सेवानिवृति के बाद खुफिया अधिकारियों की किताबों के रहस्योद्घाटन
अब्दुल सत्तार सिलावट
कंधार विमान अपहरण काण्ड के 16 साल बाद खुफिया विभाग के सेवानिवृत अधिकारी द्वारा उस समय के नेताओं की मजबूरियों को निर्णय की कमजोरी, नेताओं की अक्षमता कहकर आज विवाद ही पैदा नहीं किया जा रहा बल्कि उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। 1999 में एयर इंडिया का विमान आईसी 814 के अपहरण के बाद के निर्णयों में भारत के देशभक्त नेता, राजनयिक और खुफिया विभाग पूरा ही शामिल था, लेकिन आज सेवानिवृत अधिकारी अपनी किताब के रहस्योद्घाटन से उस वक्त के नेताओं को अक्षम, दबाव में निर्णय और देश भक्ति पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।
आपातकाल के बाद से ऐसा दौर चला कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के निजी सचिव ने उनके जीवन के रंगीलेपन को एक साध्वी से जोड़कर अपनी किताब बेची। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी सत्ता में नहीं रहते हुए लंदन और मास्को यात्रा में सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी के जनरल सैके्रट्री लियोनिद ब्रेझनेव के एयरपोर्ट पर स्वागत को रहस्यपूर्ण बताया। आईबी के तत्कालीन जोइन्ट डायरेक्टर ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद को उद्योगपति धीरुभाई अम्बानी से जोड़ा। उमा भारती-गोविन्दाचार्य के पाक रिश्तों को 'शक' में बदला। मेनका गांधी के फोन टेप से सनसनी पैदा की गई।
मिशन 'रॉ' के भूतपूर्व अधिकारी द्वारा आपातकाल से जुड़ी, अमेरिका से जुड़े कई महत्वपूर्ण गुप्त दस्तावेजों की जानकारी, बड़े देशों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर किये गये गुप्त समझौते पर सवाल खड़े कर सार्वजनिक किये गये। इस अधिकारी ने तो 'रॉ' के तत्कालीन चीफ एस.के. त्रिपाठी को काठमांडू में दाऊद की पार्टी में मेहमान बनकर जाना भी रहस्योद्घाटन में शामिल कर दिया।
देश की सुरक्षा में खुफिया एजेंसीयों, भारत सरकार के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के निजी सहायकों, विदेशों में राजनयिकों की सेवानिवृति के बाद पांच-दस करोड़ रूपये कमाने के लिए किताबें लिखकर मीडिया में प्रचार पाने, देश में सनसनी फैलाने और जाने अंजाने में 20-30 साल पहले के देश भक्त नेताओं की छवि धूमिल करने का अभियान चलाकर अपनी काल्पनिक किताबों को बेचने की परम्परा बन गई है।
जो अफसर अपने सेवा काल में देश के बड़े नेताओं के सामने 'बाबू' की तरह हाथ में शॉर्ट हैण्ड लिखने की डायरी लेकर सर झुकाये 'यस सर'-'यस सर' का स्वर अलापते नहीं थकते थे, आज वे ही रिटायर्ड अफसर अपने समय के देश भक्त नेताओं के देश हित में समय की मांग के अनुसार लिये गये निर्णयों को गलत, जनहित के खिलाफ बताकर देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं, साथ ही उस समय के नेताओं के विरोधी राजनैतिक दलों को मौजूदा समय में चुनावी दुष्प्रचार की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं और इसके पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ अपनी हजार-पन्द्रह सौ की किताब को बेचकर दो-चार करोड़ रूपये कमाना है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा शर्तों में 'ऑल इंडिया सर्विस' (कंडक्ट) रुल्स 1968 के पैरा 6 (पेज 184) में स्पष्ट किया गया है कि मीडिया से जुड़कर या रेडियों के माध्यम से किसी भी तरह की गोपनियता को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। इसी के पैरा 7 में सरकार, सरकार से जुड़े मामलों एवं नीतिगत फैसलों की आलोचना भी नहीं की जा सकती है। पैरा 9 (पेज 185) में एकदम साफ लिखा है कि सरकारी निर्णयों, सूचनाओं, नीतियों और अनुबंधों को अपने विभाग के अलावा अन्य सरकारी कर्मचारी, विभाग या अन्य किसी भी व्यक्ति को बताना भी प्रतिबंधित है। फिर इतने बड़े पदों पर भारत सरकार को सेवा दे चुके अधिकारी नियमों की धज्जियां कैसे उड़ा रहे हैं और देश भक्त नेताओं की मौत के बाद उन्हें शक के घेरे में सिर्फ इसलिए खड़ा कर रहे हैं कि आज इनकी काल्पनिक किताबों में किये गये झूठे और आधारहीन रहस्योद्घाटन का खण्डन करने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है।
देश के नेता मंत्री बनते समय गोपनीयता की शपथ लेते हैं और सिमित समय के लिए बने नेताओं से बड़ी और विश्वसनीयता के साथ तीस-चालीस साल तक महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले अधिकारी भी नियुक्ति के साथ पद की मर्यादा, जिम्मेदारी, गोपनीयता, देश की अखण्डता के लिए शपथ लेते हैं। सेवानिवृत होते ही क्या पद की मर्यादा, गोपनीयता और देश भक्ति की शपथ से यह उच्च अधिकारी मुक्त हो जाते हैं? क्या सेवानिवृति के बाद सेवा काल के संस्मरणों के नाम पर देश की सुरक्षा से जुड़े फैसलों, नीतिगत निर्णयों को सार्वजनिक कर देश के दुश्मनों को मदद नहीं कर रहे हैं?
आज इन अधिकारियों को मर्यादा में रहने की शिक्षा देनी चाहिये, लेकिन आज पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी जैसे नेता नहीं हैं और अटल बिहारी वाजपेयी इन्हें रोकने में सक्षम नहीं है यह काम देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही करना होगा। दुनियाभर के देशों में भारत की नई छवि बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन सेवानिवृत अधिकारियों से सावधान होना चाहिये। कहीं ऐसा नहीं हो कि जिन अधिकारियों को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेते ही अपनी सरकार का पहला संशोधन लाकर अपने निजी और गोपनीयता में साझेदार बनाया है, कल वही अधिकारी सेवानिवृत होकर अपनी किताबें बेचने कि लिए नरेन्द्र मोदी और नागपुर के रिश्तों के रहस्योद्घाटन करें। ऐसा ना हो कि गुजरात कैडर के अधिकारी 2002 के दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौन सहमति पर अपनी उपस्थिती की छाप लगाकर आपकी लोकप्रियता को आपके जीवनकाल या बाद में भी धूमिल करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे अधिकारियों की किताबी रहस्योद्घाटन की प्रवृति परम्परा और शगूफेबाजी को रोक सकते हैं। आप एक बार उनके आपातकाल से अब तक के रहस्योद्घाटन पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि ऐसे लेखक भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए भी उपयोगी या राजनैतिक सहयोगी नहीं हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
अब्दुल सत्तार सिलावट
कंधार विमान अपहरण काण्ड के 16 साल बाद खुफिया विभाग के सेवानिवृत अधिकारी द्वारा उस समय के नेताओं की मजबूरियों को निर्णय की कमजोरी, नेताओं की अक्षमता कहकर आज विवाद ही पैदा नहीं किया जा रहा बल्कि उनकी छवि को धूमिल किया जा रहा है। 1999 में एयर इंडिया का विमान आईसी 814 के अपहरण के बाद के निर्णयों में भारत के देशभक्त नेता, राजनयिक और खुफिया विभाग पूरा ही शामिल था, लेकिन आज सेवानिवृत अधिकारी अपनी किताब के रहस्योद्घाटन से उस वक्त के नेताओं को अक्षम, दबाव में निर्णय और देश भक्ति पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।
आपातकाल के बाद से ऐसा दौर चला कि पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के निजी सचिव ने उनके जीवन के रंगीलेपन को एक साध्वी से जोड़कर अपनी किताब बेची। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी सत्ता में नहीं रहते हुए लंदन और मास्को यात्रा में सोवियत कम्यूनिस्ट पार्टी के जनरल सैके्रट्री लियोनिद ब्रेझनेव के एयरपोर्ट पर स्वागत को रहस्यपूर्ण बताया। आईबी के तत्कालीन जोइन्ट डायरेक्टर ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद को उद्योगपति धीरुभाई अम्बानी से जोड़ा। उमा भारती-गोविन्दाचार्य के पाक रिश्तों को 'शक' में बदला। मेनका गांधी के फोन टेप से सनसनी पैदा की गई।
मिशन 'रॉ' के भूतपूर्व अधिकारी द्वारा आपातकाल से जुड़ी, अमेरिका से जुड़े कई महत्वपूर्ण गुप्त दस्तावेजों की जानकारी, बड़े देशों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर किये गये गुप्त समझौते पर सवाल खड़े कर सार्वजनिक किये गये। इस अधिकारी ने तो 'रॉ' के तत्कालीन चीफ एस.के. त्रिपाठी को काठमांडू में दाऊद की पार्टी में मेहमान बनकर जाना भी रहस्योद्घाटन में शामिल कर दिया।
देश की सुरक्षा में खुफिया एजेंसीयों, भारत सरकार के सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के निजी सहायकों, विदेशों में राजनयिकों की सेवानिवृति के बाद पांच-दस करोड़ रूपये कमाने के लिए किताबें लिखकर मीडिया में प्रचार पाने, देश में सनसनी फैलाने और जाने अंजाने में 20-30 साल पहले के देश भक्त नेताओं की छवि धूमिल करने का अभियान चलाकर अपनी काल्पनिक किताबों को बेचने की परम्परा बन गई है।
जो अफसर अपने सेवा काल में देश के बड़े नेताओं के सामने 'बाबू' की तरह हाथ में शॉर्ट हैण्ड लिखने की डायरी लेकर सर झुकाये 'यस सर'-'यस सर' का स्वर अलापते नहीं थकते थे, आज वे ही रिटायर्ड अफसर अपने समय के देश भक्त नेताओं के देश हित में समय की मांग के अनुसार लिये गये निर्णयों को गलत, जनहित के खिलाफ बताकर देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं, साथ ही उस समय के नेताओं के विरोधी राजनैतिक दलों को मौजूदा समय में चुनावी दुष्प्रचार की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं और इसके पीछे इनका उद्देश्य सिर्फ अपनी हजार-पन्द्रह सौ की किताब को बेचकर दो-चार करोड़ रूपये कमाना है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा शर्तों में 'ऑल इंडिया सर्विस' (कंडक्ट) रुल्स 1968 के पैरा 6 (पेज 184) में स्पष्ट किया गया है कि मीडिया से जुड़कर या रेडियों के माध्यम से किसी भी तरह की गोपनियता को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। इसी के पैरा 7 में सरकार, सरकार से जुड़े मामलों एवं नीतिगत फैसलों की आलोचना भी नहीं की जा सकती है। पैरा 9 (पेज 185) में एकदम साफ लिखा है कि सरकारी निर्णयों, सूचनाओं, नीतियों और अनुबंधों को अपने विभाग के अलावा अन्य सरकारी कर्मचारी, विभाग या अन्य किसी भी व्यक्ति को बताना भी प्रतिबंधित है। फिर इतने बड़े पदों पर भारत सरकार को सेवा दे चुके अधिकारी नियमों की धज्जियां कैसे उड़ा रहे हैं और देश भक्त नेताओं की मौत के बाद उन्हें शक के घेरे में सिर्फ इसलिए खड़ा कर रहे हैं कि आज इनकी काल्पनिक किताबों में किये गये झूठे और आधारहीन रहस्योद्घाटन का खण्डन करने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है।
देश के नेता मंत्री बनते समय गोपनीयता की शपथ लेते हैं और सिमित समय के लिए बने नेताओं से बड़ी और विश्वसनीयता के साथ तीस-चालीस साल तक महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले अधिकारी भी नियुक्ति के साथ पद की मर्यादा, जिम्मेदारी, गोपनीयता, देश की अखण्डता के लिए शपथ लेते हैं। सेवानिवृत होते ही क्या पद की मर्यादा, गोपनीयता और देश भक्ति की शपथ से यह उच्च अधिकारी मुक्त हो जाते हैं? क्या सेवानिवृति के बाद सेवा काल के संस्मरणों के नाम पर देश की सुरक्षा से जुड़े फैसलों, नीतिगत निर्णयों को सार्वजनिक कर देश के दुश्मनों को मदद नहीं कर रहे हैं?
आज इन अधिकारियों को मर्यादा में रहने की शिक्षा देनी चाहिये, लेकिन आज पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी जैसे नेता नहीं हैं और अटल बिहारी वाजपेयी इन्हें रोकने में सक्षम नहीं है यह काम देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही करना होगा। दुनियाभर के देशों में भारत की नई छवि बनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इन सेवानिवृत अधिकारियों से सावधान होना चाहिये। कहीं ऐसा नहीं हो कि जिन अधिकारियों को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेते ही अपनी सरकार का पहला संशोधन लाकर अपने निजी और गोपनीयता में साझेदार बनाया है, कल वही अधिकारी सेवानिवृत होकर अपनी किताबें बेचने कि लिए नरेन्द्र मोदी और नागपुर के रिश्तों के रहस्योद्घाटन करें। ऐसा ना हो कि गुजरात कैडर के अधिकारी 2002 के दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौन सहमति पर अपनी उपस्थिती की छाप लगाकर आपकी लोकप्रियता को आपके जीवनकाल या बाद में भी धूमिल करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे अधिकारियों की किताबी रहस्योद्घाटन की प्रवृति परम्परा और शगूफेबाजी को रोक सकते हैं। आप एक बार उनके आपातकाल से अब तक के रहस्योद्घाटन पर नजर डालें तो आप पायेंगे कि ऐसे लेखक भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए भी उपयोगी या राजनैतिक सहयोगी नहीं हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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