ए.एस. सिलावट
देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने परमात्मा की कसम खाकर कहा कि देश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए मैं कुछ भी करूंगा। अल्पसंख्यकों के मन में पल रही असुरक्षा की भावना को खत्म करने के लिए किसी भी हद तक जाऊँगा और साथ ही राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए हर सम्भव कदम उठाने के आदेश भी दे डाले।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश भर का अल्पसंख्यकों पर भाजपा की केन्द्रीय सरकार में बैठे सन्तों, सांसदों और वरिष्ठ विद्वान राजनेताओं द्वारा भड़काऊ भाषण दिये जा रहे हैं साथ ही नवी मुम्बई, नई दिल्ली, मध्यप्रदेश में चर्चों पर हमले हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में 71 साल की बुजुर्ग नन के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है। ऐसे समय में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सिर्फ राजनैतिक औपचारिकता पूरी नहीं की है बल्कि बिगड़ते माहौल को लगाम देने के लिए सच्चे मन से और राजधर्म को निभाते हुए एक ओर देश भर के अल्पसंख्यकों को भाजपा की सरकार से अब तक फैली असुरक्षा की भावना को रोका है वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारों, केन्द्र की सुरक्षा एजेन्सीयों और धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे लोगों को भी स्पष्ट संकेत दे दिया है कि अब गृह विभाग देश की कानून व्यवस्था बिगाडऩे वालों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
गृहमंत्री चाहे भाजपा या आरएसएस से राजनीति में आते हों लेकिन इनकी धर्म निरपेक्षता को सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरा देश जानता है कि राजनाथ सिंह ने अगर ईश्वर की शपथ खाकर देश में अल्पसंख्यकों की रक्षा का वायदा किया है तो अब ईसाइयों, मुसलमानों या अन्य अल्पसंख्यकों को भड़काऊ बयान देने वालों को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिये और अल्पसंख्यकों के धर्म गुरुओं, विद्वानों एवं नेताओं को भड़काऊ बयानों पर प्रतिक्रिया भी नहीं करनी चाहिये।
देश की राजधानी में अल्पसंख्यकों के मंच से जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले दस माह से अस्थिर साम्प्रदायिक सौहार्द पर खुलकर सच्चे मन से बोल दिया है ऐसे समय में थोड़ा और आगे बढ़कर केन्द्र और राज्यों की सुरक्षा एजेन्सीयों को स्पष्ट आदेश भी देना चाहिये कि बेलगाम, भड़काऊ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर भरे बाण छोडऩे वाले बयानबाजी करने वालों को तत्काल कानून की हथकड़ी पहनानी चाहिये। कौमी एकता बिगाडऩे की बयानबाजी करने वालों को सिर्फ मुल्जिम की नजर से देखा जाये भले ही देश की सत्ता पार्टी के नेता हों, सांसद या विधायक हों, भगवा या हरी पगडी वाले हों। कानून ऐसे लोगों को सिर्फ अपराधी की नजर से देखकर कार्यवाही करेगा तभी देश में शांति व्यवस्था कायम रह पायेगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का जो भरोसा दिया है इसे लागू करने में गृह विभाग की सुरक्षा एजेन्सीयां ही मददगार बन सकती है जबकि देश के अल्पसंख्यकों का सुरक्षा एजेन्सीयों से विश्वास उठ चुका है इसके परिणामस्वरुप गुजरात, मुजफ्फरपुर, आसाम, के दंगों में मूल दंगाइयों को भूलकर अल्पसंख्यक पुलिस, आरएसी से भीड़ जाते हैं और अल्पसंख्यकों ने ऐसा मान लिया है कि देश की पुलिस और सुरक्षा एजेन्सीयां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो चुकी है। गृहमंत्री जी, सुरक्षा एजेन्सीयों के खिलाफ फैले इस भ्रम को तोडऩे के लिए आपको अपने गृह विभाग में भी सोच बदलने का एक अभियान चालाना होगा तभी आपका अल्पसंख्यक सुरक्षा का संकल्प पूरा हो पायेगा।
देश की कौमी एकता को बिगाडऩे का मिशन चलाने वालों के निशाने पर अल्पसंख्यकों में मूलत: ईसाई और मुसलमान हैं। इनमें से ईसाई देश में धर्म परिवर्तन के आरोप लगे हैं, जबकि मुसलमानों को आतंकवाद शब्द से जोड़कर देश की मुख्य धारा से अलग थलग करने के प्रयासों में बहुत सफलता भी मिली है।
देश की ईसाई मिशनरियां विरान जंगलों में बैठे आदिवासियों की सेवा और शहरों में मिशनरी स्कूलों के माध्यम से शिक्षण क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इनकी आय क्या है? गरीबों की सेवा के लिए पैसा कहाँ से आता है? और जिनकी भी सेवा करते हुए वे गरीब सेवा करने वालों को 'दुवाएं' देने के बदले उनके धर्म में ही शामिल हो जाते हैं। अब तक ऐसे ही आरोप ईसाई अल्पसंख्यकों पर लगते रहे हैं। लेकिन भारत का मुसलमान आपके गली-मौहल्ले में पंचर निकालता है। चाय की दूकान चलाता है। मजदूरी करता है। सब्जी बेचता है। आपकी कार का ड्राइवर, आपकी फैक्ट्री का चौकीदार। मुसलमान के बच्चे कानवेन्ट, सैंट जेवियर या दून स्कूल में नहीं आपकी मौहल्ले की सरकारी स्कूल में बिना ड्रेस के दण्ड स्वरुप हमेशा प्रार्थना सभा की लाईन से दूर एक कौने में खड़ा रहकर मुश्किल से आठवीं तक पहुँचकर अपने बड़े भाई या पिता के साथ काम पर चला जाता है और परिवार में एक और कमाने वाला तथा भारत देश में एक और गरीब मजदूर बनकर अल्पसंख्यकों के आँकड़ों में वृद्धी कर देता है।
देश के मुस्लिम नौनिहाल जो घर के आसपास की मस्जिद के कमरे में जहाँ टूटी चटाई, दिवारों मकडियों के जाले और टूटी खिड़कियों से आ रही रोशनी में बैठकर अलीफ, बे, ते, से पढ़ता है। इन्हीं मदरसों से नमाज, रोजा, जकात अपनों से गरीब पर दया करना सिखता है। इन्हीं मदरसों को देश के अल्पसंख्यक विरोधी नेता आतंकवाद का अड्डा कहते हैं।
गृहमंत्री जी, भारत का सौ करोड़ हिन्दू अल्पसंख्यकों का विरोधी नहीं है। मात्र एक या दो प्रतिशत लोग मनगढ़त भड़काऊ भाषण, अल्पसंख्यकों पर बेहुदी टिप्पणियां करके देश के सौ करोड़ हिन्दूओं के दिलों में नफरत का बीज बोकर दंगों की फसल काटना चाहते हैं। देश के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के लिए मानसिक विकृति के शिकार एक दो प्रतिशत लोगों पर सख्ती के साथ लगाम लगानी होगी। अगर आपका गृह विभाग भड़काऊ जबान वाले लोगों को मीडिया की पहुंच से दूर रखने में कामयाब हो जायें तो भारत में आने वाले सौ साल तक भले ही देश की बागडोर भाजपा-आरएसएस या अन्य हिन्दूवादी संगठनों के हाथ में रहे हमारी कौमी एकता को कोई भी तोड़ नहीं सकता है। गंगा-जमुनी तहजीब, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा आज भी देश के कौने-कौने में मौजूद है, इसलिए हर दंगे की टीवी स्क्रीन से कवरेज हटने के बाद हम वापस भाईचारे का धर्म निभाने लग जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, प्रधान सम्पादक-दैनिक महका राजस्थान एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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