ए.एस. सिलावट
राजस्थान में औद्योगिक विकास के लिए नवम्बर 2015 में आयोजित होने वाले 'रिसर्जेंट राजस्थान' को भव्य रूप देने के लिए पिछले तीन माह से युद्ध स्तर पर तैयारियां चल रही हैं। राजस्थान सरकार के उद्योग विभाग, रिको, वित्त निगम और ब्यूरो ऑफ इन्डस्ट्रीयल प्रमोशन के साथ दिल्ली-मुम्बई इन्डस्ट्रीयल कोरिडोर भी अपने-अपने विभागों से नये उद्योगों की स्थापना के लिए नियमों में सरलीकरण, इंस्पेक्टर राज की समाप्ति एवं सिंगल विंडो जैसी सुविधाओं के साथ देश-विदेश से राजस्थान आकर उद्योग लगाने वालों के लिए 'पलक-पावड़े' बिछाने की तैयारियों में दिन रात लगे हैं।
राजस्थान सरकार नये उद्योग घरानों एवं विदेशी उद्योगों को राजस्थान की धरती पर आकर्षित करने के लिए सस्ती सरकारी जमीन, बाहर से मशीनरी इम्पोर्ट पर ड्यूटी में राहत, देश के अन्य हिस्सों से आने वाली मशीनरी पर टेक्स रियायत के साथ पाँच-दस साल तक उत्पादन शुल्क में भी राहत देने की नई-नई योजनाएं बना रही है।
'रिसर्जेंट राजस्थान' में आने वाले नये उद्योगों की स्थापना में नये भवन निर्माण एवं मशीनरी पर सरकारी अनुदान के साथ बैंकों से सस्ते ऋण सुलभ करवाने के अलावा ब्याज पर भी अनुदान जैसी योजनाओं पर मंथन किया जा रहा है।
राजस्थान में नये उद्योगों की बाढ़ आ जाये। नये रोजगार के द्वार खुले। हमारी खनिज सम्पदा, कृषि और अन्य पारम्परिक उद्योगों में राजस्थान के कच्चे माल के उत्पाद देश-विदेश तक पहुँचे। भाजपा की वसुन्धरा राजे सरकार नये उद्योगों के स्वागत के लिए जितनी 'खुले मन' से सरकारी सहायता एवं सरकारी सुविधा के द्वार खोल रही हैं ऐसी ही 'उदारता' राजस्थान के कौने-कौने में चल रहे पुराने उद्योगों के विकास में सहभागिता, पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण, प्रदूषण एवं सरकारी उपेक्षाओं के बीच लाखों लोगों को रोजगार दे रहे उद्योगों के लिए भी दिखायें। पुराने उद्योगों से राजस्थान सरकार को करोड़ों का राजस्व आज भी मिल रहा है। बड़े शहरों के अलावा कस्बों और ग्रामीण क्षेत्र में भी पुराने उद्योग जीवनयापन का मुख्य स्त्रोत हैं।
राजस्थान सरकार के उद्योग विभाग को 'रिसर्जेंट राजस्थान' में नये उद्योगों को 'लुभाने' के लिए बनाई जा रही सरकारी सुविधाओं की फहरिस्तों में पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण एवं अधिक उत्पादन से नये रोजगार सुलभ करवाने में मददगार योजनाओं पर भी चिन्तन करना चाहिये।
नये उद्योगों के एमओयू पर दस्तखत होने के बाद कितने समय में उद्योग शुरू होकर रोजगार एवं सरकार को राजस्व देंगे इसका अनुमान किसी के पास नहीं हैं, जबकि पुराने उद्योगों के आधुनीकीकरण एवं औद्योगिक विकास में बाधक सरकारी नीतियों में फेरबदल किया जाये तो पुराने उद्योगों से शिघ्र लाभ मिल सकता है। सरकार में बैठे अनुभवी 'ब्यूरोक्रेट्स' इस रहस्य को भी जानते हैं कि आजादी के बाद से राजस्थान के विकास और रोजगार सुलभ करवाने में खनिज, कृषि, इन्जिनियरिंग के साथ पारम्परिक टेक्सटाइल एवं इससे जुड़े उद्योग पीढ़ी दर पीढ़ी रोजगार सुलभ करवाने के साथ राजस्थान के विकास में उल्लेखनीय सहयोग देते रहे हैं इसीलिए राजस्थान में चल रहे उद्योगों को अधिक सुविधाएं देकर विकास की दौड़ में शामिल करने की योजनाएं भी बननी चाहिये।
राजस्थान का टेक्सटाइल उद्योग उत्तर भारत ही नहीं बल्कि देश भर में महिलाओं के लिए सूट, साड़ी, लहंगा से लेकर साड़ी फाल सप्लाई में अग्रणी है वहीं पुरुषों के लिए पेन्ट, शर्ट, सफारी एवं सूट में भी देश की कपड़ा मंडियों में विशेष पहचान रखता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि विगत चार दशक से सांगानेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, पाली, जोधपुर और बालोतरा जैसी टेक्सटाइल उद्योगों को प्रदूषण की समस्या से जूंझना पड़ रहा है। प्रदूषण को रोकने के लिए राजस्थान सरकार का प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के अलावा टेक्सटाइल से जुड़े उद्योगपतियों पर विभिन्न न्यायालयों में मुकदमें भी चल रहे हैं। टेक्सटाइल उद्योग से जुड़े लोग अपनी फेक्ट्रीयों में उत्पादन से अधिक प्रदूषण रोकने के लिए नई-नई टेक्नीक से ट्रीटमेंंट ऑपरेट करने के लिए अपने उत्पादन के कच्चे माल पर 'सेसकर' भुगतान के बाद भी न्यायालयों के चक्कर और किसानों के आन्दोलनों के शिकार होते हैं। राजस्थान सरकार को टेक्सटाइल उद्योगों के विकास में भागीदारी निभाने के लिए प्रदूषण समस्या से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास करने चाहिये। उद्योगों से केवल सेसकर ही वसूलकर उन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।
प्रदूषण फैलाने वाले कुछ उद्योगों पर राजस्थान सरकार पिछले दो दशक से एक तरफा 'मेहरबान' है, इनमें सीमेन्ट फेक्ट्रीयां और मार्बल उद्योगों द्वारा उपजाऊ कृषि भूमि पर 'मार्बल स्लरी' डालकर बंजर हो रही भूमि शामिल है। मार्बल और सीमेन्ट उद्योग पर कांग्रेस की गहलोत सरकार और भाजपा की वसुन्धरा सरकार सिर्फ प्रदूषण फैलाने वाले मामले पर ही नहीं बल्कि अपने कार्यकाल के हर बजट में इन उद्योगों को 'रॉयल्टी' के साथ अन्य टेक्सों में भी रियायत देते रहे हैं और उनकी इन्डस्ट्रीज में काम करने वाले मजदूरों एवं छोटे खान मालिकों को सरकारी रियायतों का लाभ नहीं मिल पाता है।
राजस्थान में सरकार को उद्योग क्रांति लाने के लिए नये उद्योगों के लिए 'पलक-पावड़े' बिछाने के साथ पहले से लगे उद्योगों को विकास की दौड़ में शामिल करने के लिए उनकी समस्याओं के स्थाई समाधान के साथ आधुनीकीकरण के लिए सस्ते ऋण, भूमि-भवन एवं मशीनरी खरीद पर अनुदान जैसी सुविधाएं देकर राजस्थान के विकास में सभी उद्योगों को शामिल करना चाहिये।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक- दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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