिया भी बहुत जागरुक है, आपने समाचार पत्रों और टीवी चैनलों की ख़बरों में देखा होगा कि चार बोतल शराब या पुरानी दस हजार कीमत वाली मोटर साइकिल की चोरी में पकड़े गये चोर के दोनों तरफ कांस्टेबल-थानेदार खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं और वह फोटो दूसरे दिन अख़बारों में दिखाई देता है। ऐसा ही चैन स्नेचींग में पकड़े जाने पर और इससे भी आगे बढ़कर गली मोहल्ले की नाबालिग लड़की किसी गली छाप हीरो के बहकावे में आकर कहीं चली जाये तो उसके बाप के नाम से ख़बर को छाप देते हैं, ऐसी ही बलात्कार के झूठे आरोप की भी ख़बर मिल जाये तो हम बलात्कार के समय चश्मदीद गवाह बनकर ख़बर को 'रोमांटिक' बनाकर छाप देते हैं, लेकिन सैकड़ों करोड़ की आयकर चोरी करने वाले ज्वैलर्स और शेयर ब्रोकर की ख़बर के साथ उसका या उसके प्रतिष्ठान का फोटो तो दूर उसका नाम तक बड़े से बड़ा अख़बार और लोकप्रियता की बुलन्दी छू रहे टीवी न्यूज़ चैनल भी नहीं दिखाते हैं। ऐसी ही पत्रकारिता कांग्रेस के पूर्व विधायक या नेता के होटल में सेक्स रैकेट में पकड़ी गई लड़की के हाथों और पांवों को तो टीवी न्यूज़ में 'क्लोज अप' करके नेल-पॉलिश की चमक के साथ दिखाया जाता है, लेकिन होटल मालिक नेता का नाम उजागर नहीं किया जाता है।
मीडिया की इस दोहरी भूमिका के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या मीडिया का व्यवहार भी जेडीए या निगम-पालिका के अतिक्रमण हटाओ अभियान जैसा नहीं है? जो गरीब की झौपड़ी को बिना नोटिस भी तोड़ देते हैं जबकि पूंजीपतियों की गगनचुम्बी अवैध ईमारतों को अख़बारों और टीवी चैनलों की ख़बरों में सात-सात दिन तक चलाने के बाद भी अतिक्रमण हटाने वाले दस्तों से दूर रखकर न्यायालयों से 'स्थगन आदेश' लाने का भरपूर समय और समर्थन देते हैं।

....हमारी पत्रकारिता!
ऊपर के समाचार में एक पटवारी 1100/-रू. की रिश्वत में पकड़ा गया। उसकी पोस्टिंग, रिश्वत लेने का स्थान और मूल निवास मय जिले के नाम के छापा गया है। इसी समाचार के नीचे सैक्स रैकेट के समाचार में जोधपुर के पूर्व विधायक के बेटे की होटल का या मालिक का नाम तक नहीं है। पाठक आज़ादी के बाद से आज तक के सभी पूर्व विधायकों के बेटों के नामों का अनुमान लगाते रहे। -सम्पादक

देश के राजस्व आयकर, एक्साइज एवं कर चोरों का अपराध देश द्रोह की श्रेणी में आता है। ऐसे अपराधियों को जनता के सामने नंगा करने का दायित्व सरकार के साथ मीडिया का भी है। सट्टेबाजों, आयकर चोरों, निर्यात के कंटेनरों में गलत जानकारी देकर एक्साइज चोरी करने वाले मीडिया या अख़बार वालों के कितने हितैषी हो सकते हैं। छोटे अख़बारों और टीवी चैनलों को ऐसे लोग मुँह भी नहीं लगाते हैं जबकि बड़े अख़बारों और चैनलों को साल भर में आयकर चोरी का एक प्रतिशत दस बीस लाख या एक करोड़ का विज्ञापन दे देते होंगे। यह विज्ञापन भी आयकर चोरों का बड़े अख़बारों पर 'अहसान' नहीं है बल्कि काम के बदले अनाज या मेहनत का भुगतान ही तो है। इसके बदले हम अपनी पत्रकारिता की कलम का 'सर नीचा' क्यों करें!
इन टैक्स चोरों से अधिक विज्ञापन चुनावों के समय और सरकार बनने के बाद अपनी सरकार की प्रगति के रुप में राजनैतिक दल अख़बारों और टीवी चैनलों को देते हैं फिर भी हम उनके ख़िलाफ जब भी मौका मिलता है चाहे ललित गेट हो या कारपेट मुकदमा। खूब बढ़ा चढ़ाकर समाचार छापते हैं। विज्ञापन पोषण के बदले में 'कृतज्ञता' आयकर चोरों से अधिक राजनैतिक पार्टीयों के प्रति होनी चाहिये लेकिन होता है उलट। हम सरकार का एक पृष्ठ पर विज्ञापन छापते हैं और उसी के सामने वाले पृष्ठ पर उद्घाटन में आये नेता को दस बीस लोगों के विरोध स्वरूप काले झंडे दिखा दिये, तो एक पेज उद्घाटन के विज्ञापन की खबर एक कॉलम दस सेंटीमीटर में छुप जायेगी और काले झंडे वाली ख़बर फोटो सहित तीन या चार कॉलम में छाप कर हम 'विज्ञापन का अहसान' चुका देते हैं। ऐसे समय में मीडिया या हमारा तर्क होता है स्वतंत्र पत्रकारिता का धर्म निभाते हैंं, लेकिन आयकर चोरों के नाम, प्रतिष्ठान का नाम छुपाकर क्या हम उन चोरों के 'सहभागी' का धर्म नहीं निभा रहे हैं।
क्षमा करें! थोड़े लिखे का 'थोड़ा' ही समझें और अगर दिल में 'राम' बैठा हो तो आत्मचिंतन, आत्म मंथन, ठंडे दिल से विचार करें और पत्रकारिता को कॉरपोरेट हाऊस के बड़े घरों के अख़बार भी अपने पूर्वजों को याद कर पत्रकारिता की सही राह पर लड़खड़ाते कदमों को जमा कर चलने का प्रयास करें। बड़े अख़बार छोटे अख़बारों के 'आदर्श' हैं। प्रदेश के एक बड़े अख़बार का 'नो-नेगेटिव न्यूज़' का निर्णय हमें गौरान्वित करता है ऐसा ही निर्णय आयकर चोरों या देश की राजस्व चोरी करने वालों के ख़िलाफ भी लेकर हम छोटे अख़बारों, पत्रकारों का मार्गदर्शन करें।

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