राजस्थान राजभवन रोज़ा इफ़्तार से दूर
अब्दुल सत्तार सिलावट
राजस्थान का राजभवन इस साल मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देने से पीछे का कारण यह रहा कि नये राज्यपाल कल्याण सिंह अपनी हिन्दूवादी छवि को 'बरकरार' रखना चाहते हैं, ऐसी बातें मुस्लिम नेताओं और संगठनों में चर्चा का विषय बनी हुई है, जबकि आज़ादी के बाद से हिंदुओं की शुभचिन्तक, रक्षक, मुस्लिम विरोध का 'दक्ष' झेल रही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इसी रमज़ान में अपनी परम्पराओं को 'ताक' पर रखकर देश की राजधानी दिल्ली में भव्य रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रम करके भारत ही नहीं पड़ौसी देशों को भी संदेश दिया कि अब भारत में धर्म की राजनीति के समीकरण बदल चुके हैं।
रमज़ान 2013 में तत्कालीन राज्यपाल मागे्रट आल्वा ने उत्तराखण्ड में हुई भारी तबाही के शोक में रोज़ा इफ़्तार पार्टी नहीं देकर देवभूमि की तबाही के प्रति संवेदना व्यक्त की थी, जिसका सभी मुस्लिम संगठनों ने भी समर्थन किया था, लेकिन इस बार देश में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी 'आड' में राजस्थान के राज्यपाल राजस्थान के दाढ़ी वाले-टोपी वाले मुसलमानों को इबादत के माह रमज़ान में रोज़ा इफ़्तारी के लिए राजभवन के प्रांगण में नहीं बुलाना चाहते हैं।
राजस्थान के महामहिम को मालूम होना चाहिये कि भारत के मुसलमानों के रमज़ान की इबादत किसी राजनेता के रोज़ा इफ़्तार पार्टीयों में जाने से ही अल्लाह कुबूल नहीं करता है बल्कि मुसलमान तो स्वयं अपने 'मन' के कदम बढ़ाता है। महामहिम आप अपने मुस्लिम नेताओं से एक बात मालूम कर लें, कि जो भी मुसलमान रोज़ा इफ़्तार की राजनैतिक पार्टीयों में आता है वह अपने घर से 'दो खजूर' अख़बार के टुकड़े में बांधकर साथ लाता है और जब इफ़्तार का वक्त होता तब आपके ज्यूस, खजूर और मेहमान नवाज़ी की रश्मों में रखे बादाम-काजू से पहले अपनी जेब से हक-हलाल की कमाई के दो खजूर निकालकर अल्लाह का शुक्र अदा कर अपना रोज़ा इफ़्तार करता है।
राजभवन के विशाल लॉन में फाईव स्टार होटल से आये खाने पर राजनैतिक मुसलमान और सरकारी कर्मचारी टूट पड़ते हैं। मोती डूंगरी, मुसाफिर खाना के पास और रामगंज़, जालूपुरा से आने वाला रोज़ेदार मुसलमान तो सिर्फ राजभवन की खूबसूरती, बैण्डवादन पर राष्ट्रगान, और मौका मिल जाये तो राजभवन में इफ़्तार पार्टी में आये किसी मंत्री से हाथ मिलाकर वापस लौटने में भी अपनी खुश किस्मती समझ लेता है। राजभवन के रोज़ा इफ़्तार से अधिक आम मुसलमान मुख्यमंत्री के रोज़ा इफ़्तार में जाना पसन्द करता है, भले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या वसुन्धरा राजे। राजस्थान का मुसलमान वसुन्धरा राजे को आज भी 'अपनी' मुख्यमंत्री मानता है और यह बात सत्य भी है कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की छवि 'कट्टरवादी' नहीं है।
आज़ादी के बाद से राष्ट्रपति भवन, प्रदेशों के राज्यपाल देश की कौमी एकता की छवि को बनाये रखने के लिए रोज़ा इफ़्तार कार्यक्रमों का आयोजन करते आये हैं जबकि राजभवन या राष्ट्रपति जी को मुस्लिमों के वोट नहीं चाहिये होते हैं। राजस्थान के राज्यपाल को मुसलमानों को रोज़ा इफ़्तार करवाना 'फिज़ूल खर्ची' लगता हो तो भविष्य में 15 अगस्त और 26 जनवरी के आयोजन भी बंद करवा देने चाहिये।
आज़ादी के 67 साल बाद भी शिक्षा देने वाले अध्यापक स्कूल पर झंडा लहराते समय कौन-सा रंग ऊपर रखना हैं भूल जाते हैं, ऐसे ही सूर्यासत के बाद भी झंडे लहराते हुए फोटो दूसरे दिन अख़बारों में छपते रहते हैं। आज़ादी के जश्न में भी स्कूली बच्चों और सरकारी कर्मचारियों के अलावा टेन्ट, माइक, लाईट वालों की ही भीड़ ज्य़ादा होती है। आम आदमी तो घर बैठे टीवी पर ही आज़ादी का जश्न मना लेता है। अब रही बात संविधान दिवस 26 जनवरी की। अब तो आप भी जान गये होंगे कि देश की सभी राजनैतिक पार्टीयां 2जी, 4जी से लेकर सुषमा, ललित मोदी तक की श्रंखला में देश के संविधान की कैसे धज्जियां उड़ा रहे हैं।
राजस्थान के महामहिम आपका रोज़ा इफ़्तार रद्द करने का कार्यक्रम किसी भी परिस्थिती में रहा हो, इससे राजस्थान के मुसलमानों की रमज़ान की इबादत, रोज़े की फ़ज़ीलत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुसलमानों की इबादत अल्लाह मंज़ूर करता है, लेकिन बाबरी मस्जि़द शहीद होने से पहले जब आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते कोर्ट में बाबरी मस्जि़द बचाने का जो हलफनामा दिया था, आज उस हलफनामें और आपके दिल में मुसलमानों के प्रति कैसा सम्मान तब था और आज है उसकी झलक राजस्थान ही नहीं देश भर के मुसलमानों को 'रोज़ा इफ़्तार' रद्द करने के बाद दिखाई दे रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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